बांग्लादेशी नेताओं का बढ़ता दुस्साहस

वे भारत को धमकियां रहे हैं

क्या बांग्लादेशी नागरिक अपने देश को पाकिस्तान जैसा बनाना चाहते हैं?

बांग्लादेश की नेशनल सिटिजन पार्टी के नेता हसनत अब्दुल्लाह द्वारा दी गई यह धमकी कि ''सेवन सिस्टर्स' को भारत से अलग-थलग कर देंगे', को भारत सरकार को बहुत गंभीरता से लेना चाहिए। उत्तर-पूर्व के राज्यों के बारे में बांग्लादेश की ओर से आपत्तिजनक बयानबाजी पहले भी होती रही है। अब इसके नेताओं का दुस्साहस इतना बढ़ गया है कि खुद की अर्थव्यवस्था का बेड़ा गर्क हो गया, लेकिन धमकियां बड़ी-बड़ी दे रहे हैं। वास्तव में हसनत अब्दुल्लाह ने कोई नई बात नहीं कही है। बांग्लादेशी कट्टरपंथियों का यह पुराना ख्वाब है। इसके तहत, वे उत्तर-पूर्व में इतनी घुसपैठ करवाना चाहते हैं, जिससे डेमोग्राफी बदल जाए। एक बार जब डेमोग्राफी बदल जाती है तो स्थिति को सुधारना बहुत मुश्किल होता है। हसनत अब्दुल्लाह की पार्टी को बने चार दिन हुए हैं, लेकिन इसकी सोच वही पुरानी और जहरीली है। यह पार्टी उन्हीं लोगों का जमघट है, जिन्होंने उपद्रव मचाकर शेख हसीना को बांग्लादेश छोड़ने को मजबूर किया था। अब ये भारत को आंखें दिखा रहे हैं, उसके राज्यों को अलग-थलग करने की धमकियां दे रहे हैं। जो बुद्धिजीवी इनके हुड़दंग को छात्र आंदोलन बताकर इनकी शान में गीत गा रहे थे, वे देख लें कि इनके विचार कितने पवित्र हैं! हसनत अब्दुल्लाह ने बांग्लादेश की संप्रभुता, क्षमता, मताधिकार और मानवाधिकार का सम्मान नहीं करने वाली ताकतों को पनाह देने संबंधी आरोप लगाकर यह भी कहा कि हमारी तरफ़ से इसका जवाब मिलेगा। इस शख्स की भाषा किसी राजनेता की नहीं है। यह उसी तरह लोगों को भड़का रहा है, जैसे पाकिस्तान में कट्टरपंथी आग उगलते भाषणों से लोगों को भड़काते हैं। क्या बांग्लादेशी नागरिक अपने देश को पाकिस्तान जैसा बनाना चाहते हैं? इसका फैसला उन्हें करना होगा।

बांग्लादेशी नेता यह कहकर किसे धमकी दे रहे हैं कि उनके देश में अस्थिरता का असर पूरे इलाके पर होगा? पिछले साल ढाका समेत कई शहरों में जो उपद्रव हुआ, उसे किन लोगों ने अंजाम दिया था? अल्पसंख्यकों के घरों, दुकानों में आग कौन लगा रहा था? वे बांग्लादेशी कट्टरपंथी ही थे। इसलिए बांग्लादेशी नेता अपनी हरकतों के लिए दूसरों को जिम्मेदार ठहराकर मासूम बनने की कोशिश न करें। आप किस जवाब की बात कर रहे हैं? पहले अपने नागरिकों का पेट भरने के लिए पर्याप्त अन्न का इंतजाम तो कर लें, जो चोरी-छिपे हमारे देश में आकर रहते हैं। अगर भारत अब तक नरम रवैया न अपनाता तो बांग्लादेशियों में एक-एक कटोरी चावल के लिए सिर-फुटौवल होती। बांग्लादेश में जिस तरह के नेताओं का उदय हो रहा है, वे अपने देश की संप्रभुता, क्षमता आदि को पलीता लगाने के लिए खुद ही काफी हैं। जिन्होंने खुद मताधिकार और मानवाधिकार का उल्लंघन किया, वे इनका सम्मान करने के लिए उपदेश दे रहे हैं! बांग्लादेश के नए-नवेले नेताओं को चाहिए कि वे पहले उन बांग्लादेशियों के लिए आवास, भोजन और रोजगार की फिक्र करें, जो हाल में भारत के पश्चिम बंगाल से भागे हैं। कई बांग्लादेशियों ने एसआईआर शुरू होने से पहले ही अपना बोरिया-बिस्तर समेट लिया था। अभी तो शुरुआत है। भारत के अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में डेरा डाले बैठे बांग्लादेशियों को भी देर-सबेर स्वदेश लौटना पड़ेगा। बांग्लादेशी नेता 'सेवन सिस्टर्स' की फिक्र न करें, बल्कि अपने 'ब्रदर्स एंड सिस्टर्स' की फिक्र करें। शेख हसीना के सत्ता छोड़ने के बाद बांग्लादेश में उद्योगों की क्या स्थिति है? जब से नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री महोदय ने कमान संभाली है, कंपनियों को ताले लगते जा रहे हैं। कई बांग्लादेशियों को उम्मीद है कि चुनाव बाद सब ठीक हो जाएगा। हालांकि जैसे नेता सामने आ रहे हैं, उन्हें देखकर इस आशंका को ज्यादा बल मिलता है कि बांग्लादेश को एक बार फिर अशांति का सामना करना पड़ सकता है।

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