आतंकवादियों ने एक बार फिर मानवता को लहूलुहान कर दिया। ऑस्ट्रेलिया में सिडनी के बोंडी बीच पर दर्जनभर लोगों को मौत के घाट उतार दिया। शांति और खुशी के माहौल में त्योहार मना रहे लोगों से किसी को क्या दिक्कत हो सकती है? इस हमले के वीडियो देखकर पहलगाम हमले की यादें ताजा हो जाती हैं। वहां भी आम लोग छुट्टियों का आनंद ले रहे थे, बोंडी बीच पर भी लोग छुट्टियों का लुत्फ उठा रहे थे। पहलगाम में आतंकवादियों ने धर्म पूछकर गोलियां बरसाई थीं, बोंडी बीच पर अंधाधुंध गोलियां बरसाईं, क्योंकि पहले से पता था कि ये यहूदी हैं, जो हनुका त्योहार मनाने के लिए इकट्ठे हुए हैं। हंसी-खुशी का माहौल मातम में बदल गया। ऑस्ट्रेलियाई मीडिया रिपोर्टों में एक हमलावर का नाम (पाकिस्तानी मूल का) नवीद अकरम बताया जा रहा है। इस बात का पहले से ही शक था। यूं तो ऑस्ट्रेलिया काफी शांत और सुरक्षित देश माना जाता है, लेकिन इसकी सरकारों ने पिछले तीन दशकों में प्रवासियों के मामले में जो उदारता दिखाई, अब उसके फल मिलने लगे हैं। इस देश को श्रम-शक्ति बढ़ाने के लिए लोगों की जरूरत थी। ऑस्ट्रेलियाई सरकारों ने पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, बांग्लादेश, सीरिया, लीबिया जैसे देशों के नागरिकों के लिए अपने दरवाजे खोले थे। यह गलत नहीं है, लेकिन जिन लोगों को बुलाया गया, उनकी जांच-पड़ताल करनी चाहिए थी। ऑस्ट्रेलिया में कई इलाके ऐसे हैं, जहां पाकिस्तानी बड़ी तादाद में रहते हैं। अक्सर स्थानीय लोग शिकायत करते हैं कि ये हमेशा असंतुष्ट रहते हैं, ज्यादा से ज्यादा अधिकारों की मांग करते हैं, खुद नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ाते हैं, गंदगी फैलाते हैं और अपनी मर्जी चलाने की कोशिश करते हैं।
ऑस्ट्रेलिया में कई लोग ऑनलाइन चर्चा में चिंता जता चुके हैं कि देश में कट्टरपंथ बढ़ता जा रहा है और सरकार को कोई परवाह नहीं है। बोंडी बीच हमले के बाद एजेंसियां जांच में जुटी हैं। अगर इस घटना के पीछे पाकिस्तानियों का पूरा नेटवर्क निकल आए तो इस पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इस बात को समझने की जरूरत है कि पाकिस्तान में यहूदियों से बहुत ज्यादा घृणा की जाती है। वहां कट्टरपंथी उपदेशक यहूदियों के खिलाफ आग उगलते रहते हैं। इससे आम लोगों की सोच प्रभावित हो रही है। जब बोंडी बीच हमले की खबरें पाकिस्तानी चैनलों के सोशल मीडिया पेजों पर प्रसारित हुईं तो टिप्पणियों में कई पाकिस्तानी नागरिक खुशियां मना रहे थे। वे इसे गाजा, फिलिस्तीन, लेबनान, ईरान से जोड़कर देख रहे थे। आम लोगों की हत्याओं पर कोई व्यक्ति खुशी कैसे मना सकता है? इससे उसकी कैसी मानसिकता झलकती है? पहलगाम हमले के बाद भी पाकिस्तानी नागरिक खबरों पर ऐसी ही प्रतिक्रिया दे रहे थे। ऑस्ट्रेलियाई एजेंसियों को चाहिए कि वे वास्तविकता को स्वीकार करें। देश सुरक्षित होगा तो लोकतंत्र सुरक्षित होगा, लोगों के अधिकार सुरक्षित होंगे। वे अपनी सरकार पर दबाव डालें कि कट्टरपंथ के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। पाकिस्तान जैसे देशों, जहां कट्टरपंथ जड़ जमा चुका है, के नागरिकों को वीजा और नागरिकता देने में बहुत सावधानी बरतें। लोगों की सोशल मीडिया गतिविधियों को गंभीरता से लें। जो व्यक्ति ऑस्ट्रेलिया में रहकर उसके कानून का सम्मान नहीं करता, संस्कृति की खिल्ली उड़ाता है, हर कहीं अपनी मर्जी चलाता है, उसे स्वदेश भेजने का इंतजाम करें। ऑस्ट्रेलिया के पास मौका है कि वह अपनी पुरानी गलतियों को सुधारे। अति-उदारवाद दिखाने की कोशिश में यूरोप के कई देशों ने मुसीबत मोल ले रखी है। अब उन्हें पछतावा हो रहा है, लेकिन वहां कानून ऐसे हैं कि सरकारें कुछ खास कर नहीं सकतीं। वोटबैंक की राजनीति भी एक बड़ी समस्या है। इससे स्थानीय लोगों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। यह स्थिति भविष्य में अप्रिय मोड़ ले सकती है। ऑस्ट्रेलिया सावधान रहे।