बेंगलूरु: अब कचरा फैलाना पड़ेगा महंगा, भारी जुर्माने की तैयारी में बीबीएमपी
बेंगलूरु: अब कचरा फैलाना पड़ेगा महंगा, भारी जुर्माने की तैयारी में बीबीएमपी
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। कई कोशिशों के बावजूद शहरभर में अनेक स्थानों पर कचरे के ढेर देखे जा सकते हैं। इसे नियंत्रित करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि लोग नियमों का पालन करें, बीबीएमपी और शहरी विकास विभाग ने प्रस्ताव दिया है कि राज्य सरकार भारी जुर्माने का प्रावधान करे।
बीबीएमपी आयुक्त बीएच अनिल कुमार ने मीडिया को बताया कि कचरे को अलग नहीं करने और सड़कों पर फेंक देने जैसे मामलों के लिए सरकार को जुर्माने में बढ़ोतरी का प्रस्ताव भेजा गया है। इसके अलावा उन कांट्रेक्टर और कचरा बीनने वालों पर जुर्माना लगाया जाएगा जो उसे मिला देते हैं और बेतरीब ढंग से फैला देते हैं।बीबीएमपी ने वर्तमान ठोस अपशिष्ट प्रबंधन मसौदा अधिसूचना में दी गई राशि की तुलना में जुर्माने को अधिक बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है। यह मसौदा एक-दो दिनों में जारी किया जाएगा। इसने प्रस्ताव दिया है कि एसडब्ल्यूएम नियम 2016 के अनुसार, 500-1,000 रुपए का जुर्माना लगाया जाए।
अब फीडबैक के आधार पर अधिसूचना को प्रारूपित करते हुए राशि तय की जाएगी। बीबीएमपी यह राशि ज्यादा रखना चाहती है ताकि वह असरदार भी हो। बीबीएमपी अधिकारियों ने कहा कि संशोधन यातायात जुर्माने की तर्ज पर होगा।
हालांकि जनता के विरोध के बाद इसमें कमी की गई लेकिन बीबीएमपी इस राशि को कम नहीं करेगी, क्योंकि वह स्वच्छता को लेकर जिम्मेदारी की भावना उत्पन्न करना चाहती है।
कुमार ने कहा कि सभी 198 मार्शलों को उपकरण दिए जाएंगे ताकि वे उन लोगों पर तुरंत जुर्माना लगा सकें जो कचरा फैलाते हैं और उसे अलग-अलग करने में नाकाम रहते हैं।
कोर बेंगलूरु से कुछ मौजूदा प्रहरी वाहनों को नए जोड़े गए सीएमसी और टीएमसी क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जाएगा जहां कचरा एक बड़ी समस्या है। ये वाहन गलत ढंग से कचरा फेंके जाने जैसे मामलों पर नजर रखेंगे।
श्वानों की गणना
बीबीएमपी के विशेष आयुक्त रणदीप डी ने कहा कि एबीसी कार्यक्रम को लागू करने और श्वानों की आबादी को जानने के लिए उन्हें चिह्नित करना शुरू कर दिया है। इसके लिए श्वान एप बनाया गया है, जहां प्रत्येक स्ट्रीट डॉग का विवरण एकत्र किया जा रहा है। अब तक 40 प्रतिशत स्ट्रीट डॉग्स को शामिल कर लिया गया है। यह विचार प्रत्येक वार्ड और क्षेत्र में श्वानों की आबादी का रिकॉर्ड रखने के लिए अमल में लाया गया है। सात साल बाद यह गणना की जा रही है। इस कार्य में पशु कल्याण समूहों और गैर-सरकारी संगठनों की मदद ली जा रही है।