एक राष्ट्र, महान राष्ट्र
ऐसे अनेक प्रमाण मिल जाएंगे, जो बताते हैं कि भारत की जड़ें कितनी गहरी हैं ...
'भारत कभी एक राष्ट्र नहीं रहा' - ऐसी बातें ब्रिटिश साम्राज्यवाद के दौर में अंग्रेज किया करते थे
द्रमुक के सांसद ए राजा के 'भारत कभी एक राष्ट्र नहीं रहा' जैसे कथित बयान के लिए यही कहा जा सकता है कि वोटबैंक की राजनीति जो करवा दे, कम है! राजा को चाहिए कि वे पश्चिमी दार्शनिकों के साथ ही भारतीय मनीषियों के विचारों का भी अध्ययन करें। भारत एक महान राष्ट्र है। अफगानिस्तान की गुफाओं से लेकर इंडोनेशिया के द्वीपों तक ऐसे अनेक प्रमाण मिल जाएंगे, जो बताते हैं कि भारत की जड़ें कितनी गहरी हैं और यह कितनी समृद्ध परंपराओं वाला प्राचीन राष्ट्र है! 'भारत कभी एक राष्ट्र नहीं रहा' - ऐसी बातें ब्रिटिश साम्राज्यवाद के दौर में अंग्रेज किया करते थे। लंदन ने ऐसे लेखकों, शिक्षकों और प्रचारकों को वेतन पर रखा था, जो घूम-घूमकर विभिन्न सभाओं में उक्त शब्द दोहराते रहते थे, ताकि भारतवासियों में हीनभावना का प्रसार हो, उन्हें लगे कि जो कुछ अंग्रेज लेकर आए हैं, वह तो खरा सोना है और जो कुछ हमारे पूर्वज छोड़कर गए हैं, वह खोट से भरा हुआ है! बहुत लोग इस दुष्प्रचार को सच मान बैठे थे और आज भी मानते हैं। यह कहना कि 'एक राष्ट्र का अर्थ है- एक भाषा, एक परंपरा, एक संस्कृति', सत्य नहीं है। निस्संदेह राष्ट्र के लिए भाषा, परंपरा और संस्कृति का होना जरूरी है, लेकिन इनमें अत्यधिक एकरूपता का होना जरूरी नहीं है। राष्ट्र में ऐसे कई तत्त्व होते हैं, जो विविधताओं में एकता की सृष्टि करते हैं। भारत में भी ऐसे तत्त्व हैं। भारत के हर राज्य / केंद्र शासित प्रदेश में लोग धरती को माता मानते हैं। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति हर जगह समान रूप से आदरभाव देखने को मिलता है। हमारे सामाजिक शिष्टाचार हमें एक राष्ट्र बनाते हैं। हम पर 1947-48, 1962, 1965, 1971 और 1999 के युद्ध थोपे गए थे। हमने कोरोना काल जैसे गंभीर संकट का सामना किया। उस दौरान हम बतौर राष्ट्र मजबूती से खड़े रहे। राष्ट्र एक अनुभूति है। यह विश्वास है, जुड़ाव है। यह सामूहिक शक्ति, प्रेम और समर्पण का दूसरा नाम है। यहां कृत्रिमता और कोरी बौद्धिकता से काम नहीं चलता।
अगर 'एक भाषा, एक परंपरा, एक संस्कृति' के होने को ही राष्ट्र कहा जा सकता है, तो क्या उन परिवारों को भी एक परिवार नहीं कहा जाएगा, जो किन्हीं कारणों से एक ही तरह की भाषा नहीं बोलते, जिनमें अलग-अलग तरह की परंपराओं का समावेश हो गया है, जिनके सदस्यों में आस्था के स्तर पर कुछ मतभेद हैं? भारत में ऐसे लाखों परिवार मिल जाएंगे, जिनमें बहुत विविधताएं हैं, लेकिन उन्हें आपस में जोड़कर रखता है- 'प्रेम' और इसी से वे लोग परिवार कहलाते हैं। किसी कक्षा को 'कक्षा' कौन बनाता है? वर्दी, पढ़ाए जाने वाले विषय, शिक्षक, बोर्ड, किताबें या कुछ और? निस्संदेह कक्षा के लिए ये जरूरी हैं, लेकिन इनके साथ ही जरूरी है- 'ज्ञान-प्राप्ति की इच्छा', यह सभी विविधताओं के बावजूद कक्षा को 'कक्षा' बनाती है। अगर विद्यार्थियों में ज्ञान-प्राप्ति की इच्छा ही न रहे तो फिर वर्दी, विषय, शिक्षक, बोर्ड, किताबें आदि कुछ नहीं कर सकते। राष्ट्र कभी एक दिन में नहीं बनते। उनके पीछे सदियों की साधना होती है। वर्ष 1947 में पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान अस्तित्व में आए थे, जिनके मूल में मजहब था। उस समय उनके पक्ष में बड़ी-बड़ी दलीलें दी गई थीं, पाकिस्तान बनने को चमत्कार बताया गया था, लेकिन वर्ष 1970 आते-आते दोनों के बीच अविश्वास और नफरत की खाई इतनी बढ़ गई कि अगले ही वर्ष उनके रास्ते अलग-अलग हो गए। ढाई दशक पहले जो बिंदु उनकी बुनियाद बताए जा रहे थे, वे भी उन्हें एकजुट नहीं रख सके। यह बताता है कि पाकिस्तान कोई राष्ट्र नहीं है। भले ही उसमें भाषा, मजहब, परंपराओं, संस्कृति ... समेत कई बिंदुओं को लेकर एकरूपता हो, लेकिन उसकी जड़ में 'भारत से नफरत' है। वह भारत-विरोधी मानसिकता का जमघट है। उसके पास कोई चिंतन नहीं, कोई दर्शन नहीं है। राष्ट्र के लिए जो दर्शन चाहिए, वह भारत के पास है। इसीलिए भारत एक महान राष्ट्र है।