नफरत का नेटवर्क तोड़ें

आईएसआईएस जैसे आतंकवादी संगठन भी सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर युवाओं को भटकाने की कोशिशें कर रहे हैं

नफरत का नेटवर्क तोड़ें

सजगता और आपसी विश्वास से ही नफरत का नेटवर्क तोड़ा जा सकता है

आईआईटी-गुवाहाटी के दो छात्रों का कथित तौर पर आईएसआईएस के प्रति निष्ठा रखने का मामला राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत गंभीर है। युवा शक्ति किसी भी राष्ट्र की दशा और दिशा को बदल सकती है। अगर वह खुद को रचनात्मक कार्यों में लगाए तो देश-दुनिया के लिए आदर्श बन सकती है। अगर वह विध्वंसक विचारधारा से प्रभावित होकर मानवता-विरोधी गतिविधियों में लिप्त हो जाए तो भविष्य में उसके बड़े दुष्परिणाम हो सकते हैं। पिछले कुछ वर्षों में भारतीय जांच एजेंसियों ने जिस तरह ऐसे मामलों का खुलासा करते हुए आरोपियों पर शिकंजा कसा है, उससे देश के नागरिक अधिक सुरक्षित महसूस कर रहे हैं। आज सोशल मीडिया का दौर है, जिसने लोगों को एक-दूसरे के बहुत करीब ला दिया है, लेकिन इसके दूसरे पहलू की उपेक्षा नहीं की जा सकती। यह कड़वा सच है कि आईएसआईएस जैसे आतंकवादी संगठन भी सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर युवाओं को बरगलाने और भटकाने की कोशिशें कर रहे हैं। ऐसे में नागरिकों, खासतौर से युवाओं को बहुत सावधान रहने की जरूरत है। आईएसआईएस, लश्कर, जैश ... जैसे संगठन अपने स्वार्थों के लिए ऐसे युवाओं को निशाना बनाते हैं, जो जल्द इनके बहकावे में आ जाएं। अगर इन संगठनों को सच में इन्सानियत की खिदमत करनी होती, सच्चे मायनों में क्रांति लानी होती, जैसा कि ये दावा करते हैं, तो पहले यह देखें कि इन्होंने उन इलाकों का क्या हाल किया, जहां इनका ज़रा-सा भी दबदबा रहा है? ये संगठन जहां-जहां गए हैं, अपने साथ तबाही लेकर गए हैं।

आईआईटी का उक्त छात्र बीटेक के चौथे वर्ष में था। निश्चित रूप से उसने इस कक्षा तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत की होगी। यह माना जा सकता है कि छात्र को अपने भले-बुरे की जानकारी थी। उसे यह भी पता था कि आईएसआईएस जैसे संगठन क्या काम करते हैं! उच्च शिक्षित होने के बावजूद उसने ऐसा कदम क्यों उठाया? कोई भी व्यक्ति ऐसे संगठनों के प्रभाव में रातोंरात नहीं आता। निश्चित रूप से उसके दिलो-दिमाग में किसी अन्य व्यक्ति ने नफरत का जहर भरा होगा। सोशल मीडिया पर ऐसे कई कथित उपदेशक सक्रिय हैं, जो युवाओं को गुमराह कर रहे हैं। जब तक इन पर सख्ती नहीं की जाएगी, आतंकवादी संगठनों से सहानुभूति के मामले सामने आते रहेंगे। इन दिनों यूरोप भी इसी समस्या से त्रस्त है। वहां अति-उदारवादी सरकारें अपने नागरिकों और सामाजिक सद्भाव की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। उन्होंने सख्त कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। ब्रिटेन ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इंडोनेशिया जैसे देशों से चरमपंथी प्रचारकों के लिए अपने दरवाजे बंद करने का फैसला किया है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक एक भाषण में चेतावनी दे चुके हैं कि इस देश के लोकतांत्रिक और बहु-आस्था मूल्य चरमपंथियों के खतरे में हैं। फ्रांस में ट्यूनीशियाई मूल के एक चरमपंथी उपदेशक ने इस देश के राष्ट्रीय ध्वज को शैतानी झंडा बताया था, जिसके बाद सरकार ने सख्त रुख अपनाकर उसे निष्कासित करते हुए 'स्वदेश' रवाना कर दिया था। सरकारों को चाहिए कि वे इंटरनेट पर भी ऐसे तत्त्वों के खिलाफ अभियान छेड़ें। अगर जरूरत पड़े तो कठोर नियम बनाएं, सर्च इंजन व सोशल मीडिया कंपनियों के प्रतिनिधियों से बातचीत करें। युवाओं को आतंकवाद की ओर धकेलने वाले प्रचारकों, उपदेशकों और संगठनों के लिए इंटरनेट पर कोई जगह नहीं होनी चाहिए। जांच एजेंसियां खूब सतर्कता बरतते हुए संदिग्ध सोशल मीडिया प्रोफाइलों, पेजों और समूहों पर नजर रखें। समय-समय पर स्कूलों और कॉलेजों में जागरूकता के लिए कार्यक्रम करवाएं। युवाओं को चरमपंथी विचारधारा के खतरे बताते हुए इस बात का विश्वास दिलाया जाए कि अगर आपको कोई गुमराह करने की कोशिश करे तो पुलिस या संबंधित एजेंसियों को बेखौफ होकर सूचना दें, आपकी मदद की जाएगी। सजगता और आपसी विश्वास से ही नफरत का नेटवर्क तोड़ा जा सकता है।

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