प्रख्यात अमेरिकी उद्योगपति एलन मस्क के बयान कि 'भारत से आए प्रतिभाशाली लोगों से अमेरिका को बहुत फायदा हुआ है', के बाद सोशल मीडिया पर कई लोग इसे एक महान घटना बताते हुए इस पर खुशी मना रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि भारतीय युवा बहुत मेहनती, बुद्धिमान और प्रतिभाशाली होते हैं। उन्होंने पश्चिमी देशों में ऐसी उपलब्धियां हासिल की हैं, जिन्हें देखकर दुनिया के सबसे धनवान लोगों में से एक शख्स को उनकी तारीफ करनी पड़ रही है। हमारे युवा बहुत काबिल हैं। इसमें नई बात क्या है? इन युवाओं के दम पर अमेरिकी कंपनियां समृद्ध हो रही हैं। इसमें फायदा किसका है? अगर ये युवा भारत में रहकर अपनी प्रतिभा का कमाल दिखाते तो अपने देश को फायदा पहुंचाते! वास्तव में यह खुशी मनाने से ज्यादा आत्मचिंतन करने का समय है। क्या वजह है कि हमारे युवाओं को अमेरिका जाकर नौकरी करनी पड़ रही है? उन्हें उस देश को ताकतवर बनाना पड़ रहा है, जिसका राष्ट्रपति हमें आए दिन टैरिफ की धमकियां दे रहा है और पाकिस्तान की पीठ थपथपा रहा है? ये अत्यंत गंभीर प्रश्न हैं, जो सोशल मीडिया के 'लाइक, शेयर और सब्सक्राइब' में खोने नहीं चाहिएं। यह कहना बिल्कुल बेबुनियाद है कि 'भारत के प्रतिभाशाली युवा सिर्फ मोटी कमाई करने के लिए अमेरिका जाते हैं।' ये युवा भारत से बहुत प्रेम करते हैं। ये अपनी भारतीय पहचान पर गर्व करते हैं। इनके अमेरिका जाने की बहुत बड़ी वजह है- भारत में पर्याप्त अवसर न मिलना। अमेरिका में व्यवस्था ऐसी है कि प्रतिभाशाली व्यक्ति को अवसर और संसाधन, दोनों मिल जाते हैं।
वहां कई युवा तो ऐसे हैं, जिन्होंने पढ़ाई के दौरान ही अपना व्यवसाय शुरू कर दिया था। अमेरिका में अपने व्यवसाय का रजिस्ट्रेशन कराने से लेकर दूसरी तमाम औपचारिकताएं पूरी करना कोई मुश्किल काम नहीं है। युवाओं को बार-बार सरकारी दफ्तरों के चक्कर नहीं लगाने पड़ते। व्यवसाय करने वाले युवाओं को विभिन्न कार्यक्रमों में बुलाकर उनके विचार सुने जाते हैं। भारत में सरकारी नौकरियों पर सबसे ज्यादा जोर दिया जाता है। अगर कोई युवा व्यवसाय शुरू करने का इरादा रखता है तो परिवार, पड़ोसी, रिश्तेदार - हर कोई उसे हतोत्साहित करने को अपना नैतिक कर्तव्य समझने लगता है। उसके सामने ऐसे लोगों की मिसाल दी जाती है, जो दस साल तैयारी करने के बाद कोई सरकारी नौकरी पा गया। इतना ही नहीं, उसे कुछ खास तरह के उदाहरण देकर डराया जाता है। जैसे- 'हमारे एक रिश्तेदार को भी ऐसा ही शौक चर्राया था। वे सबकुछ डुबोकर घर बैठे हैं। ... हमारे पड़ोसी का लड़का भी ऐसे ही ऊंचे ख्वाब देखता था। उसने जुए-सट्टे में सबकुछ उड़ा दिया। कुछ नहीं धरा इन सपनों में ... किसी तरह एक नौकरी पकड़ लें, उससे आगे कुछ न सोचें।' जहां कदम-कदम पर मनोबल तोड़ा जाएगा, वहां कोई युवा कितनी ऊर्जा के साथ व्यवसाय कर पाएगा? सरकारी दफ्तरों की कार्यशैली का अलग ही आलम है। वहां व्याप्त सुस्ती, भ्रष्टाचार और पुराना ढर्रा बड़ी रुकावटें हैं। हालांकि पिछले एक दशक में कुछ सुधार हुए हैं। अभी और सुधारों की जरूरत है। देश की जवानी देश की उन्नति में लगनी चाहिए। इसके लिए अनुकूल माहौल बनाएं। भारत के प्रतिभाशाली युवाओं के सामने आने वाले कुछ अवरोधक हटाएं। उनकी शिकायतों पर तुरंत ध्यान दिया जाए। इसके लिए अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाए। ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया जाए, जिसमें युवाओं को नेताओं और सरकारी दफ्तरों के चक्कर न लगाने पड़ें। 'जवान और किसान' की तरह उद्यमी का भी सम्मान किया जाए। सरकारें अभी इतना कर दें तो इस देश के प्रतिभाशाली युवा अपनी काबिलियत से कमाल करके दिखा देंगे।