त्याग, तपस्या, धैर्य

अयोध्या में आज जहां भव्य मंदिर है, उसके पीछे रामभक्तों की सदियों की तपस्या है

त्याग, तपस्या, धैर्य

स मंदिर की नींव पुख्ता दस्तावेजों और अकाट्य प्रमाणों पर टिकी है

अयोध्या में भगवान श्रीराम की प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा और देशभर में उत्सव को देखकर ‘अंतरराष्ट्रीय मीडिया’ के एक वर्ग को भारी पीड़ा हो रही है। उनकी रिपोर्टों और पाकिस्तानी विदेश कार्यालय की प्रेस विज्ञप्ति को पढ़कर ऐसा प्रतीत होता है कि एक ही व्यक्ति ने इन्हें लिखा है। यह भी संदेह होता है कि ‘अंतरराष्ट्रीय मीडिया’ के उस वर्ग ने पाकिस्तानी विज्ञप्ति को कॉपी कर छाप दिया! निस्संदेह पाकिस्तान और मीडिया के उक्त वर्ग की भगवान श्रीराम में आस्था नहीं है, लेकिन वे यह क्यों भूल जाते हैं कि प्रभु राम दुनिया में करोड़ों-करोड़ों लोगों के आराध्य हैं? अयोध्या में आज जहां भव्य मंदिर है, उसके पीछे रामभक्तों की सदियों की तपस्या है। इस मंदिर की नींव पुख्ता दस्तावेजों और अकाट्य प्रमाणों पर टिकी है। राम जन्मभूमि के मामले के उच्चतम न्यायालय तक पहुंचते-पहुंचते कितने ही दस्तावेजों का अध्ययन किया गया, खुदाई से निकले अवशेषों को जांचा गया ... इन सब पर वकीलों के बीच घंटों बहस होती थी। उच्चतम न्यायालय में एक-एक बिंदु को लेकर जिस तरह तर्क-वितर्क दिए गए और स्पष्ट निर्णय आया, उसके बाद तो किसी के मन में कोई संदेह होना ही नहीं चाहिए। उस निर्णय की प्रति ऑनलाइन उपलब्ध है। जो चाहे, उसे डाउनलोड कर पढ़ सकता है। हां, जो तमाम दस्तावेजों, प्रमाणों, तर्कों और ऐतिहासिक घटनाओं को नहीं मानना चाहता, उसे कोई नहीं समझा सकता। पाकिस्तान की विज्ञप्ति और ‘अंतरराष्ट्रीय मीडिया’ की ये रिपोर्टें सच्चाई से कोसों दूर हैं। उन्हें प्राण-प्रतिष्ठा समारोह तो खूब दिखाई देता है, लेकिन यह क्यों दिखाई नहीं देता कि पांच सौ साल पहले एक क्रूर आक्रांता ने यहां पहले से विद्यमान मंदिर को ढहाया था? ख़ासकर, पाकिस्तान को बहुत चिंता हो रही है कि अब भारत में लोकतंत्र, सेकुलरिज्म का क्या होगा! पाकिस्तान पहले खुद तो देखे कि उसके यहां कितना लोकतंत्र और सेकुलरिज्म है? 

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जिस देश में प्रधानमंत्री या तो फांसी के फंदे पर टांग दिए जाते हैं या बम से उड़ा दिए जाते हैं या निर्वासित जीवन जीने को मजबूर होते हैं, जहां फौजी तानाशाह कानून को बूटों तले रौंदकर जब चाहें ‘शहंशाह’ बन जाते हैं, वह देश हमें लोकतंत्र पर उपदेश दे रहा है! पाकिस्तानियों ने कभी लोकतंत्र देखा भी है? पाकिस्तान सेकुलरिज्म पर कैसे बात कर सकता है, जबकि वह खुद कट्टर व संकीर्ण विचारधारा से शासित है? पाकिस्तान में कभी 25 प्रतिशत अल्पसंख्यक हुआ करते थे, जो आज महज एक प्रतिशत रह गए हैं! वहां अल्पसंख्यक समुदाय का व्यक्ति कितना ही योग्य क्यों न हो, वह प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, सेना प्रमुख, खुफिया एजेंसियों का प्रमुख बन ही नहीं सकता। पाकिस्तान का कानून अल्पसंख्यकों को ये पद देने से साफ-साफ मना करता है। पाकिस्तान में एक हजार से ज्यादा बड़े मंदिर थे, जिनमें से ज्यादातर या तो ढहा दिए गए या उन पर अतिक्रमण कर लिया गया। पाकिस्तान पहले अपने अल्पसंख्यकों के उपासना स्थलों की तो परवाह कर ले! अयोध्या में श्रीराम मंदिर सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करते हुए बनाया गया है। इतिहास इस बात को अवश्य लिखेगा कि सनातन धर्मावलंबियों ने किस तरह सदियों तक त्याग, तपस्या और धैर्य के साथ प्रतीक्षा की थी! जब विदेशी आक्रांता ने तत्कालीन मंदिर को ढहाया था, तब कई लोगों ने कठोर संकल्प लिए थे। अयोध्या के आस-पास के इलाकों में ऐसे परिवार मिलेंगे, जिन्होंने सदियों से पगड़ी नहीं पहनी ... जूते नहीं पहने ... शादी में घोड़ी पर नहीं बैठे ... त्योहारों पर खास तरह के पकवान खाने बंद कर दिए ... क्योंकि उनके पूर्वजों ने कहा था कि जब इस स्थान पर भव्य मंदिर में रामलला पुनः विराजमान होंगे, उसी दिन हमारे संकल्प पूरे होंगे। वे संकल्प अब पूरे हुए हैं। पाकिस्तान तो भ्रमित देश है। वह अपने पूर्वजों के गौरव पर शर्मिंदगी महसूस करता है। इसलिए कभी खुद को अरबों से जोड़ता है तो कभी तुर्कों से! कभी वह अफगान बनने की कोशिश करता है, कभी ईरान में अपनी जड़ें तलाशता है। उसे ऐसा करने दें, लेकिन ‘अंतरराष्ट्रीय मीडिया’ खुद भ्रमित न हो। उसे श्रीराम मंदिर पर कुछ भी लिखने से पहले निष्पक्ष होकर इतिहास का अध्ययन करना चाहिए। अगर दुष्प्रचार करेंगे तो विश्वसनीयता समाप्त हो जाएगी, जो अभी संदेह के घेरे में है।

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