घुसपैठ पर सख्ती जरूरी

म्यांमार से आकर रोहिंग्याओं का अवैध ढंग से बसना शांति और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है

घुसपैठ पर सख्ती जरूरी

भारत में अवैध ढंग से रहने वाले बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं की हिमायत में कई संगठन खड़े हो जाते हैं

जम्मू में रोहिंग्याओं को अवैध रूप से बसाने में स्थानीय स्तर पर लोगों की मदद मिलना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर चिंता का विषय है। ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। आज देश के कई इलाकों में अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या बसे हुए हैं। स्थानीय स्तर पर मदद के बिना यह संभव नहीं है। उनमें से कई लोगों ने तो सरकारी दस्तावेज तक बनवा लिए हैं। अब रोहिंग्याओं का जम्मू में बसना हैरत की बात है। 

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जम्मू-कश्मीर लंबे अरसे से आतंकवाद से पीड़ित है। हमारे सुरक्षा बलों ने बड़े बलिदान देकर यहां शांति स्थापित की है। ऐसे में म्यांमार से आकर यहां रोहिंग्याओं का अवैध ढंग से बसना शांति और सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर सकता है। निस्संदेह पुलिस ने इस मामले में कार्रवाई करते हुए सात दंपतियों समेत 50 से ज्यादा लोगों को हिरासत में लेकर या गिरफ्तार कर सख्ती दिखाई है। यह पता लगाना चाहिए कि क्या इन्होंने पहले भी किसी को अवैध ढंग से बसाने में मदद की थी? 

भारत में अवैध ढंग से रहने वाले बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं की हिमायत में कई संगठन खड़े हो जाते हैं। वे यह दलील देते हैं कि भारत ने तो सदैव शरणार्थियों के लिए दरवाजे खोले हैं, लिहाजा कुछ हजार लोग और आ गए तो क्या हो जाएगा? ये बातें जिस भावुकतापूर्ण अपील के साथ कही जाती हैं, उससे कई लोगों को लगता है कि ऐसे मामले में जैसा पहले से चला आ रहा है, वैसा चलने देना चाहिए! 

वास्तव में यह मामला वैसा है नहीं, जैसा इन अपीलों के जरिए बताया जाता है। सबसे पहले तो यह स्पष्ट करने की जरूरत है कि शरणार्थियों के मामले में भारत को किसी से उपदेश नहीं चाहिए। भारत वह देश है, जिसने साल 1947 में विभाजन की विभीषिका के बाद बहुत बड़ी तादाद में शरणार्थियों के लिए अपने द्वार खोले और उन्हें खुले हृदय से अपनाया। उन लोगों ने शीर्ष पदों तक पहुंचकर अपनी काबिलियत से देश की सेवा की। इससे पहले भी भारत ने पारसी और यहूदी शरणार्थियों के लिए दरवाजे खोले थे। उन्होंने भी देश के लिए समय-समय पर ऐसे काम किए, जिन पर सबको गर्व होता है। ये लोग अपने मूल स्थानों पर अत्याचार से पीड़ित थे।

आज बांग्लादेशी और रोहिंग्या भारत आ रहे हैं तो उनके इधर आने की वजह यहां के संसाधनों का उपभोग करना है। कई रोहिंग्या बांग्लादेश में रहने के बाद भारत का रुख करते हैं, क्योंकि उन्हें मालूम है कि यहां अर्थव्यवस्था अच्छी है, रोजगार के ज्यादा मौके हैं। देर-सबेर कुछ पार्टियां उन्हें अपना वोटबैंक बनाने के लिए खड़ी हो ही जाएंगी! जब दस-बीस साल बीत जाएंगे तो कौन निकालेगा? अवैध ढंग से आए इन लोगों पर जमीन कब्जाने, अतिक्रमण करने और अपराधों में लिप्त होने जैसे गंभीर आरोप लग चुके हैं। 

लोग अपने घरों में किसी अनजान व्यक्ति को एक दिन नहीं रखना चाहते, क्योंकि उन्हें अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता होती है। क्या देश में ऐसे लोगों को (बिना अनुमति लिए) यहां आने और जब तक मर्जी हो, रहने देना चाहिए? इस समय दुनिया में कई जगह हिंसा और अशांति का माहौल है। कई देशों में मूलभूत सुविधाएं तक नहीं हैं। तो क्या हमें पूरी दुनिया के लिए (बिना किसी नियम के) दरवाजे खोले देने चाहिएं? 

उन देशों की सरकारों का कर्तव्य है कि वे अपने नागरिकों की चिंता करें, उनके लिए सुविधाएं जुटाएं, उनका जीवन स्तर बेहतर बनाएं। भारत उन देशों की सहायता करता रहता है, लेकिन सरहद पार कर अवैध ढंग से आना, यहीं डेरा जमा लेना, वापस लौटने का कोई इरादा नहीं रखना, यहां अवैध ढंग से दस्तावेज बनवा लेना और संसाधनों पर कब्जे की मंशा रखना ... इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। हां, जो भारत आना चाहता है, वह आए, लेकिन कानूनी तरीके से आए। पहले वीजा ले और निर्धारित अवधि में वापस लौट जाए। 

अगर किसी को भारत की नागरिकता लेनी है तो उसका स्वागत है। भारत ने अनेक देशों के लोगों को नागरिकता दी है। इसके लिए उन्हें निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना होगा। जब वे प्रक्रिया पूरी कर लेंगे तो नागरिकता मिलेगी। इसमें किसी भी तरह का कोई भेदभाव नहीं है। भारतीय नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए जरूरी है कि सरकार अवैध ढंग से रहने वाले लोगों पर नजर रखे। उन्हें हिरासत में ले और उचित प्रक्रिया के माध्यम से उनके देश भेजने का इंतजाम करे। सरहद पर निगरानी बढ़ानी होगी। जो व्यक्ति घुसपैठ करे, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।

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