प्रकृति और मनुष्य

प्रकृति और मनुष्य

हमारे प्राचीन ऋषियों-मुनियों की यही जीवनशैली थी, जिसके कारण उनके लिए शतायु होना तो साधारण बात थी


अक्सर स्वस्थ जीवन के लिए पक्षियों का उदाहरण दिया जाता है, जो सूर्योदय से पहले उठते हैं, खूब शारीरिक परिश्रम (उड़ान) करते हैं, जितनी भूख हो, उतना ही खाते हैं, प्रकृति के निकट रहते हैं और सूर्यास्त के कुछ समय बाद सो जाते हैं। अगर मनुष्य भी इससे शिक्षा ग्रहण करे यानी सूर्योदय से पहले उठे, यथोचित शारीरिक परिश्रम करे, स्वाद के लालच में न पड़े, भूख से कम खाए, प्रकृति के अनुकूल आहार-विहार करे और रात को जल्दी सो जाए, ताकि अगले दिन जल्दी उठ सके तो निस्संदेह वह स्वस्थ रह सकता है। 

Dakshin Bharat at Google News
हमारे प्राचीन ऋषियों-मुनियों की यही जीवनशैली थी, जिसके कारण उनके लिए शतायु होना तो साधारण बात थी। आज महानगरों में हमारी जीवनशैली इतनी अस्त-व्यस्त हो गई है कि कई लोग न तो सुबह जल्दी उठ पाते हैं और न रात को जल्दी सो पाते हैं। इससे शारीरिक और मानसिक रोग उत्पन्न हो रहे हैं। 

ब्रिटेन में यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) के शोधकर्ताओं ने उचित ही कहा है कि देर रात तक जागने और रात को पांच घंटे से कम की नींद जैसी जीवनशैली के परिणामस्वरूप जानलेवा बीमारियों का जोखिम बढ़ सकता है। हालांकि उन्होंने कोई रहस्योद्घाटन नहीं किया है। यह बात आयुर्वेद ने कई हजार साल पहले ही बता दी थी, जो रोग की चिकित्सा से ज्यादा उन तौर-तरीकों पर जोर देता है, जिससे मनुष्य रोगी होने से बच सके। 

एक तो आजकल स्वाद के वशीभूत होकर अत्यधिक मसालेदार और गरिष्ठ भोजन का चलन बढ़ता जा रहा है। फिर देर रात खाना, देर तक जागना और देर तक सोशल मीडिया में खोए रहना ... ये सब कारण मिलकर शारीरिक एवं मानसिक रोगों की पृष्ठभूमि तैयार करते हैं। इससे रोगों का एक चक्र बन जाता है।  

महानगरों में तो रात दो बजे तक सोना आम समझा जाता है। मुंबई जैसे शहरों में सेलेब्स की लेट नाइट पार्टियां प्रतिष्ठा सूचक मानी जाती हैं। ऐसी जीवनशैली कालांतर में कई रोगों को आमंत्रण देती है। अगर आयुर्वेद पढ़ने का समय नहीं है तो उक्त शोध की कुछ पंक्तियां पढ़ लीजिए कि ‘50 साल की उम्र वाले ऐसे लोग, जो एक दिन में पांच घंटे या उससे कम सोते हैं, अन्य लोगों की तुलना में उनके किसी जानलेवा बीमारी से ग्रसित होने का खतरा 20 प्रतिशत अधिक है।’ 

अगर हम अपने आसपास देखें तो ऐसे कई लोग मिल जाएंगे, जो इस जीवनशैली में ढल चुके हैं। शोध में चिंता की बात यह भी है कि सात घंटे तक सोने वालों की तुलना में जो लोग लगातार 25 वर्षों की अनुवर्ती अवधि में पांच घंटे या उससे कम सोते हैं, उन्हें दो या उससे अधिक जानलेवा बीमारियां होने का खतरा 40 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। 

सवाल है- यह प्रवृत्ति क्यों बढ़ी? तो शोध के प्रमुख लेखक सेवरिन सबिया का यह कहना एक चिर-परिचित तथ्य है कि ‘उच्च आय वाले देशों में बहु-रुग्णता की समस्या बढ़ रही है और आधे से अधिक वृद्ध वयस्कों को अब कम से कम दो जानलेवा बीमारियां हैं।’ यह स्वाभाविक है कि अगर प्रकृति के प्रतिकूल आहार और दिनचर्या अपनाएंगे तो तन और मन दोनों पर इसके प्रतिकूल प्रभाव होंगे। शरीर प्रकृति से बना है, इसलिए अगर इसकी जीवन पद्धति प्रकृति के विरुद्ध जाएगी तो उसमें रोग अवश्य उत्पन्न होंगे। 

नब्बे के दशक तक यह कहा जाता था कि अगर लोगों की आय बढ़ेगी तो उनका स्वास्थ्य ज्यादा अच्छा होगा, क्योंकि उनके पास खानपान और उपचार की अधिक सुविधाएं होंगी, लेकिन यह कथन पूर्णतः सत्य नहीं है। समृद्धि के साथ रोग भी बढ़े हैं, जिनका प्रमुख कारण प्रकृति के नियमों का उल्लंघन और उससे दूर जाना है। आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं का अपनी जगह महत्व है। उन्हें नकारा नहीं जा सकता, लेकिन मनुष्य को प्रकृति का सान्निध्य कभी नहीं छोड़ना चाहिए। ब्रिटिश विद्वानों ने भिन्न शब्दों के साथ आयुर्वेद की इसी मान्यता का अनुकरण किया है।
 

Tags:

About The Author

Related Posts

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download

Latest News

जासूसी मामला: यूट्यूबर ज्योति मल्होत्रा के बारे में पुलिस को कौनसी नई जानकारी मिली? जासूसी मामला: यूट्यूबर ज्योति मल्होत्रा के बारे में पुलिस को कौनसी नई जानकारी मिली?
Photo: @TravelwithJo YouTube Channel
आरएसएस मुख्यालय पर हमले का मुख्य साजिशकर्ता रजाउल्लाह पाकिस्तान के सिंध में ढेर
हैदराबाद की इमारत में लगी भीषण आग, 17 लोगों की मौत
10वीं कक्षा के सभी विद्यार्थियों के लिए रोबोटिक्स शिक्षा अनिवार्य करने वाला पहला राज्य बना केरल
आईएमएफ ने पाकिस्तान पर 11 नई शर्तें लगाईं: रिपोर्ट
हरियाणा: पाकिस्तान के लिए जासूसी करने के आरोप में युवक गिरफ्तार
हरियाणा की मशहूर यूट्यूबर को पाकिस्तान के लिए जासूसी के आरोप में गिरफ्तार किया गया