मन में भी हो उजाला

मन में भी हो उजाला

भारत अपनी संस्कृति और सकारात्मकता की शक्ति से न केवल प्रगतिपथ पर निरंतर आगे बढ़ता जा रहा है, बल्कि ब्रिटेन को पछाड़कर पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी बन गया है


कोरोना महामारी पर विजय प्राप्त करते हुए भारत महापर्व दीपावली की खुशियां मना रहा है। दो साल पहले जब चारों ओर भय तथा अनिश्चितता का माहौल था, उद्योग बंद हो रहे थे, तब भी उम्मीदों के दीप जलाकर भारत विश्व को यह संदेश दे रहा था कि संकट अस्थायी है, हम विजय प्राप्त करेंगे। भारत अपनी संस्कृति और सकारात्मकता की शक्ति से न केवल प्रगतिपथ पर निरंतर आगे बढ़ता जा रहा है, बल्कि ब्रिटेन को पछाड़कर पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भी बन गया है। 

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देशवासी समृद्ध हों, सुखी हों, इसके लिए बाह्य जगत की चुनौतियों से तो जूझना ही है, अंतर्मन से जुड़ीं उन बाधाओं पर भी विजय प्राप्त करनी है, जो विशेष रूप से कोरोना काल में सामने आई हैं। पश्चिमी सिडनी विश्वविद्यालय का यह शोध चिंता बढ़ाने वाला है कि गेमिंग की लत युवाओं में अवसाद और आक्रामकता बढ़ा रही है। उन पर पहले से पढ़ाई, नौकरी आदि का तनाव है। अब गेमिंग की लत उनके लिए और मुसीबतें खड़ी कर सकती है, जिसकी ओर परिजन व सरकार को विशेष ध्यान देना चाहिए। न केवल भारत, बल्कि दुनिया के कई देशों में ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जब किसी ने गेमिंग की लत के कारण जान दे दी। 

ओलिवर क्रोनिन नामक 13 वर्षीय छात्र का मामला अभिभावकों और सरकारों की आंखें खोलने वाला है, जो गेमिंग को लेकर बेहद जुनूनी था। जिस उम्र में बच्चों को अच्छी आदतें सीखने पर ज्यादा जोर देना चाहिए था, वह अत्यधिक आक्रामक स्वभाव वाला हो गया। यहां तक कि वह अपने माता—पिता को अभद्र शब्द बोलने के साथ उन पर हमला करने से भी गुरेज नहीं करता था। वह स्कूल में सहपाठियों से झगड़ता रहता, मारपीट करता। आए दिन घर पर शिकायतें पहुंचने लगीं और दो बार तो उसे स्कूल ने ही निलंबित कर दिया था। 

ये ऐसे संकेत थे, जिनकी ओर परिवार तथा स्कूल को बहुत जल्द ध्यान देना चाहिए था। यह स्थिति लगभग 12 महीनों तक रही और अक्टूबर 2019 में उसने जान दे दी थी। विशेषज्ञों ने पाया है कि ओलिवर को ‘गेमिंग डिसऑर्डर' था, जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने परिभाषित किया है।

भारत में भी ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जब लोगों की ज़िंदगी ठीक चल रही थी; फिर अचानक बच्चे को गेमिंग की लत लग गई और परिवार पर भारी संकट आ गया। इसी साल अगस्त में उत्तर प्रदेश का एक मामला बहुचर्चित हुआ था, जिसमें सेवानिवृत्त सैनिक के बेटे ने 39 लाख रुपए गेम में उड़ा दिए थे। उस पर इसका नशा इस कदर हावी था कि वह हर शिकस्त के बाद पिता के खाते से पैसे निकालकर ऐप के खाते में भेज देता। ऐसे मामलों में हर शख्स की हालत उस जुआरी जैसी होती है, जो हर दांव इस उम्मीद में खेलता जाता है कि अब किस्मत का पांसा पलटेगा, अब वह जीतेगा। 

यही उसके साथ हुआ, धीरे-धीरे पिता की पूरी बचत उड़ा दी। खाता खाला हुआ तो होश आया। गेमिंग कंपनी सिंगापुर में स्थित है। इसका मतलब है कि पैसा वापस मिलने की दूर-दूर तक कोई संभावना है। देश में आए दिन ऐसे मामले सोशल मीडिया में छाए रहते हैं, जब किसी किशोर/री को गेम खेलने के लिए माता-पिता ने मोबाइल फोन नहीं दिया तो उसने या तो घर में तोड़फोड़ मचाई या आत्महत्या कर ली। ऐसे बच्चों में बेचैनी, क्रोध, अवसाद, चिंता, पढ़ाई से भटकाव, चिड़चिड़ापन जैसे लक्षण विशेष तौर पर दिखाई देते हैं। परिजन को इन्हें गंभीरता से लेना चाहिए। समय रहते गेमिंग की लत से छुटकारा दिलाएं। अगर इसके लिए मनोवैज्ञानिक परामर्श की आवश्यकता हो तो वह भी ज़रूर लें। 

इन दिनों सोशल मीडिया पर ऐसी गेमिंग ऐप के प्रचार की भरमार है, जो युवाओं को 'खेलने' के लिए उकसाती हैं। आश्चर्य की बात है कि विभिन्न क्षेत्रों के जाने-माने लोग इन्हें बढ़ावा दे रहे हैं। उन्हें तो युवाओं को यह संदेश देना चाहिए कि वे अपने भविष्य पर ध्यान दें, अच्छी आदतें सीखें और देशहित का कार्य करें, लेकिन जिन्हें आज का युवा 'आदर्श' मानकर अनुकरण करता है, वे ही इन ऐप की पैरवी कर उन्हें 'जुए' की लत में धकेल रहे हैं। 

हमारे शास्त्र सदियों पहले ही चेतावनी दे चुके हैं कि जुआ खेलने का परिणाम अंतत: विनाश लाता है। इससे दूर रहने में ही कल्याण है। चाहे वह परंपरागत रूप से खेला जाए या किसी ऐप पर, परिणाम समान है। इस दीपावली पर घर के साथ मन को भी रौशन करें। समाज को इन बुराइयों से मुक्ति दिलाएं।

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