डॉलर के मुकाबले रुपए में आई गिरावट ने अर्थव्यवस्था की चुनौतियां बढ़ा दी हैं। भारतीय मुद्रा ने पहली बार 90 का आंकड़ा पार कर लिया। इसके मद्देनज़र सरकार और देशवासियों को एकजुट होकर गंभीरता से काम करने की जरूरत है। यह अर्थशास्त्र का सामान्य-सा नियम है कि रुपए में गिरावट आने से आयात बिल बढ़ता है, जिससे चीजों की कीमतों में इजाफा होता है। आखिरकार इसका भार आम आदमी पर पड़ता है, जो पहले से ही कई समस्याओं से जूझ रहा है। भारत अपनी जरूरत के लिए ईंधन का ज्यादातर हिस्सा आयात करता है, जिसका भुगतान डॉलर में किया जाता है। इसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक्स, कई दवाइयों, मशीनरी और उद्योगों के कच्चे माल की आपूर्ति के लिए विदेशों पर निर्भरता है। अब इनकी लागत बढ़ सकती है। रुपए में आई कमजोरी से निवेशकों के भरोसे पर भी असर पड़ता है। वे उन बाजारों का रुख कर सकते हैं, जिनकी मुद्रा तुलनात्मक रूप से ज्यादा मजबूत है। यह गिरावट उन विद्यार्थियों पर आर्थिक भार बढ़ा सकती है, जो पढ़ाई के लिए विदेश गए हैं। उन्हें रहने और खाने पर (भारतीय मुद्रा में) ज्यादा राशि खर्च करनी पड़ेगी। इससे भारत में रहने वाले उनके परिवारों के बजट पर असर पड़ सकता है। डॉलर के साथ इस मुकाबले में रुपए का मजबूत होना जरूरी है। यह सबके जीवन से जुड़ा मुद्दा है, इसलिए सिर्फ सरकार के भरोसे छोड़ देना उचित नहीं है। विपक्ष के नेता सरकार की तीखी आलोचना कर रहे हैं। यह उनका अधिकार है, वे जरूर करें। साथ ही, उन तौर-तरीकों के बारे में भी बताएं, जिन्हें अपनाने से रुपया मजबूत हो सकता है। कोरी आलोचना से किसी का भला नहीं हो सकता।
डॉलर को नकेल डालने के लिए स्वदेशी चीजों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार 'वोकल फॉर लोकल' का आह्वान कर चुके हैं। अब यह हर भारतीय का संकल्प होना चाहिए। नेताओं और सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को तो आगे बढ़कर उदाहरण पेश करना चाहिए। विदेशी जूते, साबुन, परफ्यूम, टूथपेस्ट, कपड़े, चॉकलेट, विदेशी मोबाइल फोन और ऐसी तमाम चीजों के भारतीय विकल्पों को प्राथमिकता देनी चाहिए। पहले, एक साल का लक्ष्य बनाएं। इस अवधि में डॉलर को नीचे लाने के लिए सरकार क्या करे और जनता क्या करे - इस पर स्पष्ट जानकारी सार्वजनिक की जाए। जहां सरकार के प्रयासों में कमी नजर आए, वहां जनता उसे याद दिलाए। इसी तरह सरकार भी ऐसी नीतियां बनाए, जो जनता को उक्त लक्ष्य प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहन दें। हमें पेट्रोल, डीजल और गैस के अन्य विकल्पों पर विचार करना चाहिए। भारत के पास प्रतिभाशाली वैज्ञानिक हैं। सरकार उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपे। वाहनों के लिए वैकल्पिक ईंधन ढूंढ़ने में समय लग सकता है, लेकिन रसोईघरों में (ईंधन के विकल्प के तौर पर) सौर ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा सकता है। अगर देश के 50 प्रतिशत रसोईघरों में भी सौर ऊर्जा पहुंच जाएगी तो आयात बिल में भारी बचत होगी। कई लोग छुट्टियों में विदेश घूमने जाते हैं। यह गलत नहीं है, बल्कि इसके कई फायदे हैं। अभी विदेशी मुद्रा की बचत करने के लिए विदेश घूमना टाल दें तो बेहतर होगा। अपना देश बहुत विशाल है। यहां सुंदर जगहों की कमी नहीं है। भारतीय पर्यटन स्थलों पर जाने से अपने देश में रोजगार के अवसरों का सृजन होगा। नेतागण और सरकारी अधिकारी विदेश का दौरा करें तो मितव्ययता का खास ध्यान रखें। सरकार निवेश और बचत को प्रोत्साहन दे। जब बैंकिंग सिस्टम मजबूत होगा तो अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।