उडुपी: प्रधानमंत्री ने लक्ष कंठ गीता पारायण कार्यक्रम में भाग लिया

एक लाख लोगों ने एकसाथ भगवद्गीता के श्लोक पढ़े

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उडुपी/दक्षिण भारत। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को कर्नाटक के उडुपी में श्रीकृष्ण मठ में लक्ष कंठ गीता पारायण कार्यक्रम में भाग लिया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य दर्शनों की संतुष्टि, श्रीमद्भागवत गीता के मंत्रों की यह आध्यात्मिक अनुभूति और इतने सारे पूज्य संतो, गुरुओं की उपस्थिति मेरे लिए परम सौभाग्य है। यह मेरे लिए असंख्य पुण्यों को प्राप्त करने जैसा है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि मैं अभी तीन दिन पहले ही गीता की धरती कुरुक्षेत्र में था। अब आज भगवान श्रीकृष्ण के आशीर्वाद और जगद्गुरु श्रीमाधवाचार्यजी के यश की इस भूमि पर आना मेरे लिए परम संतोष का अवसर है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज के इस अवसर पर जब एक लाख लोगों ने एकसाथ भगवद्गीता के श्लोक पढ़े, तो पूरे विश्व के लोगों ने भारत की सहस्र वर्षों की दिव्यता का साक्षात दर्शन भी किया है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कर्नाटक की इस भूमि पर यहां के स्नेहीजन के बीच आना मेरे लिए सदा ही एक अलग अनुभूति होती है। उडुपी की धरती पर आना तो हमेशा ही अद्भुत होता है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि मेरा जन्म गुजरात में हुआ और गुजरात एवं उडुपी के बीच गहरा और विशेष संबंध रहा है। मान्यता है कि यहां स्थापित भगवान श्रीकृष्ण के विग्रह की पूजा पहले द्वारका में माता रुक्मिणी करती थीं। बाद में जगद्गुरु श्रीमाधवाचार्यजी ने इस प्रतिमा को यहां पर स्थापित किया था।

प्रधानमंत्री ने कहा कि अभी पिछले ही वर्ष मैं समुद्र के भीतर द्वारकाजी के दर्शन करने गया था, वहां से भी आशीर्वाद ले आया। आप खुद समझ सकते हैं कि मुझे इस प्रतिमा के दर्शन करके क्या अनुभूति हुई होगी! इस दर्शन ने मुझे एक आत्मीय और आध्यात्मिक आनंद दिया है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि उडुपी आना मेरे लिए एक और वजह से विशेष होता है। उडुपी जनसंघ और भाजपा के सुशासन के मॉडल की कर्मभूमि रही है। साल 1968 में उडुपी के लोगों ने जनसंघ के हमारे वीएस आचार्य को यहां की नगर पालिका परिषद में विजयी बनाया था। उसके साथ ही उडुपी ने एक नए गवर्नेंस मॉडल की नींव भी रखी थी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज हम स्वच्छता के जिस अभियान का राष्ट्रीय रूप देख रहे हैं, उसे उडुपी ने पांच दशक पहले अपनाया था। जलापूर्ति और ड्रेनेज सिस्टम का एक नया मॉडल देना हो, उडुपी ने ही 70 के दशक में इन कार्यक्रमों की शुरुआत की थी।

प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे समाज में मंत्रों का और गीता के श्लोकों का पाठ तो शताब्दियों से हो रहा है, पर जब एक लाख कंठ, एक स्वर में इन श्लोकों का ऐसा उच्चारण करते हैं, जब इतने सारे लोग गीता जैसे पुण्य ग्रंथ का पाठ करते हैं, जब ऐसे दैवीय शब्द एक स्थान पर एक साथ गूंजते हैं, तो एक ऐसी ऊर्जा निकलती है, जो हमारे मन को, हमारे मष्तिष्क को एक नया स्पंदन और नई शक्ति देती है।

प्रधानमंत्री ने कहा कि रामचरित मानस में लिखा है- कलियुग केवल हरि गुन गाहा, गावत नर पावहिं भव थाहा। अर्थात् कलियुग में केवल भगवद्नाम और लीला का कीर्तन ही परम साधन है। उसके गायन, कीर्तन से भवसागर से मुक्ति हो जाती है।

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