‘पेट्रोलियम उत्पादों पर कर समानता की जरुरत’

‘पेट्रोलियम उत्पादों पर कर समानता की जरुरत’

हैदराबाद। पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने ग्राहकों के हितों को ध्यान में रखते हुए पेट्रोलियम पदार्थों को माल एवं सेवा कर (जीएसटी) के दायरे में लाने के लिए वित्त मंत्रालय से अपील की है। अपने कदम पर सही ठहराते हुए प्रधान ने कहा कि पूरे देश में ‘एकसमान कर व्यवस्था‘ होनी चाहिए। प्रधान ने भाषा से कहा, ‘पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के दायरे में लाना पेट्रोलियम मंत्रालय का प्रस्ताव है। हमने राज्य सरकारों और वित्त मंत्रालय से पेट्रोलियम वस्तुओं को जीएसटी के दायरे में लाने की अपील की है। उपभोक्ताओं के हितों को देखते हुये करों को युक्तिसंगत रखने की जरुरत है।‘ उन्होंने आगे कहा, ‘पेट्रोलियम पदार्थों पर दो तरह के कर लगते हैं, जिसमें एक केंद्रीय उत्पाद शुल्क और दूसरा वैट है। यही कारण है कि उद्योग के दृष्टिकोण से समान कर तंत्र की उम्मीद कर रहे हैं।‘ दैनिक आधार पर पेट्रोल और डीजल की कीमतों की समीक्षा को सही ठहराते हुए प्रधान ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा जो भी शुल्क एकत्रित किया जाता है उसमें से राज्यों को ४२ प्रतिशत हिस्सेदारी प्राप्त होती है। पेट्रोल और डीजल का घरेलू मूल्य अंतरराष्ट्रीय कीमतों से निर्धारित होता है। जो भी अंतर्राष्ट्रीय कीमत होती है वहीं उपभोक्ताओं के पास जाती है। जब कीमतों में वृद्धि होती है तो हमें ब़ढोत्तरी करनी प़डती है, उसी तरह जब गिरावट आती है हम दामों में कमी करते हैं।पेट्रोलियम मंत्री ने कहा, ‘केंद्रीय कर का ४२ प्रतिशत हिस्सा राज्यों से आता है और राज्यों की अपनी स्वयं की कर प्रणाली है। राज्यों से आ रहे कर संग्रह का एक ब़डा हिस्सा उपयोग किया जाता है। उन्होंने कहा कि देश में विभिन्न कल्याणकारी परियोजनाओं को लागू करने के लिए धन की आवश्यकता होती है। क्या आपको नहीं लगता कि हमें अच्छी स़डकों का निर्माण करना चाहिए, क्या आपको नहीं लगता कि हमें नागरिकों को साफ पेयजल देना चाहिए। भारत सरकार के खर्ज को देखिये। पहले गरीबों की आवासीय योजना पर सरकार ७०,००० प्रति इकाई खर्च करता थी और अब १.५ लाख रुपये खर्च कर रही है।उन्होंने कहा, ‘आपको क्या लगता है सरकार को ये पैसा कहां से मिलता है? आप सोचते हैं कि हमने खजाने में पैसा रखा हुआ है। हम अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए बुनियादी ढांचा निर्माण में पैसा खर्च कर रहे हैं।‘

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