... तो 'रामराज्य' आ जाए

प्रभु श्रीराम ने सदैव वाणी के संयम पर जोर दिया था

... तो 'रामराज्य' आ जाए

याद रखें, अनर्गल बयानबाजी के कारण पूर्व में कुछ नेताओं को अदालतों के चक्कर लगाने पड़े थे

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भारत में 'रामराज्य' स्थापित करने के संबंध में जो बयान दिया है, वह स्वागत-योग्य है। प्रभु श्रीराम के आदर्शों का अनुसरण करने से ही देश-दुनिया में सुख-शांति और सौहार्द का वातावरण हो सकता है। इन दिनों भारत में चुनावी माहौल है। निर्वाचन आयोग भी लोकसभा और कुछ राज्यों में विधानसभा चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा करने वाला है। इसके बाद नेतागण पूरी ताकत के साथ चुनाव-प्रचार में जुट जाएंगे। बड़ी-बड़ी जनसभाएं होंगी। एक-दूसरे को ललकारा जाएगा। आरोप-प्रत्यारोप की बौछारें होंगी। सभी नेतागण याद रखें कि प्रभु श्रीराम ने सदैव वाणी के संयम पर जोर दिया था। उन्होंने वनवास संबंधी समाचार सुना तो भी शांत एवं विनम्र बने रहे। निस्संदेह सामान्य लोग उस स्तर का धैर्य धारण नहीं कर सकते। वाणी का वैसा संयम तो अत्यंत कठिन है। फिर भी, नेतागण और उनके कार्यकर्ताओं को चाहिए कि वे ऐसा कोई शब्द न बोलें, जिससे देश की शांति व सद्भाव में खलल पड़े। जो भी शब्द बोलें, सोच-समझकर बोलें। याद रखें, अनर्गल बयानबाजी के कारण पूर्व में कुछ नेताओं को अदालतों के चक्कर लगाने पड़े थे। संसद सदस्यता भी जाते-जाते बमुश्किल बची थी। बेहतर होगा कि नेतागण जिस जनसभा में जाएं, उसके लिए भाषण पहले से लिखित में तैयार रखें। अगर ऐसा संभव न हो तो उसके मुख्य बिंदु तो जरूर तैयार रखें। इससे पूरा भाषण उनके इर्द-गिर्द रहेगा और अनावश्यक बयानबाजी से बचेंगे। नेतागण न भूलें कि यह सोशल मीडिया का ज़माना है। यह अस्सी या नब्बे का दशक नहीं है कि आप तो बोलकर निकल लिए। उसके बाद किसी को शिकायत करनी हो तो वह प्रमाण जुटाने के लिए भाग-दौड़ करता फिरे।

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आज आप मंच पर बोलेंगे और सामने कई मोबाइल फोन रिकॉर्डिंग करते रहेंगे। जनसभाओं में सब लोग आपके प्रशंसक, समर्थक नहीं होते। भले ही वे आपके लिए '... ज़िंदाबाद' के नारे लगाएं, आपके नाम की टोपी पहनें। इधर आपकी ज़बान फिसली, उधर आप सोशल मीडिया पर वायरल हो गए! इसमें कुछ सेकंडों या मिनटों का समय लगेगा। प्राय: कुछ नेतागण यह समझते हैं कि वे अपने मुंह से जितने ज्यादा विवादास्पद शब्द बोलेंगे, उनका उतना ही प्रचार होगा। चूंकि वे सोशल मीडिया पर तो छाएंगे ही, समाचार चैनलों पर होने वाली बहसों में भी उन्हीं की चर्चा होगी। हो सकता है कि वे चुनावी मुकाबला तो जीत लें, लेकिन बाद में मामला अदालत में चला गया तो कुर्सी भी जा सकती है! पूरी मेहनत पर पानी फिरने के योग बन सकते हैं। इससे बेहतर है कि जो कुछ बोलें, मर्यादा में रहकर बोलें। प्रभु श्रीराम की वचनबद्धता यूं ही अद्वितीय नहीं मानी जाती। उन्होंने जो वचन दिया, उसका अक्षरश: पालन किया। राजनीतिक दल और नेतागण इन चुनावों में आम जनता के कल्याण से संबंधित कार्य करने के लिए वादे जरूर करें, लेकिन उन्हें निभाने की प्रतिबद्धता भी रखें। यह नहीं होना चाहिए कि चुनाव घोषणापत्र और जनसभाओं में तो बड़े-बड़े सब्जबाग दिखाएं और धरातल पर कुछ न करें। जो वादा नहीं निभा सकते, बेहतर होगा कि उसके लिए साफ इन्कार कर दें। इससे आपकी विश्वसनीयता घटेगी नहीं, बल्कि बढ़ेगी। आज आम जनता के बीच (कई) नेताओं की यह छवि बनी हुई है कि ये सिर्फ वादे करना जानते हैं। एक बार जीत गए तो इनके दर्शन दुर्लभ हो जाएंगे। कुछ नेतागण यह भी समझते हैं कि वे जनता से जितने दूर रहेंगे, उतने ही बड़े नेता कहलाएंगे। आज का मतदाता ऐसे नेताओं को नकार रहा है। इसलिए जमीन पर रहें, जनता से संवाद करें, उसकी समस्याएं जानें और प्रभावी समाधान लेकर आएं। प्रभु श्रीराम भी आमजन के बीच रहे थे। उनकी प्रेरणा से वानरों ने सागर में सेतु बना दिया और बड़े-बड़े महाबलियों को पछाड़ दिया था। प्रभु के आदर्शों का कुछ अंश भी नेतागण जीवन में उतार लें तो देश में 'रामराज्य' आ जाए।

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