पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने संविधान दिवस के अवसर पर एसआईआर के बारे में जो बयान दिया, उसमें सच्चाई कम और भ्रम ज्यादा है। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि ममता और कई नेताओं को एसआईआर से समस्या क्यों है? यह प्रक्रिया कोई पहली बार तो नहीं हो रही है। इसके तहत मतदाता सूची में मौजूद खामियों को दूर किया जा रहा है। अब जबकि एसआईआर हो रहा है तो कुछ नेता इसे लोकतंत्र पर हमला बता रहे हैं। अगर एसआईआर समयानुसार नहीं होता तो भी कुछ नेता इसे लोकतंत्र को दबाने की कोशिश करार देते। ममता बनर्जी एसआईआर को एनआरसी से जोड़कर प्रचारित कर रही हैं, जबकि दोनों प्रक्रियाएं पूरी तरह अलग हैं। चुनाव आयोग किसी की नागरिकता का निर्धारण नहीं कर रहा है। वह मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण कर रहा है। अगर इस दौरान सूची में अपात्र लोग पाए जाएंगे तो क्या उनके नाम नहीं काटने चाहिएं? ये नेतागण लोकतंत्र का बार-बार जिक्र कर रहे हैं। मतदाता सूची से अपात्र लोगों के नाम काटने और पात्र लोगों के नाम जोड़ने से लोकतंत्र मजबूत होगा या कमजोर होगा? इस सूची में अपात्र लोगों के नाम क्यों होने चाहिएं? क्या देश ऐसे चलेगा कि कोई भी व्यक्ति यहां आकर मतदाता बन जाए? ममता बनर्जी एक बार बांग्लादेश सीमा से आ रहे वीडियो देखें। सिर पर गठरी और हाथ में थैला लेकर जा रहे ये लोग कौन हैं? अचानक इनके झुंड बांग्लादेश का रुख क्यों करने लगे? क्या ढाका में इन सबकी लॉटरी लग गई है?
एसआईआर के बारे में सामान्य जानकारी रखने वाला व्यक्ति भी बता सकता है कि ये लोग बांग्लादेशी हैं, जो पकड़े जाने के डर से भाग रहे हैं। कुछ नेताओं को इसलिए दिक्कत हो रही है, क्योंकि उनका वोटबैंक हाथ से निकलता जा रहा है। अगर पूरे देश में भलीभांति एसआईआर हो जाए तो भविष्य में एनआरसी की ज्यादा जरूरत ही न पड़े। अभी प. बंगाल से घुसपैठिए निकल रहे हैं। फिर, देश के कोने-कोने से घुसपैठिए निकल भागेंगे। सोशल मीडिया पर प. बंगाल के ऐसे वीडियो भी प्रसारित हो रहे हैं, जिनमें कुछ लोग एसआईआर के बारे में अजीब कुतर्क दे रहे हैं। वे संपूर्ण प्रक्रिया के संबंध में इस तरह दुष्प्रचार कर रहे हैं, जैसे नागरिकों पर मुसीबतों का कोई पहाड़ टूट पड़ा! जो भारतीय नागरिक है, उसे न तो इन कुतर्कों को बढ़ावा देना चाहिए और न ही इन पर विश्वास करना चाहिए। चुनाव आयोग ने सत्यापन के लिए जो दस्तावेज मांगे हैं, वे हर भारतीय के घर में आसानी से मिल जाते हैं। कुछ लोग यह कहकर प्रक्रिया में बाधा डालने की कोशिश कर रहे हैं कि उनके पास कोई दस्तावेज ही नहीं है! क्या इस बात पर विश्वास किया जा सकता है? कोई व्यक्ति / परिवार कई वर्षों से भारत में रह रहा है, उसके पास कोई दस्तावेज नहीं है, सरकार के पास उसका कोई रिकॉर्ड नहीं है, स्थानीय जनप्रतिनिधि भी उसे नहीं पहचानते, तो वह कौन है? इसके पीछे यह वजह बताई जा रही है कि दस्तावेज थे, लेकिन बाढ़ में बह गए। आज ज्यादातर दस्तावेजों के लिए ऑनलाइन आवेदन करना होता है। उनकी प्रतिलिपियां डाउनलोड की जा सकती हैं, मंगवाई जा सकती हैं। यह कोई मुश्किल काम नहीं है। अगर इस समय सरकार किसी योजना की घोषणा कर आर्थिक सहायता देनी शुरू कर दे तो लोग कागज ही कागज ले आएंगे। जो बांग्लादेशी स्वदेश लौट रहे हैं, उनके लिए यह कहकर पक्ष में माहौल बनाना अनुचित है कि 'गरीब लोगों को निकाला जा रहा है।' क्या गरीब लोग भारत में कम हैं? बांग्लादेश के गरीबों को रोजगार देना भारत सरकार की जिम्मेदारी नहीं है। जब देश अलग हैं तो उनकी सरकारों की जिम्मेदारियां भी अलग हैं। बांग्लादेशियों को स्वदेश जाना ही चाहिए और वहां मो. यूनुस से रोजगार मांगना चाहिए। एसआईआर किसी सूरत में नहीं रुकना चाहिए।