मालदीव: पर्दे के पीछे कौन?
मालदीव सरकार की ओर से जो खबरें आ रही हैं, वे किसी संयोग का परिणाम नहीं हैं
जब-जब मालदीव पर किसी तरह का संकट आया, सबसे पहले मदद का हाथ भारत ने आगे बढ़ाया है
ऐसा प्रतीत होता है कि इन दिनों मालदीव के कई नेताओं ने भारत से संबंध बिगाड़ने के लिए कोई प्रतिज्ञा कर रखी है। राष्ट्रपति तो राष्ट्रपति, मंत्री और कई नागरिक भी इसी ढर्रे पर चल पड़े हैं। कोई भड़काऊ बयानबाजी कर रहा है, तो कोई सोशल मीडिया पर गैर-जरूरी टीका-टिप्पणी कर रहा है। क्या ये जानते नहीं कि इस कदम का क्या नतीजा हो सकता है? मोहम्मद मुइज्जू राष्ट्रपति बनने के बाद अपरिपक्व नेता की तरह व्यवहार कर रहे हैं। बल्कि वे इस पद तक पहुंचने से पहले ही भारत-विरोधी रुख अपनाकर अपनी मंशा जाहिर कर चुके थे।
अब इस देश के मंत्रियों ने सोशल मीडिया पर भारतीय प्रधानमंत्री के बारे में जो टिप्पणियां की हैं, उनसे स्पष्ट होता है कि मालदीव सरकार की ओर से जो खबरें आ रही हैं, वे किसी संयोग का परिणाम नहीं हैं। मुइज्जू चीन के इशारे पर खेल रहे हैं। वे तुर्की और पाकिस्तान से 'यारी' निभाने के लिए भारत के साथ संबंध बिगाड़ने को आमादा हैं। वे यह भूल रहे हैं कि जब-जब मालदीव पर किसी तरह का संकट आया, सबसे पहले मदद का हाथ भारत ने आगे बढ़ाया है।करीब सवा पांच लाख की आबादी वाले इस देश को भारत ने सदैव अपना घनिष्ठ मित्र माना है। जब कभी मालदीव में आर्थिक समस्या आई, भारत ने अपने खजाने से राशि भेजने में देर नहीं की। साल 1988 में भारतीय सुरक्षा बल इसकी रक्षा करने के लिए आगे आए थे। कोरोना काल में विदेशों में फंसे मालदीव के नागरिकों को भारत के विमान सकुशल लेकर आए थे। भारत ने मालदीव में राजनीतिक स्थिरता और खुशहाली, दोनों का बहुत ख़याल रखा है। आज इस देश को बहुत कम कीमत पर दवाइयां, खाद्यान्न, तकनीकी उपकरण, डेयरी उत्पाद आदि मिल रहे हैं, तो इसके पीछे भारत सरकार का सहयोग है।
अगर मालदीव के नेता इसी तरह भारत-विरोधी रुख पर कायम रहे तो भविष्य में उनके देश को कई मुश्किल हालात का सामना करना पड़ सकता है। मालदीव क्या पैदा करता है? वहां बड़े कारखाने नहीं हैं। खेती भी इतनी नहीं होती कि उससे पूरी आबादी का पेट भर सके। कमाई का सबसे बड़ा स्रोत पर्यटन है, जिसका बहुत बड़ा हिस्सा भारतीय पर्यटकों से आता है।
भारत के फिल्मी सितारे, खिलाड़ी और अन्य पर्यटक मालदीव के होटल व खानपान उद्योग का नि:शुल्क प्रचार करते रहे हैं। सोशल मीडिया पर उनके वीडियो, तस्वीरें, रिव्यू देखकर दूर-दूर से पर्यटक यहां आते हैं। मालदीव के नेताओं के हालिया बयानों के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने लक्षद्वीप जाकर उसके प्राकृतिक सौंदर्य को सोशल मीडिया पर जिस तरह प्रस्तुत किया, उससे यहां पर्यटन को बहुत बढ़ावा मिलने की संभावना है।
यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत में कई लोगों ने पहली बार देखा कि लक्षद्वीप इतना सुंदर है! वास्तव में हमने लक्षद्वीप में छिपीं पर्यटन की संभावनाओं को बढ़ावा देने के लिए अपनी शक्ति व सामर्थ्य का पूरा उपयोग नहीं किया है। अगर यहां पर्यटकों के लिए और सुविधाएं बढ़ाई जाएं तथा सोशल मीडिया पर समुचित प्रचार-प्रसार किया जाए तो कुछ ही वर्षों में इधर पर्यटन उद्योग बहुत बड़ा आकार ले सकता है। इससे स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के कई अवसर सृजित होंगे। पर्यटन बढ़ेगा तो निवेश भी आएगा।
फिर, आज जो पर्यटक मालदीव जा रहे हैं, वे लक्षद्वीप का रुख करेंगे। इससे भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ेगा। लक्षद्वीप के अलावा केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और अन्य राज्यों के विभिन्न तटवर्ती इलाकों को पर्यटन की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए विकसित करना चाहिए। यहां विपुल संभावनाएं हैं। यूरोप के कई देश, जिनका (भारत की तुलना में) न तो ज्यादा पुराना इतिहास है, न ज्यादा क्षेत्रफल है, न समृद्ध खानपान है और न ही इतनी भौगोलिक विविधताएं हैं, लेकिन वे अपने संसाधनों का इस तरह प्रबंधन करते हैं कि दुनिया के हर देश से पर्यटक वहां जाने के लिए लालायित रहते हैं।
हमें भी अपने देश के संसाधनों और क्षमताओं का अधिक कुशलता से उपयोग करते हुए पर्यटन को बढ़ावा देने के प्रयास करने होंगे। जहां तक मालदीव के नेताओं की बयानबाजी का सवाल है, तो वे भविष्य में खुद जान जाएंगे कि चीन, तुर्की और पाकिस्तान उनके कितने हितैषी हैं!