पाकिस्तान के झूठ पर भरोसा क्यों?

आईएसपीआर झूठ की फैक्ट्री है

पाकिस्तान को झूठ फैलाने में महारत हासिल है

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पृथ्वीराज चव्हाण ने 'ऑपरेशन सिंदूर' के बारे में जो बयान दिया है, वह हकीकत से कोसों दूर है। वरिष्ठ नेताओं को बहुत सोच-समझकर बयान देना चाहिए। राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर अनर्गल बयान देकर पृथ्वीराज चव्हाण पाकिस्तान के मीडिया में छा गए हैं। वहां उनके शब्दों को सोशल मीडिया पर पेश कर पाकिस्तानी फौज के पक्ष में माहौल बनाया जा रहा है। इसका फायदा भारत के दुश्मनों को मिल रहा है। ऑपरेशन सिंदूर हो या दुनिया का कोई भी सैन्य अभियान, उसमें बेहतर करने की गुंजाइश हमेशा ही रहती है। यह वीडियो गेम नहीं है, जिसे देखकर कोई कह दे, 'आनंद नहीं आया।' ऑपरेशन सिंदूर कितना असरदार था, यह जानना हो तो पाकिस्तान और पीओके के उन इलाकों के लोगों से पूछें, जहां भारतीय मिसाइलें गिरी थीं। अब तो ऐसे वीडियो सोशल मीडिया पर उपलब्ध हैं। जब मिसाइलें अपने लक्ष्य तक पहुंचीं तो आतंकवादियों और उनके कुनबों को संभलने का मौका नहीं मिला था। उन मिसाइलों की उत्कृष्टता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ध्वस्त ठिकानों के आस-पास स्थित इमारतों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा और जो आतंकवादी चपेट में आया, वह ज़िंदा नहीं बचा। पाकिस्तानी फौज, आईएसआई और उनकी सरकार में खलबली मच गई थी। उनके नेतृत्व के पास युद्ध का कोई अनुभव नहीं था। पाकिस्तान की जनता उन पर दबाव डाल रही थी कि जवाबी कार्रवाई की जाए। उन्होंने जनता को भ्रमित करने के लिए फर्जी खबरें खूब फैलाईं। इतनी फैलाईं कि भारत के कुछ 'बड़े' चैनलों ने भी उन पर विश्वास कर लिया था। बाद में खुलासा हुआ कि यह पाकिस्तान का दुष्प्रचार था।

ऐसा प्रतीत होता है कि पृथ्वीराज चव्हाण ने उन फर्जी खबरों को कुछ ज्यादा ही गंभीरता से ले लिया और अब तक उन पर विश्वास कर रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर से पाकिस्तान को कितना नुकसान हुआ, इसका सही-सही आंकड़ा कभी सामने नहीं आएगा, लेकिन वहां जिस तरह एंबुलेंसों से शव उतारे जा रहे थे, अस्पतालों की ओर भागमभाग मची थी और स्थानीय लोग सोशल मीडिया पर बता रहे थे, उससे आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि मारे गए आतंकवादियों की संख्या बहुत ज्यादा रही होगी। पाकिस्तानी फौजी भी बहुत ढेर हुए थे। अगर पड़ोसी देश यह स्वीकार कर ले तो जनता के सामने उसकी भारी किरकिरी होगी। पाकिस्तानी फौज ने बड़ी चालाकी से खुद की एक नकली छवि बना रखी है। करोड़ों पाकिस्तानी इस भ्रम में जी रहे हैं कि उनकी फौज ने हर युद्ध जीता था और वह अजेय है। सोशल मीडिया आने के बाद कई लोगों को पता चला कि पाकिस्तानी फौज ने कोई युद्ध नहीं जीता, बल्कि साल 1971 में तो उसने घुटने टेके थे। पाकिस्तानी नागरिक यह जानकर हैरान होते हैं कि साल 1999 में जब उनकी फौज कारगिल युद्ध हार गई थी तो अपने सैनिकों के शव लेने से भी इन्कार कर दिया था। उन्हें यह पढ़ाया गया था कि पाकिस्तानी फौज हर मोर्चा फतह करती जा रही थी! वास्तव में, पाकिस्तान को झूठ फैलाने में महारत हासिल है। उसने आईएसपीआर नामक झूठ की फैक्ट्री खोल रखी है, जिसका काम है झूठ का प्रचार-प्रसार करना। उसने सोशल मीडिया पर हजारों अकाउंट बना रखे हैं, जिन्हें इतने शातिर ढंग से संचालित किया जाता है कि बड़े-बड़े विशेषज्ञ धोखा खा जाते हैं। अब एआई की मदद से आईएसपीआर अपने झूठ को नई ऊंचाइयों पर लेकर जाएगी। इसे ध्यान में रखते हुए सावधान रहना चाहिए। सोशल मीडिया पर प्रसारित हर बात सच नहीं होती। वरिष्ठ नेता जब कोई बयान दें तो विश्वसनीय तथ्यों का अध्ययन जरूर करें।

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