घुसपैठियों पर सख्ती जरूरी

रोहिंग्याओं का भारत में लगातार रहना राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से उचित नहीं है

घुसपैठियों पर सख्ती जरूरी

कुछ राजनीतिक दल वोटबैंक की राजनीति के कारण इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं

केंद्र सरकार का उच्चतम न्यायालय से यह कहना कि 'विदेशियों को शरणार्थी के रूप में ‘सभी मामलों में स्वीकृति’ नहीं दी जा सकती है, विशेष रूप से तब, जब ऐसे ज्यादातर लोग अवैध रूप से देश में घुस चुके हैं', अत्यंत प्रासंगिक है। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह भारतीय नागरिकों के हितों की रक्षा करे। साथ ही इस बात को लेकर विशेष सावधानी बरते कि जो लोग अवैध ढंग से यहां रह रहे हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई कर उन्हें स्वदेश रवाना किया जाए। निस्संदेह रोहिंग्याओं का भारत में लगातार रहना राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से उचित नहीं है। दु:खद है कि कुछ राजनीतिक दल वोटबैंक की राजनीति के कारण इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। पिछले पांच वर्षों की ही बात करें तो समय-समय पर ऐसी खबरें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिन्हें पढ़कर कोई भी विवेकशील मनुष्य यही कहेगा कि रोहिंग्या हों या बांग्लादेशी घुसपैठिए, उनकी पहचान कर उन्हें हिरासत में लिया जाए और कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए उनके देश भेज दिया जाए। साथ ही यह सुनिश्चित किया जाए कि अगर उनमें से कोई व्यक्ति दोबारा घुसपैठ कर यहां आ जाए तो उसे कठोर दंड मिले। नवंबर 2018 में एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें बताया गया था कि भारत में घुसपैठ करने के बाद रोहिंग्या कई इलाकों में फैल चुके हैं। वे लद्दाख तक जा पहुंचे थे और वहां झुग्गियां लगाने की तैयारी कर रहे थे। इसी तरह रोहिंग्याओं के समूह दक्षिणी राज्यों में देखे जा सकते हैं। स्थानीय लोगों से इनके टकराव की घटनाएं देखने को मिलती हैं। म्यांमार से बांग्लादेश और फिर भारत में दाखिल हुए रोहिंग्याओं के बारे में कई विशेषज्ञ पहले ही कह चुके हैं कि ये भविष्य में देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा व्यवस्था के लिए गंभीर चुनौती बन सकते हैं।

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निस्संदेह भारत ने वर्ष 1951 के शरणार्थी दर्जे के संबंध में संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी समझौते पर या शरणार्थियों की स्थिति से संबंधित प्रोटोकॉल, 1967 पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। इसका मतलब है कि किसी भी वर्ग के व्यक्तियों को शरणार्थी के रूप में मान्यता दी जानी है या नहीं, यह भारत का ‘शुद्ध नीतिगत निर्णय’ है। केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में दायर हलफनामे में भी यही बात दोहराई है। भारत की आबादी पहले ही काफी ज्यादा है। सरकार को भारतीय नागरिकों तक मूलभूत सुविधाएं पहुंचाने में काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। यह न भूलें कि रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों का इरादा भारत के संसाधनों का उपभोग करना है। इससे कालांतर में स्थानीय लोगों में असंतोष पैदा हो सकता है। पूर्व में घुसपैठ की समस्या को बयान करता हुआ एक वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ था, जिसमें देखा गया कि एक पक्की दुकान (जिसके लिए दुकानदार ने विभिन्न तरह की इजाजतें ली थीं) के सामने कोई शख्स (जो घुसपैठ कर भारत आया था) अचानक कुछ किलोग्राम फल-सब्जियां लेकर बैठ जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो वह कानूनी तरीके से बनी पक्की दुकान के ठीक सामने अपनी 'अस्थायी' व 'अवैध' दुकान लगा लेता है। अगर दुकानदार इस पर आपत्ति जताते हुए उसे हटाए तो 'मानवाधिकारों के रक्षक' कहेंगे कि यह अत्याचार हो रहा है। अगर न हटाए तो अपने ग्राहकों को असुविधा हो और भविष्य में कलह मचे। घुसपैठिए हमारे देश की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के साथ ही सद्भाव के लिए भी खतरा हैं। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह कानूनी तरीके से सख्ती दिखाए। इस संबंध में कठोर दंड के प्रावधान वाले कानून बनाए, ताकि लोग ग़लत तरीके से यहां आने को लेकर हतोत्साहित हों।

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