कांग्रेस नेतृत्व मंथन करे
हाल के वर्षों में, मिलिंद देवरा अकेले ऐसे नेता नहीं हैं, जिन्होंने कांग्रेस छोड़ी है
मिलिंद साल 2014 और 2019 में भी इस सीट से किस्मत आजमा चुके हैं, लेकिन वे दोनों ही बार शिवसेना के अरविंद सावंत से हार गए थे
कांग्रेस के एक और पुराने साथी ने 'हाथ' का साथ छोड़ दिया। मिलिंद देवरा ने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देकर इसे अपनी 'राजनीतिक यात्रा' के एक महत्त्वपूर्ण अध्याय का समापन बताया है। देवरा परिवार का कांग्रेस के साथ लगभग साढ़े पांच दशक पुराना संबंध रहा है। मिलिंद पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे हैं। उनके पिता मुरली देवरा भी कांग्रेस के दिग्गज नेता और केंद्र में मंत्री थे। किसी पार्टी के पुराने नेता द्वारा अचानक अपने संबंधों को तोड़कर अलग रास्ता अपना लेना आसान नहीं होता। वहीं, उस पार्टी के लिए भी यह आत्मावलोकन का समय होता है।
हाल के वर्षों में, मिलिंद अकेले ऐसे नेता नहीं हैं, जिन्होंने कांग्रेस छोड़ी है। उनसे पहले हार्दिक पटेल, सुनील जाखड़, आरपीएन सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, कैप्टन अमरिंदर सिंह, कपिल सिब्बल, गुलाम नबी आज़ाद, जयवीर शेरगिल जैसे नेता विभिन्न कारण गिनाकर कांग्रेस से नाता तोड़ चुके हैं। इन्होंने अपनी ऊर्जा कांग्रेस पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए लगाई थी। इनमें से ज्यादातर नेता वे हैं, जिन्होंने अपने जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण समय कांग्रेस को दिया था और सदैव 'पार्टी का सिपाही' बने रहने का वचन दोहराते थे। आखिर ऐसा क्या हो रहा है कि ये 'सिपाही' पाला बदल रहे हैं? कांग्रेस के नेतृत्व को इस पर जरूर मंथन करना चाहिए।मिलिंद ने जिस समय कांग्रेस से इस्तीफा दिया, वह बड़ा महत्त्वपूर्ण है। पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी मणिपुर से 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' निकाल रहे हैं, जो मुंबई पहुंचकर समाप्त होगी, लेकिन इसी दौरान मुंबई (दक्षिण) सीट से पूर्व लोकसभा सांसद मिलिंद देवरा ने इस्तीफा देकर पार्टी को झटका दे दिया। उन्होंने सुबह कांग्रेस से रिश्ता तोड़ा और दोपहर को ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की उपस्थिति में शिवसेना का दामन थाम लिया।
मिलिंद साल 2019 में एमवीए की स्थापना से ही शिवसेना (यूबीटी) का विरोध करते रहे हैं, जिसका उल्लेख उन्होंने अपने पत्र में भी किया है। हाल में शिवसेना (यूबीटी) ने मुंबई (दक्षिण) लोकसभा सीट पर दावा किया था। माना जाता है कि इस दावे ने देवरा को 'असहज' कर दिया था। अब समीकरण बदल गए हैं। उनका इस सीट पर दावा मजबूत हो गया है। साथ ही आगामी लोकसभा चुनावों में 'मोदी लहर' का साथ मिलने की भी उम्मीद है।
मिलिंद साल 2014 और 2019 में भी इस सीट से किस्मत आजमा चुके हैं, लेकिन वे दोनों ही बार शिवसेना के अरविंद सावंत से हार गए थे, जो ठाकरे गुट से हैं। यह पार्टी एमवीए में कांग्रेस और राकांपा की साझेदार है। पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्य अशोक चव्हाण कह चुके हैं कि एमवीए इस बात को लेकर 'सहमत' है कि मौजूदा सांसद को इस सीट से अलग नहीं किया जाए। उन्होंने स्वीकार किया है कि देवरा मुंबई (दक्षिण) सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं, लेकिन एमवीए मौजूदा सांसद की सीट में बदलाव करने को लेकर राजी नहीं हुई है।
अगर आगामी लोकसभा चुनाव से पहले टिकट वितरण में इस पर अमल किया जाता तो मिलिंद को इस सीट से कांग्रेस का टिकट नहीं मिल पाता। वे यह सीट नहीं छोड़ना चाहते। उस स्थिति में वे या तो किसी अन्य सीट के लिए दावेदारी करते, फिर वहां नए सिरे से चुनावी तैयारी करनी पड़ती या फिर निर्दलीय लड़ते, जिसके लिए उन्हें कांग्रेस छोड़नी पड़ती! उन्होंने शिवसेना में जाकर अपने लिए नई संभावनाएं तलाश ली हैं।
शिवसेना (यूबीटी) के वरिष्ठ नेता संजय राउत भी मुंबई (दक्षिण) सीट को लेकर यह कहते हुए तीखे तेवर दिखा चुके हैं कि 'अरविंद सावंत दो बार के सांसद हैं ... उनके फिर चुनाव लड़ने में क्या गलत है? इस पर कोई समझौता नहीं होगा।’ स्पष्ट है कि कांग्रेस छोड़ने के बाद मिलिंद के लिए इस सीट से (शिवसेना के निशान पर) टिकट की दावेदारी मजबूत हो गई है। वहीं, शिवसेना को भी मिलिंद के रूप में अनुभवी नेता का साथ मिल गया, जो पूर्व केंद्रीय मंत्री होने के अलावा मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे हैं। अब देखना यह होगा कि आगामी लोकसभा चुनाव में मिलिंद देवरा क्या कमाल दिखा पाएंगे!