क्या राहुल कर्नाटक बचा पाएंगे?
क्या राहुल कर्नाटक बचा पाएंगे?
बेंगलूरु। राज्य विधानसभा चुनाव में अब बमुश्किल दो महीने का वक्त रह गया है। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यहां भाजपा के चुनाव प्रचार का आगाज किया तो दूसरी ओर अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राहुल गांधी भी चार दिनों तक हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र का दौरा कर यहां कांग्रेस के लिए चुनावी माहौल बनाने में जुटे रहे। अब कांग्रेस पूरे देश को यह बता रही है कि विकास के लिए कर्नाटक मॉडल जरूरी है, जहां पर न सिर्फ सबके लिए काम होता है, बल्कि नीतियों को सफलतापूर्वक लागू किया जाता है। कांग्रेस का अध्यक्ष पद संभालने के बाद राहुल गांधी के लिए कर्नाटक पहला ब़डा चुनाव है। गुजरात में बीजेपी को उसके ग़ढ में १०० सीटों के अंदर समेटने और हाल में हुए उपचुनावों में जीत हासिल करने के बाद कांग्रेस उत्साहित तो है, लेकिन डरी हुई भी है। कांग्रेस अध्यक्ष के सामने सबसे ब़डी चुनौती कर्नाटक में अपनी सत्ता बचाने की है। अगर कांग्रेस कर्नाटक बचाने में कामयाब होती है तो राहुल गांधी को इसका ़फायदा साल के अंत में होने वाले भाजपा शासित राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसग़ढ और राजस्थान के साथ ही वर्ष २०१९ के लोकसभा चुनाव में भी मिल सकता है। लोकसभा में कर्नाटक की २८ सीटें हैं्। इस चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन का़फी मायने रखता है। यह बात लोकलुभावन बजट में सा़फ दिखी।राज्य के वित्त विभाग का प्रभार भी संभालने वाले मुख्यमंत्री सिद्दरामैया ने बजट के जरिए केन्द्र सरकार के लोक-लुभावन नीतियों का मुकाबला किया। उन्होंने भविष्य में राज्य और केन्द्र में कांग्रेस की नीतियों का साफ संकेत भी दिया। स्वास्थ्य के क्षेत्र में बीमा कवरेज और निःशुल्क एलपीजी गैस कनेक्शन के साथ-साथ बिना सिंचाई सुविधा वाले क्षेत्रों में खेती करने वाले किसानों की परेशानियों को दूर करने के लिए कई घोषणाएं की गई हैं। किसानों के लिए बजट में खास प्रावधान रखे गए हैं्। इनसे राज्य में ़करीब ७० लाख किसानों को ़फायदा होगा। ध्ह्ख्ह्र ृय्स्द्य द्बर््यठ्ठद्भय् फ्ष्ठ ज्रुठ्ठणक्कद्मष्ठ ·र्ैंर् द्यह्लय्द्मर््यत्रकांग्रेस इन दिनों पूरी ताकत से लोगों के साथ अपना संवाद बेहतर बनाने में जुटी है। गुजरात के चुनाव अभियान में मिली कामयाबी को पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर दोहराना चाहती है। पार्टी ने उन नेताओं के नाम कमोबेश तय कर लिए हैं जो चुनाव के दौरान पार्टी के आधिकारिक प्रवक्ता होंगे और मीडिया में अपनी बात रखेंगे। इन नेताओं को ख़ास वर्कशॉप लगाकर ट्रेनिंग दी जा रही है। पार्टी की रणनीति यह है कि अपने पक्ष को ते़जी से जनता के सामने रखा जाए और किसी भी मुद्दे पर तेजी से प्रतिक्रिया भी दी जाए। इसके लिए पार्टी ने मीडिया से ताल्लुकात बेहतर करने की कोशिशें भी शुरू कर दी हैं। ब़डबोले नेताओं को प्रचार से दूर रखने का निर्णय लिया गया है, जिसकी वजह से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आधिकारिक तौर पर बोलने से बच रहे हैं।द्धल्लय्द्यर् फ्ष्ठ द्यय्ब्रुध् ·र्ैंय् प्रय्ैंक्वद्मय्ख्रपार्टी की कोशिश है कि लोग कांग्रेस आलाकमान राहुल गांधी को भविष्य के प्रधानमंत्री के रूप में स्थापित करें। इसी रणनीति के तहत राहुल गांधी का चुनाव प्रचार बल्लारी से शुरू किया गया,जहां से सोनिया गांधी ने सबसे पहले लोकसभा चुनाव ल़ड कर जीत हासिल की थी। उन्होंने भाजपा दिग्गज सुषमा स्वराज को वहां से हराया था। राहुल गांधी यहां कार्यकर्ताओं और मतदाताओं से मिले। लोगों से कहा कि यही वह जगह है, जहां से आपने मेरी मां को लोकसभा भेजा था। तब मैं अपनी मां के साथ आया करता था। वहीं जेवारगी में राहुल ने स्वर्गवासी पूर्व मुख्यमंत्री धरम सिंह का ि़जक्र करते हुए कहा कि वह और मल्लिकार्जुन खरगे ने क्षेत्र के लिए ़फंड और लोगों के लिए रो़जगार जुटाने का काम किया। उन्होंने वादा किया कि वो क्षेत्र को पिछ़डे सेक्शन ३७१(जे) (पिछ़डा क्षेत्र) के तहत लाएंगे।ख्रुज्द्यय्त्र द्मब्र््र, ृद्ध ·र्ैंद्मय्श्चट्ट·र्ैं द्धद्मष्ठख्य् द्बय्स्रठ्ठध्कांग्रेस की कोशिश है कि लोगों के सामने सिद्दरामैया का कर्नाटक मॉडल एक उदाहरण के रूप में रखे। राहुल बार-बार कर्नाटक मॉडल का जिक्र कर रहे हैं और इसके जरिए प्रधानमंत्री मोदी के गुजरात मॉडल व उनकी सरकार पर निशाना साध रहे हैं। ’’जो कहते हैं, वो करते हैं’’ का नारा लेकर राहुल गांधी दलित, किसान और अल्पसंख्यकों को लुभा रहे हैं।थ्द्बश्च ृय्स्द्य ज्य्यत्र ·र्ैंह् फ्य्थ्द्मष्ठ ·र्ैंय् झ्श्नद्भय्फ्गुजरात चुनाव के बाद कांग्रेस अध्यक्ष अब मंदिर दर्शन के साथ ही दरगाह पर चादर च़ढाकर हिंदुओं के साथ-साथ मुस्लिम वोटरों को भी साधने में लगे हैं। कर्नाटक में उन्होंने मंदिर और दरगाह दोनों जगह अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। कलबुर्गी में वह मशहूर बसवेश्वर मंदिर गए। इस मंदिर को शहर का ग्राम देवता भी कहा जाता है और यहां पर हिंदू के साथ ही मुस्लिम समुदाय के लोग भी आते हैं। ख़ासतौर पर लिंगायत समुदाय के लोग ब़डी संख्या में इस मंदिर में आते हैं्। बसवेश्वर मंदिर के दर्शन के बाद राहुल ने कलबुर्गी में ही ख्वाजा बंदे नवा़ज की दरगाह पर चादर च़ढाई और कर्नाटक चुनाव में जीत के लिए दुआ मांगी। कांग्रेस की यह रणनीति सि़र्फ मंदिर-दरगाह के दर्शन में ही नहीं बल्कि प्रदेश इकाई परिवर्तन में साफ दिखी। कांग्रेस की प्रदेश इकाई की कमान दलित नेता जी. परमेश्वर के हाथों में है। वहीं लिंगायत नेता एसआर पाटिल को उत्तर कर्नाटक का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया क्योंकि इस इलाके में लिंगायत समुदाय का असर है। इसी तरह वोक्कालिगा समुदाय के नेता डीके शिवकुमार को प्रचार अभियान समिति की कमान दी गई। दिनेश गुंडूराव (ब्राह्मण) को कांग्रेस ने दक्षिण कर्नाटक का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया। पिछ़डी जातियों का प्रतिनिधित्व करने के लिए मुख्यमंत्री सिद्दरामैया हैं ही। वे कुरुबा (पिछ़डे) समुदाय से ताल्लु़क रखते हैं।द्यय्ज्द्मर््यत्र द्बष्ठ्र ्यध्ैंख्य्द्भत्रह्र ·र्ैंय् झ्श्नद्नय्प्लिंगायत समुदाय को अलग धर्म की मान्यता देने की मांग का मुख्यमंत्री सिद्दरामैया ने खुलकर समर्थन किया थां कर्नाटक की आबादी में १८ ़फीसदी लिंगायत समुदाय के लोग हैं्। प़डोसी राज्यों महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी लिंगायतों की अच्छी खासी आबादी है। ब़डी जनसंख्या और आर्थिक मजबूती की वजह से कर्नाटक की राजनीति पर इनका प्रभावी असर है। अस्सी के दशक की शुरुआत में रामकृष्ण हेग़डे ने लिंगायत समाज का भरोसा जीता। हेग़डे की मृत्यु के बाद बीएस येड्डीयुरप्पा लिंगायतों के नेता बने। वर्ष २०१३ में भाजपा ने येड्डीयुरप्पा को सीएम पद से हटाया तो लिंगायत समाज ने भाजपा को वोट नहीं दिया।सोनिया गांधी ने पिछले विधानसभा चुनाव से पहले २०१२ में लिंगायतों के सिद्धगंगा मठ के प्रमुख शिवकुमार स्वामी की १०५वीं सालगिरह पर आयोजित समारोह में भाग लिया था। नतीजतन कांग्रेस फिर से सत्ता में लौट आई। अब भाजपा फिर से लिंगायत समाज में गहरी पैठ रखने वाले येदियुरप्पा को सीएम कैंडिडेट के रूप में आगे रख रही है। अगर कांग्रेस लिंगायत समुदाय के वोट को तो़डने में सफल होती है तो यह भाजपा के लिए नुकसानदेह साबित होगी।