सिंध के बिना अधूरा है हिंद

आज नहीं तो कल, सिंध को वापस आना ही है

हमारे पूर्वजों की भूमि हमसे छीनी गई थी

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सिंध के साथ भारत के संबंधों के बारे में जो बयान दिया है, उससे इस्लामाबाद में खलबली मच गई है। हमें याद रखना चाहिए कि सिंध के बिना हिंद अधूरा है। सिंध के साथ भारत का जो सांस्कृतिक संबंध है, उसे तोड़ा नहीं जा सकता। राजनाथ सिंह का यह कथन कि 'आज सिंध की भूमि भारत का हिस्सा भले ही न हो, लेकिन सभ्यता की दृष्टि से यह हमेशा भारत का हिस्सा रहेगी ... जहां तक जमीन की बात है, सीमाएं तो बदल सकती हैं, क्या पता कल को सिंध फिर से भारत में वापस आ जाए', यहूदियों की उस प्रतिज्ञा की याद दिलाता है, जो उस समुदाय के लोग वर्षों तक करते रहे। आखिरकार उन्हें अपने पूर्वजों की भूमि मिली। सिंध में हिंदू और जैन समुदाय के प्राचीन मंदिर हैं। आज उनमें से ज्यादातर पर अतिक्रमण हो चुका है। वहां शहरों, गांवों और रास्तों के नाम बदले जा चुके हैं। सिंध की पहचान को नष्ट करने के लिए पाकिस्तान सरकार और उसके कट्टरपंथी पूरा जोर लगा रहे हैं। वहां हर साल सैकड़ों हिंदू बच्चियों के जबरन धर्मांतरण और निकाह कराने की घटनाएं हो रही हैं। सिंध को बचाने के लिए उसका दोबारा हिंद के साथ मिलना जरूरी है। वर्ष 1947 में देशविभाजन के कारण जो सिंधी हिंदू यहां आए थे, उन्हें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि हमारे पूर्वजों की भूमि हमसे छीनी गई थी। विभाजन की एक कृत्रिम रेखा हमें उससे अलग नहीं कर सकती। आज नहीं तो कल, सिंध को वापस आना ही है।

राजनाथ सिंह के बयान के बाद पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया - 'ऐसे बयान एक विस्तारवादी हिंदुत्व सोच को दिखाते हैं ... हम राजनाथ सिंह और अन्य भारतीय नेताओं से अपील करते हैं कि वे ऐसे उकसावे वाले बयान न दें, जो क्षेत्रीय शांति और स्थिरता को खतरे में डालते हैं', अत्यंत हास्यास्पद है। जिस मुल्क की बुनियाद ही कट्टरपंथ, हिंसा, नफरत और भेदभाव पर टिकी है, उसका विदेश मंत्रालय 'हिंदुत्व' की आलोचना कर रहा है! जिसके नेता, सैन्य अधिकारी, कट्टरपंथी और आतंकवादी आए दिन जम्मू-कश्मीर को हड़पने की बातें करते हैं, जो पूरे हिन्दुस्तान पर अपनी हुकूमत थोपने के ख्वाब देखते रहते हैं, वे 'विस्तारवाद' की शिकायत कर रहे हैं! ये दोहरे मापदंड क्यों? राजनाथ सिंह के बयान में उकसावे वाला कोई तत्त्व नहीं है। वे सिंध के सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक पहलू के बारे में बता रहे थे। कोई व्यक्ति इस सच्चाई को कैसे झुठला सकता है? उकसावे वाले बयान तो पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर देते हैं। उनके ऐसे ही एक बयान के बाद पहलगाम में आतंकवादी हमला हुआ था। पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय उस पर क्या कहेगा? आज पाकिस्तान क्षेत्रीय शांति और स्थिरता की बात कर रहा है! उसने इनकी परवाह कब की थी? अफगानिस्तान, भारत, ईरान में हुईं कई आतंकवादी घटनाओं के तार इस्लामाबाद से क्यों जुड़े थे? शांति के बारे में बातें करना पाकिस्तान को शोभा नहीं देता। इसके हुक्मरान एक हाथ में रक्तरंजित छुरा लेकर दूसरे हाथ से शांति के कबूतर उड़ा रहे हैं। ऐसा दशकों तक होता रहा, लेकिन अब भारतवासी हकीकत जान चुके हैं। पाकिस्तान किसी के साथ भी शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को स्वीकार नहीं कर सकता, क्योंकि उपद्रव और अशांति इसकी जड़ों में मौजूद हैं। भारत की ओर से सख्त सैन्य कार्रवाई और लगातार आर्थिक दबाव से ही इस पड़ोसी देश में कुछ सुधार की आशा की जा सकती है।

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