दीये तले अंधेरा न रह जाए
दीये तले अंधेरा न रह जाए
श्रीकांत पाराशर
समूह संपादक, दक्षिण भारत राष्ट्रमत
हम यहां वीडियो से लेकर फोटो प्रकाशित नहीं करना चाह रहे हैं क्योंकि उनकी पहचान बताना इस समाचार का ध्येय नहीं है। लगता है किसी ने इस कार्यक्रम का वीडियो किसी एजेंडा के तहत बनाया और सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया। कुछ लोगों ने इस वीडियो को कापी कर अपनी अपनी टिप्पणियों के साथ फिर फोरवार्ड कर दिया। कुल मिलाकर जिस रूप में यह लोगों तक पहुंचा तो काफी लोगों की भावनाएं आहत हुईं। इसका कारण यह था कि मारवाड़ी समाज की अनेक संस्थाएं हैं जो रोज हजारों लोगों की मदद करने में जी जान से लगी हैं। कोई तैयार भोजन उपलब्ध करा रहा है तो कोई राशन किट,फल, सब्जी भी निशुल्क बांट रहा है। इस पर अब तक करोड़ों रुपये खर्च किए जा चुके हैं। ऐसे में यह सवाल उठ खड़ा हुआ कि जरूरतमंदों की सेवा में हमेशा तैयार रहने वाले मारवाड़ी समाज में भी क्या ऐसे परिवार इतनी बड़ी संख्या में हैं कि उन्हें राशन सामग्री के किट लेने के लिए लाइन में खड़ा होना पड़े?
मुझे लगता है कि इस वीडियो के कई पहलू हैं। संक्षेप में उन सब पर गौर करना होगा। पहली बात, यह साफ लगता है कि किसी व्यक्ति विशेष ने जानबूझकर यह वीडियो बनाया और पोस्ट किया ताकि मारवाड़ी समाज को आक्वार्ड पोजीशन में डाला जाए और यह बताया जाए कि एक तरफ तो यह समाज दूसरों की मदद करने में हजारों लाखों रुपये खर्च करता है और दूसरी तरफ इसी समाज के बहुत से परिवारों की ऐसी दयनीय स्थिति है कि उन्हें दो वक्त के खाने के इंतजाम में फ्री डिस्ट्रीब्यूशन वाली लाइन में खड़ा होना पड़ता है। यह सच है कि किसी भी समुदाय में सब के सब लोग आर्थिक रूप से समृद्ध हों, ऐसा नहीं होता। मारवाड़ियों में भी अनेक जाति, समुदाय,सम्प्रदाय हैं और सभी में कुछ परिवार कमजोर आर्थिक स्थिति वाले भी होंगे ही। इनकी मदद इनके जाति-धर्म वाले लोग और संगठन करते रहते हैं। विशेष रूप से जैन समुदाय में तो साधर्मिक सहयोग के लिए बाकायदा अलग से कोष रहता है और पहचान गुप्त रखकर भी वे अपने साधर्मिक परिवारों की आर्थिक मदद करते हैं।
यह केवल किसी विपदा के समय ही नहीं, बाकी समय में भी निरंतर चलने वाली व्यवस्था है। इस समय कोरोना संकट के मद्देनजर तो सभी जाति-धर्म के मारवाड़ियों और अन्य प्रवासियों के संगठन अपने अपने स्तर पर सबके लिए यानी कि हर जरूरतमंद की मदद कर रहे हैं, फिर वे अपने लोगों की मदद नहीं करेंगे, ऐसा नहीं हो सकता। ऐसा सोचना भी ठीक नहीं। मुझे लगता है कि इन परिवारों तक यह जानकारी नहीं पहुंच सकी कि इन्हीं के समाज और समुदाय के संगठन खुशी खुशी इनकी मदद करने को तैयार हैं बशर्ते उनको पता हो कि कौनसे परिवार इतने गहरे आर्थिक संकट में हैं कि उन्हें लाइन में लगना पड़ रहा है। मुझे लगता है कि इसे या तो कुछ हद तक संस्थाओं के कम्युनिकेशन तंत्र की कमजोरी कही जा सकती है कि ऐसे परिवारों तक यह जानकारी नहीं पहुंच सकी कि उनकी मदद के लिए समाज के लोग पलक पांवड़े बिछाए हुए सम्मान के साथ तैयार खड़े हैं या फिर इन परिवारों की जागरूकता में कहीं कोई कमी रह गई है जिससे इनको पता ही नहीं है कि ऐसे हालात में किनसे सम्पर्क किया जाए?
दूसरी बात, मैं सभी सामाजिक संस्थाओं से भी कहना चाहता हूं कि सैंकड़ों सामाजिक संगठन होते हुए भी अभी तक यह स्थिति क्यों बनी हुई है कि हमें अपने भाइयों के बारे में इतनी जानकारी नहीं है कि कितने परिवारों के लिए दैनिक भोजन तक की समस्या है? हम अब तक इतना सा डाटा क्यों तैयार नहीं कर सके? अपने अपने स्तर पर हर संगठन को इस मामले में दुरुस्त होना चाहिए था। जागो तभी सवेरा। अब तक जानकारी नहीं थी तो अब जुटाएं। यदि किसी समुदाय या सम्प्रदाय या प्रदेश प्रवासी का अपना भाई भूखा है और उसका संगठन राष्ट्र और विश्व की मदद करने की बात करता है तो वह खोखलापन है, दिखावा है, प्रचार का मोह है। अपने घर के दीये तले अंधेरा होगा तो हमारा बाहर प्रकाश फैलाने का प्रयास व्यर्थ है। मैं तो यही कह सकता हूं कि आज ही सब संगठन यह संकल्प लें कि हम बड़े बड़े सेवाकार्य हाथ में लेने और भव्य आयोजन करने से भी ज्यादा प्राथमिकता इस बात को देंगे कि उनका अपना कोई भूखा न सोये।
एक पहलू यह भी है कि आजकल अपने ही समाज को बदनाम करने का एक फैशन सा चल गया है। जो लोग समाजसेवी कार्य करते हैं, उनकी पहचान बनना, समाज में उनकी प्रतिष्ठा बढना, उनके संगठन की कीर्ति फैलना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। जो लोग ऐसा नहीं कर सकते या नहीं करना चाहते उनमें एक कुंठा बैठ जाती है, फ्रस्ट्रेशन अंदर तक पैठ जाता है और वे लोग दूसरों की सराहना सुनना, पढना पसंद नहीं करते। ऐसे लोग अपने अपने तरीके से समाजसेवी संस्थाओं पर अप्रत्यक्ष रूप से कीचड़ फैंककर आत्मसंतुष्टि की अनुभूति करते रहते हैं भले ही इसकी कीमत पूरे समाज को चुकानी पड़े, पूरे समाज की प्रतिष्ठा धूमिल क्यों न हो जाए। यदि ऐसा नहीं होता तो यह वीडियो वायरल नहीं होता बल्कि उन महिलाओं को गाइड किया जाता कि उनको राशन किट संस्था कैसे उपलब्ध कराने में सक्षम है। ऐसे लोगों का कर तो कुछ नहीं सकते। अपने सिस्टम यानी कि कार्यशैली को दुरुस्त करके ऐसी कुत्सित सोच को मात दी जा सकती है।
जीतो, कर्नाटक मारवाड़ी यूथ फेडरेशन, गोड़वाड़ भवन,अग्रवाल समाज, माहेश्वरी सभा, आदिनाथ मंदिर, उत्तर प्रदेश सेवा मंडल, सीरवी समाज, राजपुरोहित समाज, विभिन्न जैन संगठन, विभिन्न सामुदायिक संगठन, सब लोग जरूरतमंदों की सेवा कर रहे हैं और करने को तत्पर हैं। किसी भी व्यक्ति को किसी भी मारवाड़ी समुदाय या प्रवासी समुदाय का कोई परिवार गहरे संकट में दिखाई दे, जिसके खाने के भी लाले पड़े हैं तो इन संस्थाओं के किसी भी पदाधिकारी से संपर्क करें।
यदि किसी से संपर्क न हो सके तो मुझे संपर्क कर सकते हैं। मुझे मेरे ईमेल आईडी पर ऐसे अभावग्रस्त परिवार का संपर्क सूत्र भेजें, मैं समाधान करने का प्रयास करू़ंगा। मेरा आईडी है…[email protected] या हमारे विपणन प्रमुख देवेन्द्र शर्मा से फोन न. 99454 88002 पर संपर्क कर सकते हैं। कितने ही संगठन सेवा को तत्पर हैं। यही क्यों, व्यक्तिगत रूप से अनेक जनों ने मुझे कह रखा है कि कोई भी वास्तविक जरूरतमंद परिवार हो तो उनकी मदद करने का सौभाग्य उन्हें प्रदान करें। मैं कह सकता हूं कि हमारा समूचा प्रवासी समाज, धर्म जाति से ऊपर उठकर मदद करने को लालायित रहता है, यह क्या कम गर्व की बात है? आइए, नकारात्मक सोच वालों को नजरंदाज करें और सकारात्मक सोच के साथ अच्छे कार्यों में लगे रहें और यह देखें कि कहीं हमारे दीये तले अंधेरा तो नहीं?