बेंगलूरु/दक्षिण भारत। शिक्षा के क्षेत्र में उपलब्धियां, कैरियर के बेहतरीन विकल्प और आलीशान जीवन की संभावनाओं के बावजूद मुम्बई निवासी भव्य शाह ने त्याग और संयम के सोपान से मुक्ति का मार्ग चुना। अपने माता पिता के इकलौते 17 वर्षीय मुमुक्षु भव्य शाह की दीक्षा शहर के शंकरपुरम में 23 नवंबर को आचार्य श्री अरिहंतसागरसूरीश्वरजी की निश्रा में समारोह पूर्वक होगी।
मुमुक्षु भव्य के पिता और पेशे से सीए निर्मल शाह ने बताया कि सद्गुरु के संपर्क में आने के बाद उनके जीवन में काफी परिवर्तन आया। अपने पुत्र भव्य के जन्म के बाद वे विदेश में अपनी नौकरी छोड़कर भारत लौट आए ताकि संतान को संस्कारयुक्त वातावरण मिल सके।
स्कूली शिक्षा के बाद संयम जीवन का प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए पिछले दो वर्षों से मुमुक्षु भव्य गुरुकुलवास में रहा और अंततः उन्होंने दीक्षा हेतु सहर्ष स्वीकृति प्रदान की। दीक्षा महोत्सव के निश्रादाता आचार्यश्री अरिहंतसागरसूरीश्वरजी ने ‘संसार परिहार उत्सव’ के नामकरण के बारे में कहा कि जैन दर्शन में दो प्रकार से संसार की पारिभाषा की गई है। घर, धन-दौलत, मित्र-परिवार-स्वजन आदि बाह्य संसार के त्याग के माध्यम से आंतरिक संसार यानी ईर्ष्या, लोभ, अहंकार, राग आदि अशुभ भावों का सर्वथा त्याग करने की शुरुआत दीक्षा जीवन में होती है। बाह्य और आंतरिक संसार के परिहार से ही सच्चे सुख की प्राप्ति संभव है। अतः दीक्षा महोत्सव का 'संसार परिहार’ सार्थक नामकरण किया गया है।
कल्याण मित्र परिवार के सदस्य एवं दीक्षा महोत्सव के संयोजक जितेश भंडारी ने बताया कि संगठन का यह सौभाग्य है कि दीक्षा करवाने का सौभाग्य मिला है। उन्होंने दीक्षा के विभिन्न कार्यक्रम की जानकारी देते हुए कहा कि दीक्षा महोत्सव का आगाज 21 नवंबर को संतों के दीक्षा मण्डप में प्रवेश के साथ होगा।
कार्यक्रमों के अंतर्गत संयम जीवन में अनुशासन को कलात्मक चित्रों से दर्शाती ज्ञान प्रदर्शनी, शक्रस्तव अभिषेक, वस्त्र रंगाई, संयम उपकरणों की छाब भराई, संगीतमय सिम्फनी, विदाई समारोह आदि आयोजित किए गए हैं। 22 को धन के त्याग के प्रतीक स्वरूप वर्षीदान वरघोड़े का आयोजन किया गया है जिसमें अनेक मंडलियों की प्रस्तुति आकर्षण का केंद्र रहेगी। 23 नवम्बर को सुबह 5 बजे से दीक्षाविधि का प्रारंभ होगा।
दीक्षा महोत्सव के आयोजक कल्याण मित्र परिवार के वरिष्ठ सदस्य अशोक सेठ ने बताया कि हर वर्ष सैकड़ों युवक-युवतियां भौतिक चकाचौंध से प्रभावित हुए बिना सच्चे सुख की प्राप्ति के लिए भगवान महावीर के बताए हुए दीक्षा धर्म को स्वीकार करते हैं।