महाराष्ट्र के पालघर जिले में एक छात्रा की मौत के बाद एक बार फिर स्कूलों में सजा देने के तौर-तरीकों पर सवाल उठ रहे हैं। आरोप है कि छठी कक्षा की बच्ची देर से स्कूल पहुंची थी, जिसके बाद उससे 100 ऊठक-बैठक लगवाई गई थीं। इस 12 वर्षीया लड़की की मौत के मामले की जांच के बाद ही हकीकत सामने आएगी, लेकिन देश में ऐसी घटनाएं लगातार हो रही हैं, जिनमें पहले किसी शिक्षक ने अपने विद्यार्थी को सख्त सजा दी, उसके बाद बच्चे ने जान गंवा दी। शिक्षकों को अनुशासन और जानलेवा सजा में अंतर समझना होगा। बच्चों से गलतियां होती हैं। वह बचपन ही क्या जिसमें बच्चे गलतियां न करें! बचपन में कौन गलतियां नहीं करता? क्या आज जो अपने विषयों के प्रकांड विद्वान हैं, उन्होंने कोई गलती नहीं की थी? व्यक्ति उम्र बढ़ने के साथ सीखता है। उसे सही-गलत का बोध होता है। अगर कोई यह सोचता है कि वह एक ही दिन में बच्चों को पूरा ज्ञान देकर अनुशासित कर देगा, तो उसकी सोच पूरी तरह गलत है। प्राय: कुछ शिक्षक अपने घरेलू विवादों का गुस्सा स्कूल में विद्यार्थियों पर उतारते हैं। उनसे जब कोई बच्चा सवाल पूछता है तो वे उसे बुरी तरह अपमानित करते हैं। कुछ तो बिना वजह ही पिटाई कर देते हैं। वे सोचते हैं कि इससे बच्चे ज्यादा पढ़ाई करेंगे और अनुशासित रहेंगे। हालांकि ऐसा सोचना बेबुनियाद है। ऐसे कई उदाहरण मिल जाएंगे, जब ज्यादा सजा देने वाले शिक्षकों का न तो परीक्षा परिणाम अच्छा रहा और न ही विद्यार्थी अनुशासित हुए। विद्यार्थी सजा के डर से कुछ समय के लिए ऐसा प्रदर्शित कर सकते हैं कि वे अनुशासित हैं, लेकिन जैसे ही दबाव हटता है, वे राहत महसूस करते हैं और ज्यादा शरारत करते हैं।
शिक्षकों को समय के साथ बदलाव को स्वीकार करना होगा। कुछ बच्चे ज्यादा भावुक होते हैं। उनका मन बहुत कोमल होता है। सबको एक लाठी से हांकना सही नहीं है। अगर कोई बच्चा बहुत साधारण गलती करता है, जैसे- देर से स्कूल आना, होमवर्क पूरा न करना, कोई पाठ्यपुस्तक घर पर भूल जाना आदि, तो उसकी वजह जाननी चाहिए। उसे समझाना चाहिए। अगर बच्चे में फिर भी सुधार नहीं हो रहा है तो उसके माता-पिता से बातचीत करनी चाहिए। ये सभ्य समाज के तरीके हैं। इस तरह बच्चे के साथ जुड़ीं कई अन्य समस्याओं के बारे में जान सकते हैं, उनका बेहतर ढंग से समाधान कर सकते हैं। इससे बच्चे के प्रदर्शन में सुधार आने की संभावना ज्यादा रहेगी। इसके बजाय कोई शिक्षक न तो ज्यादा पूछताछ करे, न बच्चे के माता-पिता से बात करे, बस डंडा लेकर पिटाई शुरू कर दे तो इससे सुधार आने की संभावना नगण्य होगी। अगर बच्चे को कहीं गंभीर चोट लग गई तो जेल जाने की नौबत आ सकती है। कई शिक्षकों के साथ ऐसा हो चुका है। उन्होंने इस वजह से अपनी नौकरी और प्रतिष्ठा गंवा दी। वर्षों अदालतों के चक्कर लगाने के बाद किसी को राहत भी मिली तो यह अवधि सजा से कम नहीं थी। उधर, विद्यार्थी का परिवार दु:खों से पीड़ित रहता है। असल में दोनों तरफ के परिवार पीड़ित रहते हैं। क्या इस स्थिति को टाला जा सकता है? जवाब है- हां, टाला जा सकता है। बस, कुछ बातों का ध्यान रखें। शिक्षक अपने गुस्से पर काबू रखें। याद रखें, आपका काम लगातार सिखाना और सुधार लाना है। यह एक घंटे या एक दिन में नहीं हो सकता। आप अपनी ओर से सर्वश्रेष्ठ प्रयास करें। हर बच्चे में अलग प्रतिभा होती है। उसे पहचानें और बच्चे का उत्साह बढ़ाते हुए जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरणा दें।