दीपावली को यूनेस्को की अमूर्त विरासत सूची में शामिल किया जाना बहुत खुशी की बात है। प्रकाश का यह पर्व खुशियां मनाने और खुशियां फैलाने का संदेश देता है। दुनियाभर से कई पर्यटक हर साल दीपावली की रोशनी देखने के लिए भारत आते हैं। जगमग करता कोना-कोना ऐसा लगता है, जैसे स्वर्ग ही धरती पर उतर आया। अब तो पश्चिमी देशों में दीपावली की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। अमेरिका में व्हाइट हाउस से लेकर कई शहरों में दीपावली की सजावट की जाती है, बाजार रोशनी से नहा उठते हैं। वास्तव में, सनातन धर्म के हर त्योहार और विशेष दिन को मनाने के पीछे सिर्फ धार्मिक कारण नहीं, बल्कि वैज्ञानिक कारण भी हैं। उनमें सर्वसमाज के कल्याण का बहुत ध्यान रखा गया है। हमारे महान ऋषि-मुनि इतने दूरदर्शी थे कि उन्होंने ऐसी चीजों को तिथियों-त्योहारों के साथ जोड़ा, जो दिखने में साधारण लगती हैं, लेकिन वे धन का प्रवाह इस तरह करती हैं, जिससे सबकी भलाई हो। दीपावली पर दीये, तेल और बाती का अर्थशास्त्र अद्भुत है। इससे किसान, कुम्हार, दुकानदार - सबकी रोजी-रोटी चलती है। यह तो एक त्योहार की कुछ चीजें हैं। मकर संक्रांति को ही लीजिए। वैसे तो यह दान-पुण्य का दिन माना जाता है, लेकिन अब लोग इसे त्योहार की तरह उत्साहपूर्वक मनाते हैं। इस दिन तिलों से बनीं चीजें खाई जाती हैं। गायों को हरा चारा खिलाया जाता है। इसका सीधा फायदा हमारे किसानों को मिलता है। इसी तरह गुड़, चावल, खाद्यान्न, मूंगफली, सूखे मेवों का दान किया जाता है। इन सबका संबंध खेत-खलिहान से है। जो लोग सालभर किसी चीज का दान नहीं करते, वे भी इस दिन कुछ-न-कुछ दान करना चाहते हैं।
होली का त्योहार अनूठा है। गांवों में तो आज भी होली से हफ्तों पहले ढफ की थाप पर गीत गाए जाते हैं। पहले, ये मनोरंजन का सबसे बड़ा माध्यम होते थे। लोग हंसी-खुशी के माहौल में मिलते थे। इससे मेलजोल बढ़ता था। होली पर रंगों का कारोबार बहुत होता है। आजकल बाजारों में जो घातक रसायनयुक्त रंग मिलते हैं, उनमें वह बात नहीं है। पहले, पलाश, चंपा, गुलाब, चुकंदर, हल्दी, केसर, पालक आदि से रंग बनाए जाते थे। ये त्वचा को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। इनका संबंध भी खेती से है। जब देश में प्राकृतिक रंगों से होली खेली जाती थी, तब न कहीं संक्रमण का डर था, न धन का प्रवाह कुछ हाथों तक सीमित था। सबकी कमाई होती थी। जनता खुशियां मनाती थी। यूं तो होली और दीपावली पर कई पकवान बनाए जाते हैं, लेकिन राजस्थान में मीठे चावल, मूंग और बेसन की चक्की बनाने की परंपरा है। ये पकवान मेल-मुलाकात के लिए आने वाले लोगों को भी खिलाए जाते हैं। इनके लिए ज्यादातर चीजें गांवों से आती हैं। क्या दुनिया में कोई और मॉडल है, जो इस तरह ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती दे? पिछले कुछ वर्षों में विदेशी कंपनियों की चॉकलेट, केक और मिठाइयों का चलन बहुत बढ़ गया है। इन्हें प्रतिष्ठा से जोड़कर देखा जाता है। इनसे हमारे गांवों और किसानों को कितना फायदा होता है? हर साल करवा चौथ से पहले कुछ कथित बुद्धिजीवी सोशल मीडिया पर वायरल होने के लिए गलत-सलत बयानबाजी करते हैं। वे कहते हैं- इस व्रत को करने से क्या होता है? हालांकि वे वेलेंटाइन डे मनाने का पुरजोर समर्थन करते हैं। विदेशी कंपनियां इस डे का पूरा प्रचार करती हैं। वे महंगे कार्ड, चॉकलेट, टेडी बीयर और न जाने क्या-क्या चीजें पेश कर इसे सुनहरे मौके की तरह भुनाती हैं। वहीं, करवा चौथ पर करवा, मेहंदी और सौभाग्य की चीजें भारत के आम लोगों को रोजगार देती हैं। हमें अपने त्योहारों के पीछे मौजूद विज्ञान को जरूर जानना चाहिए। इन्हें प्रेम एवं सद्भावपूर्वक मनाना चाहिए। इनके साथ किसी भी तरह की विकृति और बुराई को नहीं जोड़ना चाहिए।