व्यावहारिक हों वादे

अगर चुटकियों में गरीबी दूर करना संभव होता तो ऐसा तभी हो जाता, जब भारत आजाद हुआ था

व्यावहारिक हों वादे

कुछ 'अतिक्रांतिकारी' लोग भारत के सन्दर्भ में परमाणु निरस्त्रीकरण की बातें करते हैं

चुनावी मौसम में राजनीतिक दलों द्वारा किए जा रहे वादे व्यावहारिक होने चाहिएं। वे न तो अतिशयोक्तिपूर्ण हों और न ही अति-आदर्शवादी हों। एक राजनेता एक झटके में देश की गरीबी दूर करने की बात कह रहे हैं, तो एक राजनीतिक दल ने अपने चुनाव घोषणा-पत्र में यह वादा कर दिया कि अगर उसे सत्ता मिली तो वह परमाणु निरस्त्रीकरण की दिशा में कदम बढ़ाएगा! क्या एक झटके में किसी देश की गरीबी दूर की जा सकती है? क्या हम परमाणु हथियारों को त्यागकर अधिक सुरक्षित हो सकते हैं? जनता को इन दोनों ही प्रश्नों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। अगर चुटकियों में गरीबी दूर करना संभव होता तो ऐसा तभी हो जाता, जब भारत आजाद हुआ था। हर सरकार के पास बुद्धिजीवियों, विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों की टीम होती है। उन लोगों ने आज तक ऐसा 'अद्भुत' सुझाव क्यों नहीं दिया? अगर पलक झपकते ही गरीबी को गायब करना संभव होता तो पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह जरूर ऐसा कर देते, जो स्वयं अर्थशास्त्र के बड़े विद्वान हैं। प्राय: गरीबी दूर करने के लिए एक 'तर्क' दिया जाता है कि लोगों को ज्यादा से ज्यादा पैसा दे दिया जाए। इससे उनकी गरीबी दूर हो जाएगी! ऐसी बातें पूरी तरह सही नहीं हैं। निस्संदेह जरूरतमंद लोगों को आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए, लेकिन वह किसी उत्पादक कार्य में लगनी चाहिए या ऐसे कार्य में लगनी चाहिए, जिससे भविष्य में उत्पादक कार्य किए जाने की अच्छी संभावना हो। उदाहरण के लिए, अगर किसी व्यक्ति की केक बनाने में रुचि है, लेकिन उसके पास न तो उचित प्रशिक्षण है और न ही पर्याप्त संसाधन हैं। अगर ऐसी स्थिति में उसे प्रशिक्षण दिलवाकर आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जाए, ताकि वह जरूरी सामान खरीद सके, तो इससे उसे रोजगार मिलेगा। फिर वह धीरे-धीरे गरीबी से निकल आएगा। इसके विपरीत, अगर उसे सिर्फ पैसा दे दिया जाए और कोई प्रशिक्षण, कोई प्रोत्साहन न दिया जाए, तो इस बात की बहुत ज्यादा आशंका है कि कुछ दिनों बाद वह फिर गरीब हो जाए!

कुछ कल्पनाएं अत्यंत मधुर लगती हैं। जैसे- 'दुनिया में हर कोई बहुत प्रेम से रहने लगे, सभी देशों के बीच मधुर संंबंध हो जाएं, कोई सरहद न हो, कोई सेना न हो, किसी के भी हृदय में छल, कपट, लोभ जैसी बुराइयां न हों ...।' क्या ही अच्छा हो, अगर सच में ऐसा हो जाए! तब तो धरती पर सतयुग आ जाएगा, किसी को किसी से खतरा नहीं रहेगा! लेकिन आज स्थिति ऐसी नहीं है। अगर कोई देश अपनी सीमाएं खोल दे, सेना हटा दे, हथियारों को नष्ट कर दे और सब लोगों को मनमानी करने की छूट दे दे तो वहां भारी अनर्थ हो जाएगा। भयंकर अराजकता फैल जाएगी। आदर्श और यथार्थ को साथ लेकर चलना होता है। आदर्श का पालन जरूर करें, लेकिन विवेकशील भी बनें। कुछ 'अतिक्रांतिकारी' लोग भारत के सन्दर्भ में परमाणु निरस्त्रीकरण की बातें करते हैं। उसके क्या परिणाम हो सकते हैं, इस पर वे प्रकाश डालने का कष्ट नहीं करते। भारत के दो पड़ोसी (पाकिस्तान और चीन) परमाणु हथियारों से लैस हैं। दोनों का ही रवैया हमारे प्रति घोर शत्रुतापूर्ण है। दोनों ही हमारे अस्तित्व से घृणा करते हैं। क्या इस स्थिति में हमें परमाणु निरस्त्रीकरण की ओर कदम बढ़ाना चाहिए? भारत ने सदियों तक विदेशी आक्रांताओं के हमले झेले हैं, जिनमें असंख्य लोगों को प्राण गंवाने पड़े थे। आज आतंकवाद एक गंभीर खतरा बना हुआ है, जिसके नेटवर्क का पर्दाफाश करने के लिए भारतीय एजेंसियां दिन-रात मेहनत कर रही हैं। उक्त दोनों पड़ोसी हमारी जमीन पर कुदृष्टि रखते हैं। दोनों से हमारे युद्ध हो चुके हैं। झड़पें तो होती रहती हैं। इन सब बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए हमें और ज्यादा शक्तिशाली बनना चाहिए या शक्तिहीनता की ओर बढ़ना चाहिए? भारत के सन्दर्भ में परमाणु निरस्त्रीकरण के वादे क्षणिक 'वाहवाही' तो दिला सकते हैं, लेकिन ये किसी भी तरह से व्यावहारिक नहीं हैं।

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