एसआईआर ने खोल दी घुसपैठियों की पोल

अवैध बांग्लादेशियों की नींदें उड़ी हुई हैं

मतदाता सूची को शुद्ध करने के लिए एसआईआर जरूरी है

भारत-बांग्लादेश सीमा पार कर 'स्वदेश' रवाना हो रहे अवैध बांग्लादेशी नागरिकों की संख्या स्पष्ट संकेत दे रही है कि एसआईआर की वजह से उनमें डर का माहौल है। अगर कोई व्यक्ति भारतीय नागरिक है, उसके परिजन भारतीय हैं, दस्तावेज सही हैं, तो वह एसआईआर से क्यों डरेगा? उसके लिए एसआईआर से बचकर भागने की कोई वजह ही नहीं है। अवैध बांग्लादेशी नागरिक वर्षों से भारत में डेरा डाले बैठे हैं। इन्होंने यहां जमकर मौज काटी है। ये पश्चिम बंगाल में निर्बाध विचरण करते हैं। वहां जब से एसआईआर की घोषणा हुई है, अवैध बांग्लादेशियों की नींदें उड़ी हुई हैं। सोशल मीडिया पर इनके झुंड के झुंड बांग्लादेश की ओर जाते देखे जा सकते हैं। इन्होंने भारत में सरकारी तंत्र की सुस्ती, वोटबैंक की राजनीति और भ्रष्टाचार के कारण सुविधाओं का खूब फायदा उठाया था। अब ये एसआईआर से संबंधित खबरें पढ़कर अपने मुल्क की राह पकड़ रहे हैं। सवाल है- सरकारों ने पहले सख्ती क्यों नहीं दिखाई? अब चुनाव आयोग एसआईआर करवा रहा है तो कुछ राजनीतिक दलों और नेताओं को इस पर आपत्ति क्यों है? पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणकां के नेता इसमें बाधा डालने के लिए अजीब दलीलें दे रहे हैं। वे राज्य में हो रहीं आत्महत्या की घटनाओं को भी एसआईआर से जोड़कर प्रचारित कर रहे हैं। हर व्यक्ति का जीवन अनमोल है। ऐसा गलत कदम नहीं उठाना चाहिए। मानसिक रूप से परेशान लोगों को मनोवैज्ञानिक परामर्श उपलब्ध कराना चाहिए। इन घटनाओं से राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश गलत है। एसआईआर पहली बार नहीं हो रहा है। मतदाता सूची को शुद्ध करने के लिए यह जरूरी है। अगर सूची में खामियों को सुधारा न जाए और अपात्र लोग मतदाता बन जाएं तो क्या इससे लोकतंत्र मजबूत होगा?

चुनाव आयोग ही नहीं, राजनीतिक दलों को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भारत में सिर्फ भारतीय नागरिक वोट दे पाएं। जिन्होंने भारत का विभाजन करवाकर पाकिस्तान और बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) बना लिए, अब वे यहां आकर चुनाव प्रक्रिया में भागीदार क्यों बनना चाहते हैं? दुर्भाग्य है कि भारत में कुछ राजनीतिक दल घुसपैठियों को देश के लिए खतरा मानने के बजाय उनमें अपना वोटबैंक तलाश रहे हैं। वे भारतीय नागरिकों के अधिकारों के लिए इतनी दृढ़ता से खड़े नहीं होते, लेकिन घुसपैठियों के अधिकारों के लिए उच्चतम न्यायालय तक चले जाते हैं। वे जानते हैं कि एसआईआर को रोक नहीं सकते, लेकिन दिन-रात भ्रामक बयान देकर अपने वोटबैंक को मजबूती से पकड़े रहना चाहते हैं। आश्चर्य है कि वे एसआईआर को लोकतंत्र के लिए खतरा बताते हैं! क्या अवैध बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं को रखने से लोकतंत्र सुरक्षित हो जाएगा? जैसे-जैसे एसआईआर की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी, घुसपैठियों में डर बढ़ता जाएगा। इस समय एजेंसियों को ज्यादा सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि ये 'सुरक्षित' ठिकाना तलाशने के लिए अन्य राज्यों का रुख कर सकते हैं या बाद में बांग्लादेश से लौट सकते हैं। चंद सिक्कों के बदले इनकी मदद करने वालों की कमी नहीं है। इन्होंने अब तक भारत में रहकर अपना नेटवर्क बना लिया होगा। जब एसआईआर हो जाएगा तो घुसपैठियों को दोबारा बसाने का काम तेजी से हो सकता है। केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि वह सख्ती से यह सुनिश्चित करे कि उसकी इजाजत के बगैर कोई विदेशी नागरिक भारत में न तो प्रवेश कर सके और न यहां रह सके। घुसपैठियों की पहचान, धर-पकड़ करने और कड़ा सबक सिखाकर निकालने के लिए कई असरदार तरीके हैं। केंद्र सरकार उन पर विचार करे।

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