अंधविश्वास की जड़ें

अगर लोगों में जागरूकता का प्रचार-प्रसार नहीं किया गया तो ऐसी घटनाएं भविष्य में भी हो सकती हैं

अंधविश्वास की जड़ें

क्या किसी को पीड़ा देकर खुद के लिए खुशियों का वरदान प्राप्त किया जा सकता है?

हमारा देश विज्ञान के क्षेत्र में इतनी प्रगति कर चुका है, जिसका लोहा अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक संगठन भी मानते हैं। चाहे जन-जन तक कोरोनारोधी वैक्सीन पहुंचानी हो या चंद्रयान-3 की सफलता हो, भारतीय वैज्ञानिकों ने अपनी प्रतिभा और परिश्रम से दुनिया को चमत्कृत कर दिया है। वहीं, आज भी कुछ इलाकों में लोग अंधविश्वास से नहीं निकल पा रहे हैं। कई बार यह प्रवृत्ति बहुत घातक सिद्ध हो जाती है। ओडिशा के कंधमाल जिले में एक आदिवासी दंपति की हत्या के मामले में पुलिस ने जो दावा किया, उससे पता चलता है कि समाज में अंधविश्वास की जड़ें बहुत गहराई तक मौजूद हैं। अगर लोगों में जागरूकता का प्रचार-प्रसार नहीं किया गया तो ऐसी घटनाएं भविष्य में भी हो सकती हैं। उक्त मामले में पहले तो यह शक जताया जा रहा था कि माओवादियों ने दंपति की हत्या कर दी, लेकिन बाद में पुलिस ने दावा किया कि यह हत्या जादू-टोने के शक में की गई है। मामले की हकीकत जो भी हो, वह सामने आनी चाहिए। यह जानकर हैरत होती है कि आज भी लोग इस बात पर यकीन कर लेते हैं कि अगर किसी गांव में कुछ लोग बीमार पड़ गए हैं तो इसके पीछे किसी का जादू-टोना हो सकता है! लोगों को ऐसे अंधविश्वासों में पड़ने के बजाय चिकित्सकों की सहायता लेनी चाहिए, अपनी जांच करानी चाहिए। आज चिकित्सा विज्ञान ने इतनी उन्नति कर ली है कि कुछ लम्हों की जांच में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का पता चल जाता है। देश में प्रतिभाशाली चिकित्सक हैं, उत्कृष्ट श्रेणी की दवाइयां हैं। बीमार होने पर इनसे स्वास्थ्य-लाभ होगा, न कि किसी जादू-टोने के फेर में फंसने से। उससे तो बीमारी ज्यादा बढ़ सकती है। बल्कि ऐसे भी मामले देखे गए हैं, जिनमें अंधविश्वास के कारण उस व्यक्ति की जान पर ही बन आई थी।

राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में होली और दीपावली जैसे त्योहारों पर कुछ अंधविश्वासी लोग अपने कथित फायदे के लिए ऐसे कृत्य करते मिल जाते हैं, जिससे वे दूसरों को मुसीबत में डाल देते हैं। हालांकि अब ऐसी कुप्रथाएं काफी कम हो गई हैं, लेकिन कहीं-कहीं इनका प्रचलन देखने को मिलता है। अस्सी के दशक तक ये जोरों पर थीं। उस जमाने में पशुपालकों को होली-दीपावली और अमावस्या जैसे अवसरों पर अपने पशुओं का खास ध्यान रखना होता था। चूंकि कुछ लोग अंधविश्वास के वशीभूत होकर दूसरों के पशुधन को नुकसान पहुंचाने की कोशिशें करते थे। कई पशुओं की पूंछ तक काट ली जाती थी। क्या किसी पशु को पीड़ा देकर खुद के लिए खुशियों का वरदान प्राप्त किया जा सकता है? कदापि नहीं, क्योंकि हमारे ऋषियों-मुनियों ने तो दूसरों को पीड़ा देने को घोर पाप माना है। आज भी कुछ इलाकों में ऐसी कुप्रथाएं हैं, जिनके फेर में फंसने वाले मानते हैं कि इनका पालन करने से उन्हें संतान की प्राप्ति होगी। इसके तहत वे दूसरों की संतान को नुकसान पहुंचाने से भी नहीं हिचकते। इस तरह अंधविश्वास के रास्ते पर चलकर अपनी मनोकामना पूरी करने का ख्वाब उन्हें अपराध की ओर धकेल देता है। याद करें, अगस्त 2023 में झारखंड में कुछ निर्दोष महिलाओं को डायन जैसी कुप्रथा के नाम पर सताने की घटनाएं सुर्खियों में रही थीं। प्राय: इन महिलाओं को अपमानित करने के लिए कुछ शातिर लोग झूठी कहानियां गढ़ते हैं। बाद में अफवाह फैलाकर इनका उत्पीड़न करते हैं। इस कुप्रथा के मामलों के मद्देनजर उच्च न्यायालय ने उन्हें रोकने के लिए प्रशासन द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में राज्य सरकार को विस्तृत रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया था। अंधविश्वास के नाम पर हर तरह का शोषण, उत्पीड़न बंद होना चाहिए। लोगों को विभिन्न माध्यमों से जागरूक करना चाहिए। अगर जरूरी हो तो सरकार को कानून भी बनाना चाहिए।

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