राष्ट्रवाद और धार्मिक भक्ति के बहाने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन निंदनीय : सिद्दरामैया

राष्ट्रवाद और धार्मिक भक्ति के बहाने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन निंदनीय : सिद्दरामैया

मैसूरु। मुख्यमंत्री सिद्दरामैया ने शुक्रवार को देशभक्ति, धार्मिक भक्ति और राष्ट्रवाद के बहाने देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कम करने के प्रयासों की निंदा की। महाराजा कॉलेज ग्राउंड में ८३वंे अखिल भारतीय कन्ऩड साहित्य सम्मेलन के उद्घाटन के बाद उन्होंने कहा कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में दृ़ढ विश्वास रखते हैं और साहित्य, संगीत, चित्रकला और मीडिया इसके अलग-अलग चेहरे हैं। उन्होंने कहा कि यह चिंताजनक है कि देशभक्ति, धार्मिक भक्ति और राष्ट्रवाद के नाम पर इस स्वतंत्रता को दबाने के लिए प्रयास किए गए हैं। उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से ही लोकतंत्र मजबूत हो सकता है। सिद्दरामैया ने संविधान के संघीय ढांचे की बात करते हुए कवि कुवेम्पु का संदर्भ लेते हुए कहा कि राज्यों को अपने यहां फसल, उद्योग, अर्थव्यवस्था, साहित्य और संस्कृति के मामले में अपने संबंधित क्षेत्र के हितों की रक्षा करने का अधिकार मिला हुआ है। यदि राज्य के अधिकारों से उसे दूर किया जाता है तो देश की स्वतंत्रता का अर्थ और उद्देश्य पराजित हो जाएगा। साहित्य की पीढीगत लोकप्रियता पर उन्होंने कहा कि निरक्षर लोक कवियों द्वारा सृजित साहित्य गुणवत्ता में अद्वितीय रहे हैं और आज तक हमारी दैनिक जुबान पर हैं लेकिन ऐसे कवियों की रचनाओं को सैंक़डों वर्षों से किसने जीवित रखा है? यह हुआ, क्योंकि यह पी़ढी दर पी़ढी बोलचाल के माध्यम से प्रसारित किए गए हैं। मौजूदा समय में भी साहित्य को उसी रूप में अपनाने की जरुरत है। द्नरू्यद्ब, द्नय्प्तय् ृय्स्द्य ज्य फ्ष्ठ फ्द्बद्वय्ह्रत्रय् द्मब्र्‍्र ·र्ैंद्यष्ठ्रख्ष्ठशिक्षा के माध्यम से कन्ऩड को अनिवार्य बनाने की पहल पर उन्होंने कहा कि जल्द ही सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों की एक बैठक बुलाई जाएगी जिसमें संविधान संशोधन पर चर्चा की जाएगी ताकि राज्यों की मातृभाषा में शिक्षा का माध्यम लागू किया जा सके। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार ने पूरे राज्य में कन्ऩड शिक्षा अनिवार्य कर रखी है चाहे स्कूल किसी भी बोर्ड से संबद्ध हों। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार राज्य के हित में भूमि और जल के मुद्दों पर कोई समझौता नहीं करेगी और ना ही इन मुद्दों पर राजनीतिक हित साधने का प्रयास किया जाएगा। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार ने राज्य में विकास और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के अलावा कन्ऩड भाषा की गरिमा को बनाए रखने का काम किया है। उन्होंने कहा कि राज्य की संस्कृति और विरासत को संरक्षित रखा जाएगा और इसके लिए राज्य सरकार शीघ्र ही एक नीति लाएगी जिसके लिए सरकार २३ करो़ड रूपए का आवंटन करेगी। र्फ् झ्य्ट्टर्‍श्च ·र्ैंह् प्ह्ट्ट ·र्ैंद्यष्ठ्र ज्ह् फ्ैंप्स्थ्य्यद्म·र्ैं द्बरूत्द्भह्र ·र्ैंय् फ्द्बय्द्म ·र्ैंद्यत्रर्‍ ब्ह् दृ झ्य्यट्टयअध्यक्षीय उद्बोधन में इस बार के साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष प्रो. चंद्रशेखर पाटिल ने कहा कि आज के समय में जिस ब़डी चुनौती का सामना किया जा रहा है वह है भाषा और उसके क्षेत्र का सम्मान। उन्होंने कहा कि आज संस्कृत, हिन्दी और अंग्रेजी को लेकर चुनौतियों पर भी चर्चाएं हो रही हैं। इसलिए यह हमारे लिए जरुरी है कि हम इन मुद्दों को देखें। पाटिल ने अपने उद्बोधन में आगामी विधानसभा चुनाव का जिक्र करते हुए कहा कि जल्द ही राज्य में चुनाव होने वाला है और यह हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण समय है कि हम उस धर्मनिरपेक्ष पार्टी को मतदान करें जो संवैधानिक मूल्यों का सम्मान करती है और हमारी राज्य के कल्याण को सुनिश्चित एवं सुरक्षित करती हो। द्नझ्रद्भ ज्रुयरूफ् द्बष्ठ्र यह्·र्ैं ·र्ैंयय्·र्ैंय्द्यह्र द्मष्ठ द्बद्म द्बह्ब्य्कन्ऩड साहित्य सम्मेलन के अवसर पर मैसूरु महल परिसर के पास से एक भव्य सांस्कृतिक जुलूस निकला जिसमें आकर्षक रूप से सजे हुए रथ में सम्मेलन के मुख्य अतिथि बैठे थे। वहीं सैंक़डों की संख्या में लोक कलाकार अपनी विविध प्रकार की रंगारंग और पारंपरिक सांस्कृतिक प्रस्तुतियां देते हुए करीब पांच किलोमीटर तक झूमते गाते आयोजन स्थल पर पहुंचे। वहीं जुलूस शुरु होने के पूर्व जिला प्रभारी मंत्री डॉ एचसी महादेवप्पा ने राष्ट्र ध्वज फहराया जबकि कन्ऩड साहित्य परिषद के अध्यक्ष मनु बलिगार ने कर्नाटक का प्रसिद्ध लाल-पीला झंडा फहराया। २७ वर्ष बाद राज्य की सांस्कृतिक राजधानी मैसूरु में हो रहे कन्ऩड साहित्य सम्मेलन को लेकर उत्सवी नजारा दिख रहा है। तीन दिवसीय सम्मेलन का समापन रविवार को होगा।

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