कर्नाटक में हिंदी भाषा की सजग प्रहरी बीएस शान्ता बाई नहीं रहीं
"दक्षिण भारत शब्द हिंदीसेवी सम्मान" से नवाजा था शब्द संस्था ने
यद्यपि वे वय के कारण चल - फिर पाने में असमर्थ थीं, तथापि संस्था के अनुरोध को मान देते हुए ह्वील चेयर पर कार्यक्रम में पधारी थीं
बेंगलूरु/दक्षिण भारत। कर्नाटक में हिंदी भाषा की सेवा के लिए जीवनपर्यन्त समर्पित रहीं 97 वर्षीय सुश्री बी एस शांता बाई अब नहीं रहीं। अपने लंबे जीवन काल में उन्होंने कर्नाटक की महिलाओं में हिंदी भाषा के प्रति अनुराग का दीप जलाया और उसकी रोशनी घर-घर में पहुंचाई। ऐसा समर्पित अहिंदीभाषी हिंदी सेवी शायद ही अब कोई और हो। उन्हें पिछले वर्ष 10 दिसंबर को आयोजित 'शब्द' साहित्यिक संस्था के वार्षिकोत्सव-सह-पुरस्कार अर्पण समारोह में संस्था ने दक्षिण भारत राष्ट्रमत के सौजन्य से दिए जाने वाले 'दक्षिण भारत शब्द हिंदी सेवी सम्मान' से सम्मानित किया गया था।
यद्यपि वे वय के कारण चल - फिर पाने में असमर्थ थीं, तथापि संस्था के अनुरोध को मान देते हुए ह्वील चेयर पर कार्यक्रम में पधारीं और 'शब्द' का पुरस्कार ग्रहण कर एक तरह से आयोजकों को सम्मानित होने का अवसर दिया। हिंदी के प्रति उनका अनुराग आजीवन ऐसा रहा कि 'दक्षिण भारत शब्द हिंदी सेवी सम्मान' सहर्ष ग्रहण करने के बाद सम्मान राशि के 21000/- रुपए उन्होंने हिंदी भाषा और साहित्य के संवर्द्धन के लिए कहीं अन्य उपयुक्त पात्र पर खर्च करने के लिए 'शब्द' को लौटा दिए। ऐसी कर्मठ, निष्ठावान अद्वितीय हिंदीसेवी को दक्षिण भारत राष्ट्रमत परिवार की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि।शब्द साहित्यिक संस्था बेंगलूरु के अध्यक्ष श्रीनारायण समीर, कार्यकारी अध्यक्ष नलिनी पोपट एवं महासचिव डा. उषारानी राव ने भी संस्था की ओर से शांताबाई को श्रद्धांजलि देते हुए कहा है कि उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार एवं शिक्षण के लिए समर्पित किया। योग: कर्मसु कौशलम्" के दर्शन को अपने जीवन का दर्शन बनाने वाली शांताबाई ने 'कायक वे कैलासा' बसवेश्वर जी के कथन को आत्मसात किया।
सुश्री शांताबाई का हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार का यह अभियान दूसरों के लिए प्रेरणा स्त्रोत है। उनसे जब यह पूछा जाता कि उन्होंने इतना बड़ा संघर्ष कैसे किया, तो वे हंसती हुई अत्यंत सौम्यता और सहजता के साथ कहती थीं कि एक संकल्प की तरह भाषा का प्रचार प्रसार उन्होंने निभाया। मार्ग में आने वाली बाधाओं और कठिनाइयों का बिना रुके, बिना थके सामना किया। दक्षिण भारत के कर्नाटक में हिंदी भाषा के प्रचार अभियान में अग्रणी रहीं बीएस शांताबाई ने अपने परंपरागत पारिवारिक दायरे में सीमित न रहकर सामाजिक और राष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट हिंदी प्रचारिका एवं शिक्षिका के रूप में छवि का निर्माण किया। ऐसे जीवट व्यक्तित्व को कोटिश: नमन।