निर्मला सीतारमण का असर

निर्मला सीतारमण का असर

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को देश में आर्थिक मंदी के हालात से निपटने के लिए कई प्रशासनिक और कर संबंधी बदलावों की घोषणा की। यह शेयर बाजार में कारोबारी सप्ताह का अंतिम दिन था। सोमवार से ही शेयर मार्केट में उनकी घोषणाओं का असर साफ नजर आने लगा। सेन्सेक्स और निफ्टी ने सोमवार को अच्छी-खासी बढ़त हासिल की और मंगलवार तक तो निफ्टी-50 ने 11 हजार का आंकड़ा लंबे समय के अंतराल के बाद फिर से पार कर लिया। निर्मला सीतारमण की घोषणाओं ने देश की ठिठकी हुई अर्थव्यवस्था को फिर से गतिशील कर दिया है। मंदी को देखते हुए सरकार की ओर से ऐसे कुछ कदमों की अत्यंत आवश्यकता थी। यह राहत की बात है कि सरकार अतिरिक्त व्यय को लेकर सचेत है और सीमित राजकोषीय प्रभाव वाले उपायों पर ही ध्यान केंद्रित कर रही है। यह बात भी काबिले तारीफ है कि सरकार सुनने को तैयार है और वह मान रही है कि देश की अर्थव्यवस्था में दिक्कतें हैं। इसी मानसिक स्थिति से समस्याओं के समाधान की ओर बढ़ा जा सकता है। सरकार ने जिन उपायों की घोषणा की है उनमें क्षेत्र आधारित घोषणाएं भी हैं और सामान्य उपाय भी। इन घोषणाओं में शायद सबसे अहम यह है कि पंजीकृत सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उपक्रमों (एमएसएमई) का लंबित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) बकाया 30 दिन की तय अवधि में निपटाया जाएगा। इतना ही नहीं, भविष्य में तमाम नए बकाए को 60 दिन के भीतर निपटाया जाएगा। आशा है कि इससे रोजगार उत्पन्न करने वाले क्षेत्रों में कार्यशील पूंजी की कमी कुछ हद तक दूर होगी। सरकार को वित्तीय तंत्र को और सुगम बनाना होगा। फिलहाल यह तंत्र सरकारी बैंकों के तनाव और आईएल एंड एफएस संकट की परेशानी में नजर आ रहा है। बैंकरों को अतिउत्साही जांच आदि से कुछ बचाव उपलब्ध कराया गया है और सरकारी बैंकों में नई पूंजी डाली जा रही है। इसकी व्यवस्था बजट में ही की गई थी ताकि बैंकों को वृद्धि के लिए कुछ पूंजी मिले। बीते कई दशकों के सबसे बुरे आर्थिक संकट का सामना कर रहे वाहन क्षेत्र को भी कुछ राहत दी गई है, भले ही यह राहत उद्योग की इच्छा के मुताबिक कर कटौती के रूप में नहीं मिली हो। इसकी जगह सरकार ने उच्च पंजीयन शुल्क को फिलहाल टाल दिया है और इस क्षेत्र को प्रभावित कर रही कुछ नियामकीय अनिश्‍चितताएं दूर की गई हैं।
इन सबके साथ ही कुछ हालिया निर्णयों को पूर्ण या आंशिक तौर पर वापस लिया गया है। उदाहरण के लिए, वित्त मंत्री ने दोहराया कि उनका मंत्रालय कानून की उस धारा को अधिसूचित नहीं करेगा जिसके तहत कारोबारी सामाजिक उत्तरदायित्व के नियमों के उल्लंघन को आपराधिक करार दिया जाता। पहली बात तो यह कि इसे कभी पारित ही नहीं होना चाहिए था। आयकर अधिभार में किए गए जिस इजाफे ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के एक धड़े को प्रभावित किया था और बाजार में एक किस्म की अफरातफरी मचा दी थी। उसे भी आंशिक तौर पर बदला गया है। सरकार को इसे पूरी तरह वापस ले लेना था क्योंकि यह कर ढांचे में जटिलताएं पैदा करेगा। कुल मिलाकर इनमें से कई प्रावधान सुखद हैं्। खासतौर पर वित्त मंत्री द्वारा संपत्ति निर्माण करने वालों के संरक्षण और कर मांग में पारदर्शिता बढ़ाने जैसी बातें। यह उपाय दर्शाते हैं कि सरकार अब संकट को नकारने के दौर से बाहर आ चुकी है और यह मान रही है कि देश की अर्थव्यवस्था गंभीर समस्याओं से दो-चार है। इतना ही नहीं, वह बिना राजकोषीय संतुलन को छेड़े चक्रीय समस्याओं को हल भी करना चाहती है। जहां तक बात है गहन ढांचागत दिक्कतों की तो उन्हें हल करना शेष है और निवेश भी बढ़ाना है। इसके लिए केंद्र सरकार को राज्यों की सरकारों के साथ मिलकर काफी काम करना होगा।

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