सोलहवें वर्ष में प्रवेश
सोलहवें वर्ष में प्रवेश
श्रीकांत पाराशर
समूह संपादक, दक्षिण भारत
यह सब इसलिए संभव हुआ क्योंकि न तो हमने किसी प्रकार का अहंकार पाला और न हमने कभी हीन भावना को कोई स्थान दिया। हमने कुछ सामाजिक सरोकारों और मानवतावादी मूल्यों को हमेशा खास महत्व दिया। आज कोरोना की विषम परिस्थितियों में भी हम इंसानियत के उन उसूलों पर अडिग हैं। हमने इस कोरोना काल में अपने किसी कर्मचारी की छुट्टी नहीं की और न ही वेतन में कोई कटौती की। बल्कि हमने कर्मचारियों की आर्थिक स्थिति के मद्देनजर अतिरिक्त सहायता भी की ताकि उनको यह लगे कि उनका संस्थान अपनी क्षमतानुसार उनके साथ खड़ा है, वे अकेले नहीं है। हमने अपने कर्मचारियों के स्वास्थ्य का भी पूरा खयाल रखा, और रख रहे हैं।
बड़े बड़े अखबारों ने कर्मचारियों की छंटनी कर दी। किसी ने वेतन में कटौती कर दी। हमने कर्मचारियों को वर्क फ्राम होम के लिए आवश्यक सुविधाएं भी उपलब्ध कराईं। मैं अपने सहयोगियों से स्वयं सीधे संपर्क में हूं, संवाद करता हूं, उनकी हौसला अफजाई करता हूं। मजे की बात यह है कि मेरे सहयोगी थोड़े थोड़े अंतराल के बाद मुझे फोन करके मेरी सेहत के बारे में पूछते हैं। ऐसा है दक्षिण भारत। यह कर्मचारियों को अपने परिवार का सदस्य समझता है, नौकर नहीं।
कुछ कर्मचारी बड़े गर्व से डेढ दो वर्ष पहले छोड़कर गए थे कि वे किसी बड़े समूह में जाएंगे। वे गए और आज सबके सब सड़क पर हैं। हमारे साथियों से हालचाल पूछते हैं। हमारा समूह किसी कथित बड़े समूह से कर्मचारियों की संख्या में छोटा हो सकता है परंतु हमारा दिल बड़ा है। हमारी सोच बड़ी है। लोगों से हमारे संबंध गहरे हैं, आत्मीय हैं। इसलिए हमारे लिए कोई स्थिति विषम नहीं है।
अखबार के अलावा आज हमारा ईपेपर किसी से कम लोकप्रिय नहीं। हमारे अखबार के समाचारों और पाठकों के विचारों की पीडीएफ दिनभर सोशल मीडिया पर घूमती रहती हैं। फेसबुक और वाट्सएप पर दिनभर हमारी समाचार सेवा की चर्चा रहती है। हम ताजा समाचार पाठकों तक वाट्सएप के माध्यम से भी पहुंचाते हैं। हम सभा संस्थाओं के समाचारों को उचित महत्व देते हैं। हमारा अखबार पाठक समाचार पढने के लिए लेते हैं, शोक समाचारों के लिए नहीं।
हम धार्मिक समाचारों को, साधुसंतों के विचारों को सम्मान से छापते हैं। हम खुश हैं और अपेक्षा करते हैं कि आप सब हितैषियों का सहयोग पूर्ववत मिलता रहे। हम अपना काम पहले की तरह ईमानदारी से जारी रखेंगे। हम सही लिखते समय यह परवाह नहीं करते कि इससे आर्थिक नुकसान होगा। सच्चाई और निष्पक्षता हमारी कमजोरी नहीं, ताकत है। आप सबका साथ इस ताकत को और मजबूती प्रदान करेगा। धन्यवाद।