पारदर्शिता को बढ़ावा

आज विद्यार्थियों पर पढ़ाई, नौकरी, बेहतर सामाजिक स्तर ... आदि का बहुत दबाव बढ़ गया है

पारदर्शिता को बढ़ावा

ऐसे दावों की भी भरमार है, जिनमें झूठ का घालमेल होता है

शिक्षा मंत्रालय द्वारा घोषित नए दिशा-निर्देशों से कोचिंग संस्थानों में पारदर्शिता को बढ़ावा मिलेगा। देश में लंबी अवधि से ऐसे निर्देशों की जरूरत महसूस की जा रही थी। आज विद्यार्थियों पर पढ़ाई, नौकरी, बेहतर सामाजिक स्तर ... आदि का बहुत दबाव बढ़ गया है। प्रतियोगी परीक्षाओं में इतनी प्रतिस्पर्धा हो गई है कि कोचिंग लेना जरूरत बन गया है। दो-तीन दशक पहले तक कोचिंग जाने का इतना चलन नहीं था। प्रायः प्रतिभाशाली विद्यार्थी खुद की पढ़ाई और विशेषज्ञों के नोट्स से ही बहुत अच्छे अंक ले आते थे। समय के साथ परीक्षाएं ज्यादा मुश्किल होती गईं। बेरोजगारों की बढ़ती तादाद के कारण एक-एक पद के लिए सैकड़ों अभ्यर्थियों के बीच कड़ा मुकाबला हो गया है। ऐसे में कोचिंग जाना या विशेषज्ञों से मार्गदर्शन लेना बहुत ज़रूरी हो जाता है। आज उच्च शिक्षा के लिए प्रवेश परीक्षा हो या नौकरी का टेस्ट, सिर्फ अच्छी पढ़ाई करना काफी नहीं है। कम समय में अधिकाधिक प्रश्नों के सही उत्तर देना, ग़लतियों से बचना ... जैसी बातें सिर्फ किताबें पढ़कर समझ में नहीं आ सकतीं। इसके लिए ऐसे व्यक्ति से मार्गदर्शन लेना बेहतर होता है, जिसे परीक्षा प्रणाली का अनुभव हो। हाल के वर्षों में कुछ कोचिंग संस्थानों में अप्रिय घटनाएं हुई हैं। खासतौर से कोटा में मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों में आत्महत्या के मामलों ने देश को झकझोर दिया है। मंत्रालय ने अपने दिशा-निर्देशों में, आत्महत्या के बढ़ते मामलों, आग लगने की घटनाओं, संस्थानों में सुविधाओं की कमी, शिक्षण पद्धतियों से जुड़ीं शिकायतों की ओर भी ध्यान दिया है, जो प्रशंसनीय है। कोरोना काल में ऑनलाइन कोचिंग संस्थान खूब खुले और विद्यार्थियों ने उन्हें हाथोंहाथ भी लिया। परंपरागत कोचिंग हो या ऑनलाइन, प्रायः विज्ञापनों में बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं। लोग उनकी जांच करने की जहमत नहीं उठाते, क्योंकि उनके पास ऐसा कोई तंत्र नहीं, जिससे वे दावों की हकीकत जान सकें।  

बेशक कई कोचिंग संस्थान अपने विज्ञापनों में ऐसे दावे करते हैं, जो सच्चे होते हैं, लेकिन ऐसे दावों की भी भरमार है, जिनमें झूठ का घालमेल होता है। जब भी मेडिकल व इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा या संघ / राज्य लोकसेवा आयोग की परीक्षाओं के परिणाम आते हैं तो किसी सफल अभ्यर्थी की तस्वीर एक से ज्यादा कोचिंग संस्थानों के विज्ञापनों में दिखाई देती है। उनमें उसकी सफलता का श्रेय लेने की होड़ होती है। सोशल मीडिया आने के बाद तो ग़ज़ब ही हो गया। एक अभ्यर्थी अपने अभ्यास के लिए अलग-अलग कोचिंग संस्थानों में इंटरव्यू देने चला जाता है। इस दौरान कोचिंग संस्थान हर अभ्यर्थी का वीडियो रिकॉर्ड कर लेते हैं। जब परीक्षा परिणाम आता है तो (सफल होने पर) उस अभ्यर्थी का वह वीडियो यह कहते हुए शेयर किया जाता है कि इसे तो हमने ही मार्गदर्शन दिया था, जबकि उस (अभ्यर्थी) ने अन्य कोचिंग संस्थानों में जाकर भी इंटरव्यू दिया था! अब सफलता का श्रेय किसे मिलना चाहिए? प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करवाने वाले कई कोचिंग संस्थान ऑनलाइन कक्षाएं भी चलाते हैं। कई बार ऐसा होता है कि एक अभ्यर्थी दो संस्थानों से पढ़ाई कर रहा है। जब उसका चयन हो जाता है तो दोनों संस्थान उसकी सफलता का श्रेय लेने की कोशिश करते हैं। इस स्थिति में बेहतर तो यह होगा कि पूरे मामले में पारदर्शिता बरती जाए। किसी अभ्यर्थी ने कब प्रवेश लिया, वह परंपरागत ढंग से पढ़ाई कर रहा था या ऑनलाइन क्लास ले रहा था, उसने इंटरव्यू के लिए शुल्क देकर तैयारी की थी या निःशुल्क अभ्यास के तहत आया था ... ऐसे तमाम पहलुओं से जुड़े सवालों का जवाब देना अनिवार्य होना चाहिए। बेशक शिक्षा मंत्रालय के नए दिशा-निर्देशों से इन सवालों के जवाब जानने में कुछ आसानी होगी। कोचिंग संस्थानों द्वारा अभ्यर्थी के प्रवेश के समय ‘चयन या अच्छे अंकों की गारंटी’ देना भी उचित नहीं है। पढ़ाई और परीक्षा की तैयारी कोई भौतिक उत्पाद नहीं हैं कि उनकी गारंटी दी जाए। परीक्षा में सफलता बेहतर शिक्षण, अध्ययन, अभ्यास के साथ ही परीक्षा कक्ष में प्रदर्शन पर निर्भर करती है। बहुत बार ऐसा होता है कि अत्यंत प्रतिभाशाली विद्यार्थी भी परीक्षा में मनोनुकूल प्रदर्शन नहीं कर पाते या उनका चयन नहीं होता। यह भी एक कड़वी हकीकत है कि किसी परीक्षा में बैठने वाले सभी अभ्यर्थियों को शानदार अंक नहीं मिलते और न ही सबका चयन हो सकता है। इसलिए सफलता की गारंटी का दावा तो यहीं ग़लत साबित हो गया। शिक्षा मंत्रालय के नए दिशा-निर्देशों से अभ्यर्थी अपने हितों की रक्षा करने में अधिक सक्षम होंगे।

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