संपादकीय: भारत-बांग्लादेश मैत्री संबंध

संपादकीय: भारत-बांग्लादेश मैत्री संबंध

संपादकीय: भारत-बांग्लादेश मैत्री संबंध

दक्षिण भारत राष्ट्रमत में प्रकाशित संपादकीय

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बांग्लादेश दौरा कई मायनों में अत्यंत महत्वपूर्ण है। मोदी का बांग्लादेश के प्रति मैत्रीभाव, प्रधानमंत्री शेख हसीना समेत वहां के नागरिकों से मेलजोल, शहीदों को नमन जैसी कई घटनाएं साधारण नहीं हैं। ये भारत और बांग्लादेश दोनों के इतिहास में अंकित हो गई हैं। मोदी के इस दौरे पर दुनिया के कई देशों की नजर है। भारत ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के आदर्श को सर्वोपरि मानता है। उसने कभी दूसरों की जमीन हड़पने के लिए आक्रमण नहीं किया। इसका सबसे बड़ा उदाहरण स्वयं बांग्लादेश है।

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जब भारत की सेना ढाका पर पूरी तरह कब्जा करके पाक फौज को घुटने टिकवा चुकी थी, उस समय बांग्लादेश पर आधिपत्य जमा लेना कौनसा असंभव काम था? लेकिन भारत सदैव दूसरों की संप्रभुता का सम्मान करता रहा है। उसने बांग्लादेश का नेतृत्व बांग्लादेशियों को सौंप दिया। आज जब भारत के पास कोरोना रोधी वैक्सीन है, तो वह बांग्लादेश भी भेजी गई है। उससे बांग्लादेशियों का जीवन बचाया जा रहा है। इससे पहले कई मौके आए जब भारतीय सेना ने बांग्लादेशी सशस्त्र बलों की सहायता की, भारतीय डॉक्टर बांग्लादेश जाकर कई जटिल सर्जरी कर लोगों को जीवनदान देकर आए। यही भारत का स्वभाव है।

बांग्लादेश ने जब कभी सहायता मांगी, भारत ने यथासामर्थ्य उपलब्ध कराई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासन में यह सहयोग जारी है। भविष्य की सरकारों को भी बांग्लादेश के साथ संबंध मजबूत करते हुए उसके प्रति मैत्री भाव रखना चाहिए। अगर उसकी समस्याएं दूर करने के लिए अपने संसाधन लगाने पड़ें, तो लगाने चाहिएं। चूंकि एक खुशहाल बांग्लादेश अपने नागरिकों के अलावा भारत के लिए भी फायदेमंद होगा। इससे पलायन, घुसपैठ की घटनाओं में कमी आएगी। दोनों देशों की जनता में संवाद होगा तो संबंध और मजबूत होंगे। वहां कट्टरपंथ में कमी आएगी, तो आतंकवादी हतोत्साहित होंगे।

बांग्लादेश के नेतृत्व ने अपनी जनता की सकारात्मक मानसिकता बनाने की बहुत कोशिशें की हैं। इसे उनके सिक्कों और डाक टिकटों को देखकर आसानी से समझा जा सकता है। सिक्कों, डाक टिकटों पर उनकी पहचान स्वतंत्रता सेनानी, खेत-खलिहान, किसान, नदियां, फल, पढ़ाई करते बच्चे आदि हैं। इसके विपरीत पाकिस्तान के डाक टिकट और सिक्के विदेशी आक्रांताओं, आतंकवादियों के गुणगान से भरे पड़े हैं।

बांग्लादेश ने अपनी भाषा को नहीं भुलाया, बल्कि उसके निर्माण की कहानी भाषा से ही शुरू होती है। इसे वहां संसद से लेकर पान की दुकान तक देखा जा सकता है। हर जगह बांग्ला के अक्षर यह कहते प्रतीत होते हैं कि हमारी शक्ति इस देश की नींव है, जिसे शेख मुजीबुर्रहमान समेत कई शहीदों ने अपने लहू से सींचा है। बांग्लादेश का नेतृत्व यह समझ चुका है कि उसकी समस्याओं का हल भारतविरोधी नारों और भड़काऊ मानसिकता को परवान चढ़ाने में नहीं है। दुनिया को फतह करने, टुकड़े करने के ख्वाब देखना मूर्खतापूर्ण है, जिसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण पाकिस्तान के रूप में मौजूद है।

बांग्लादेश के लोगों को यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि भारत उनका अभिन्न मित्र है। वह उन्हें पराया नहीं समझता है। इसलिए अपने यहां भारतविरोधी तत्वों को कभी प्रोत्साहित न करें। भारत ने आपको रावलपिंडी के क्रूर जनरलों से आज़ादी दिलाई, तो यह आगे भी आपका भरोसेमंद साथी बना रहेगा। आप भारत से सहयोग लेकर अपने शिक्षण संस्थानों, उद्योगों, नागरिक सेवा क्षेत्रों को मजबूत करें। भारत इसके लिए कभी मना नहीं करेगा। अतीत इस बात का साक्षी है।

आज दुनिया में बांग्लादेश की जो सकारात्मक छवि है, उसके पीछे भारत का सहयोग मायने रखता है। साथ ही बांग्लादेशी नेतृत्व की यह सोच प्रशंसनीय है कि वे परमाणु बम की होड़ में नहीं उलझे। आज बेशक बांग्लादेश के पास परमाणु बम नहीं है, लेकिन रोटी, शिक्षा और भारत जैसा मित्र है, जिसकी ओर से इस पड़ोसी देश को कभी असुरक्षा नहीं होगी।

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