'मां चाहती थीं यश बने मॉडल, पर साधु बनकर अब ‘जेन-जी’ के लिए बनेगा रोल मॉडल'

मुमुक्षु भव्य शाह बने मुनिश्री भावजित सागर

सांसारिक जीवन का त्याग कर जैन दीक्षा अंगीकार की

बेंगलूरु/दक्षिण भारत। रजोहरण हाथ में आते ही मुमुक्षु भव्यकुमार का चेहरा उल्लास और भावविभोरता से दमक उठा, मानो वर्षों की अंतर्यात्रा पूर्ण हो गई हो। जैन दीक्षा का प्रमुख प्रतीक और अहिंसक जीवन का महत्त्वपूर्ण उपकरण रजोहरण जैसे ही आचार्यश्री ने मुमुक्षु को प्रदान किया, पूरे वातावरण में वैराग्य का रंग चरम पर पहुँचा और हजारों श्रद्धालु भाव-विह्वल हो उठे।

17 वर्षीय मुंबई निवासी मुमुक्षु भव्य शाह की दीक्षा के उपलक्ष्य में शंकरपुरम में आयोजित संसार परिहार उत्सव के अंतिम दिन आचार्यश्री अरिहंतसागर सूरीश्वरजी की निश्रा में कल्याण मित्र परिवार द्वारा भव्य दीक्षा समारोह संपन्न हुआ। इस पावन घड़ी में मुमुक्षु भव्य शाह ने सांसारिक जीवन का त्याग कर जैन दीक्षा अंगीकार की और पूर्णतया अहिंसक जीवनशैली अपनाते हुए ‘जेन-जी’ के लिए प्रेरणास्रोत बन गए।

विधि-विधान से हुई दीक्षा पूर्व की मंगल विधियां

रविवार को प्रातःकालीन मंगल बेला में मुमुक्षु भव्य शाह का मण्डप में प्रवेश हुआ। लाभार्थी परिवार ने विजय तिलक कर मंगलकामना व्यक्त की। इसके बाद भगवान की आभूषण पूजा, गुरुपूजन और संघ-वर्धापन की दिव्य क्रियाएँ सम्पन्न हुईं। मुमुक्षु द्वारा समवसरण में तीन प्रदक्षिणाएँ देकर आराधना के बाद गुरुभगवंतों का मण्डप में प्रवेश हुआ।

संगीत की मधुर धुनों के बीच देववंदन, गुरुवंदन, वासनिक्षेप, नंदी सूत्र श्रवण, प्रव्रज्या आदि विधियाँ सम्पन्न हुईं। जैसे ही आचार्यश्री ने अपने करकमलों से रजोहरण प्रदान किया, दर्शकगण भी इस अद्वितीय क्षण को संयम के रंग में पूर्णतया रंगता हुआ अनुभव करने लगे।

इसके पश्चात मुमुक्षु ने आभूषण त्याग कर स्नान किया। वेश परिवर्तन के बाद वे एक नए अवतार ‘नूतन दीक्षित’ के रूप में मंच पर पधारे। सभी ने अहोभाव से उनका स्वागत किया। संयम के उपकरण लाभार्थियों द्वारा आचार्यश्री को अर्पित किए गए। केशलुंचन उपरांत नामकरण विधि में नूतन दीक्षित का नाम मुनिश्री भावजित सागर रखा गया। मुंबई से आए केतन मेहता ने प्रत्येक विधि के रहस्यों से श्रद्धालुओं को अवगत कराया।

दीक्षार्थी का सम्मान वास्तव में है दीक्षाधर्म का सम्मान: अरिहंतसागरसूरी

अपने प्रासंगिक प्रवचन में आचार्यश्री अरिहंतसागरसूरीश्वरजी ने कहा, दीक्षा महोत्सव के अंतर्गत होने वाली भव्यता, दीक्षार्थी का सम्मान वास्तव में देखा जाए तो त्याग, वैराग्य और संयम जैसे आत्मिक गुणों का सम्मान है, इन गुणों का सत्कार-सम्मान इन गुणों की प्राप्ति के कारण बनता है और ये ही गुण किसी भी जीव के अंतिम लक्ष्य यानी सुख प्राप्ति में कारण बनते हैं, अतः दीक्षा जैसे अनुष्ठान के आयोजन में खर्च होने वाले समय, शक्ति, संपत्ति अंततः स्वयं के ही आत्मिक विकास में निमित्त बनते हैं। दीक्षार्थी का सम्मान वास्तव में त्याग, वैराग्य और संयम जैसे आत्मिक गुणों का सम्मान है। यही गुण जीवन को अंतिम लक्ष्य ’परम सुख’ तक ले जाने का मार्ग बनते हैं। दीक्षा जैसे अनुष्ठानों में लगाया गया समय, शक्ति और संपत्ति अंततः आत्मिक विकास में ही फलीभूत होती है। उन्होंने नूतन दीक्षित को सदैव उत्साह और जागरूकता के साथ आराधना करने की प्रेरणा दी। 

दीक्षा महोत्सव में शहर के विभिन्न संघों के साधु-साध्वी भगवंतों की पावन उपस्थिति रही। मंगलवार प्रातः आचार्यश्री नूतन दीक्षित के साथ प्रथम विहार कर वीवी पुरम स्थित सीमंधर-शांतिसूरी जैन संघ पधारेंगे।

ज्ञान प्रदर्शनी से लोगों ने पाया नया दृष्टिकोण

संयम जीवन की विशेषताओं पर आधारित ज्ञान प्रदर्शनी और भावभीना विदाई समारोह जैसे रचनात्मक कार्यक्रमों ने उपस्थितजन को दीक्षा के वास्तविक स्वरूप का नया अभिगम प्रदान किया। दीक्षा महोत्सव के सफल आयोजन हेतु दीक्षार्थी परिवार द्वारा कल्याण मित्र परिवार को धन्यवाद दिया गया।

रविवार को दीक्षा महोत्सव के समापन पर कल्याण मित्र परिवार के ही एक मुमुक्षु सहित मुम्बई के भी एक और मुमुक्षु कुल दो मुुक्षुओं के दीक्षा महोत्सव का मुहूर्त ग्रहण 12 दिसंबर को मुम्बई में गच्छाधिपति आचार्य श्री युगभूषणसूरीश्वरजी की निश्रा में लिए जाने की घोषणा की गई।

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