'वरदान' का सदुपयोग करें

भूजल स्तर बढ़ाने के लिए ठोस उपाय करने की जरूरत है

'वरदान' का सदुपयोग करें

भविष्य में हालात और ज्यादा मुश्किल न हों, इसके लिए तैयारी अभी से करनी होगी

देश में घटते भूजल संबंधी आंकड़े भविष्य में इस समस्या के और गंभीर होने के संकेत दे रहे हैं। भूजल के अतिदोहन से कई इलाकों में तो हालात बहुत बिगड़ चुके हैं। ऐसे में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गांधीनगर के एक नए अध्ययन में किया गया यह दावा कि 'उत्तर भारत में साल 2002 से लेकर 2021 तक लगभग 450 घन किलोमीटर भूजल घट गया और निकट भविष्य में जलवायु परिवर्तन के कारण इसकी मात्रा में और भी गिरावट आएगी', बताता है कि भूजल स्तर बढ़ाने के लिए ठोस उपाय करने की जरूरत है। देश में गर्मियों का मौसम आते ही कई इलाकों में पेयजल संकट गहरा जाता है। इस साल राष्ट्रीय राजधानी से लेकर बेंगलूरु और चेन्नई जैसे शहरों में भी लोग खासे परेशान रहे। जनता इस समस्या से किसी तरह निजात पाने की कोशिश करती है कि मानसून आ जाता है। कई राज्यों में बाढ़ के कारण जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। सामान्य बारिश की स्थिति में भी नालियां अवरुद्ध हो जाती हैं। सड़कों पर बड़े-बड़े गड्ढे बारिश के पानी से लबालब रहते हैं। एक तरफ पेयजल के लिए ऐसा हाहाकार, दूसरी तरफ बारिश के मौसम में सर्वत्र पानी ही पानी! ये दोनों तस्वीरें बताती हैं कि पानी के इस संकट के लिए कहीं-न-कहीं हम जिम्मेदार हैं। जब कुदरत हमारे देश पर इतनी मेहरबान है तो उसके वरदान का सदुपयोग करने में देरी क्यों की गई? दशकों तक अनदेखी और भूजल के अतिदोहन का नतीजा यह निकला कि कई इलाकों में ऐसे कुएं भी सूखे पड़े हैं, जिनके पानी से कई एकड़ में फसलें तैयार होती थीं।  

Dakshin Bharat at Google News
हैदराबाद स्थित राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) के शोधार्थियों के दल के इस निष्कर्ष को नहीं भूलना चाहिए कि 'मानसून के दौरान कम बारिश होने और सर्दियों के दौरान तापमान बढ़ने के कारण सिंचाई के लिए पानी की मांग बढ़ेगी और इसके कारण भूजल पुनर्भरण में कमी आएगी, जिससे उत्तर भारत में पहले से ही कम हो रहे भूजल संसाधन पर और अधिक दबाव पड़ेगा।' स्पष्ट है कि सिंचाई के लिए कम पानी होगा तो नई पीढ़ी के किसान खेती से दूर होंगे। उन्हें आमदनी के दूसरे स्रोत तलाशने होंगे। राजस्थान के कई इलाकों में ऐसा हो रहा है। वहां कई खेत हैं, जो आज वीरान पड़े हैं, क्योंकि सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं है। कभी उन खेतों में गेहूं, जौ, चना, सरसों आदि की फसलें लहलहाती थीं। अब वहां बाजरा, ग्वार, मूंग की ही खेती होती है, वह भी मानसून के भरोसे। अगर समय पर मानसून आ गया तो बुआई अच्छी हो जाएगी, लेकिन यह भरपूर उत्पादन होने की गारंटी नहीं है। फसल तैयार होते समय जरूरत के मुताबिक बारिश न हुई तो सबकुछ चौपट हो सकता है। भूजल के घटते स्तर का समाधान भूजल पुनर्भरण में है। इसके लिए सरकारों को गंभीरता से काम करना होगा। हर मकान, आवासीय/व्यावसायिक इमारत, सार्वजनिक महत्त्व के भवनों की छतों से वर्षाजल को इकट्ठा कर वैज्ञानिक विधियों से भूजल पुनर्भरण करें। हर साल कितना ही वर्षाजल नालियों में बह जाता है, जो न तो पीने के काम आता है और न ही घरेलू कामों का उसका इस्तेमाल किया जाता है। इससे कई बार हादसे भी होते हैं। भूजल पुनर्भरण की प्रणाली स्थापित करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना होगा। प्राय: माना जाता है कि भूजल पुनर्भरण तो सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी है! हमें नहीं भूलना चाहिए कि जिस तेजी से भूजल घट रहा है, उसका असर सभी पर होगा। आम लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। भविष्य में हालात और ज्यादा मुश्किल न हों, इसके लिए तैयारी अभी से करनी होगी।

About The Author

Dakshin Bharat Android App Download
Dakshin Bharat iOS App Download

Latest News

गांदरबल हमला: व्यापक तलाशी अभियान का आगाज, सबूत ढूंढ़ने में जुटे एनआईए के अधिकारी गांदरबल हमला: व्यापक तलाशी अभियान का आगाज, सबूत ढूंढ़ने में जुटे एनआईए के अधिकारी
Photo: NIA
हिज़्बुल्लाह ने इज़राइल के हर्मीस-900 ड्रोन को मार गिराने का दावा किया
ये पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोले- 'यूक्रेन युद्ध में मध्यस्थ बनने के लिए भारत के पास है विश्वसनीयता'
जब तक आतंकी हमले बंद न करे पाक, न हो उसके साथ कोई बातचीत: फारूक अब्दुल्ला
उच्चतम न्यायालय ने कर्नाटक को कक्षा 8 से 10 की अर्धवार्षिक परीक्षाओं के परिणाम घोषित करने से रोका
निर्दोष नागरिकों की हत्या करना और हिंसा फैलाना अपराध हैं: प्रियंका वाड्रा
डिजिटल मंच और राष्ट्रीय सुरक्षा