ब्रिटेन में स्कूली बच्चों को फेक न्यूज की पहचान करने संबंधी पढ़ाई करवाने के फैसले से पता चलता है कि यह देश फर्जी खबरों के असर को लेकर काफी चिंतित है। आज दुनियाभर में फेक न्यूज का जंजाल फैल चुका है। ये देखते ही देखते बड़ी तादाद में लोगों तक पहुंच जाती हैं। सोशल मीडिया ने इन्हें ऐसे पंख दे दिए हैं कि दुनिया के एक कोने में कोई फेक न्यूज पोस्ट की जाती है तो वह दूसरे कोने में तुरंत प्रकट हो जाती है। जब तक सही खबर सामने आती है, बहुत देर हो जाती है। कुछ साल पहले, जब इंटरनेट सेवाओं का प्रसार हो रहा था, तब कई लोग सोचते थे कि 'फेक न्यूज फैल रही है तो उससे हमें क्या नुकसान हो सकता है? ज्यादा से ज्यादा यह होगा कि कोई गलत सूचना मिल जाएगी। बाद में तो पता चल ही जाएगा!' इस दौरान फेक न्यूज ने लोगों को कई तरह से भारी नुकसान पहुंचाया। हजारों लोग फेक न्यूज के कारण साइबर ठगी के शिकार हुए। फेक न्यूज की वजह से कई जगह हिंसक घटनाएं हुईं। इसलिए यह कहना कि 'फेक न्यूज से कोई खास नुकसान नहीं हो सकता, क्योंकि वह तो मोबाइल फोन तक सीमित रहेगी', सरासर गलत है। आज मोबाइल फोन लोगों का 'साथी' बना हुआ है। वे उस पर प्रकाशित-प्रसारित सामग्री पर बहुत विश्वास करते हैं। उसमें कौनसी सामग्री सही है और कौनसी गलत - इसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है, क्योंकि इसके लिए कोई मजबूत प्रणाली विकसित ही नहीं की गई। स्कूली बच्चों को फेक न्यूज की पहचान करने संबंधी जानकारी देना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि इससे वे खुद जागरूक होंगे और अपने अभिभावकों को जागरूक करेंगे।
भारत में भी स्कूली बच्चों को ऐसी जानकारी देनी चाहिए। हालांकि यहां पाठ्यक्रम का पहले ही से काफी दबाव है। ऐसे में कोई अतिरिक्त अध्याय जोड़ने के बजाय सुबह प्रार्थना सभा या सप्ताहांत में होने वाले विशेष कार्यक्रमों में फेक न्यूज के खतरों के बारे में बताना चाहिए। उस समय बच्चों के मन में सवाल पैदा हो सकता है- फेक न्यूज क्या होती है? इसके लिए जरूरी है कि उन्हें सही खबरें दी जाएं। प्रार्थना सभा में रोजाना अखबारों से कुछ खबरें पढ़कर सुनाएं। जरूरी नहीं कि बच्चे उन्हें नोट करें। जब वे एक हफ्ते तक लगातार खबरें सुनेंगे तो उन्हें कुछ समझ जरूर हो जाएगी। एक महीने तक खबरें सुनने और शिक्षकों द्वारा सामान्य जानकारी दिए जाने के बाद वे खुद ही फेक न्यूज की पहचान करने लगेंगे और दूसरों को भी जागरूक करेंगे। बच्चों को डिजिटल समझ के साथ वित्तीय जानकारी देनी चाहिए। उन्हें बताना चाहिए कि शॉर्टकट और रातोंरात धनवान बनने के चक्कर में कभी न पड़ें। ऐसे तरीके धोखाधड़ी की ओर लेकर जाते हैं। हाल में ऐसी कितनी ही खबरें आ चुकी हैं, जिनमें बताया गया कि कई उच्च शिक्षित लोग अपने निवेश पर भारी मुनाफा कमाने के लिए साइबर धोखेबाजों के जाल में फंस गए थे। नोएडा में एक सेवानिवृत्त इंजीनियर सोशल मीडिया के जरिए ऐसे लोगों के संपर्क में आए थे, जिन्होंने वादा किया कि हमारे यहां निवेश करेंगे तो दो से तीन गुना तक मुनाफा हो सकता है। उनके 71 लाख रुपए डूब गए। ऐसा क्यों हुआ? सेवानिवृत्त इंजीनियर के पास तो बहुत अनुभव था, उन्होंने बहुत अध्ययन भी किया होगा! वे ठगी के शिकार इसलिए हुए, क्योंकि उन्हें किसी ने सावधान नहीं किया था। अगर उन्हें यह पता होता कि सोशल मीडिया के दौर में ऐसे फर्जीवाड़े हो रहे हैं तो वे झांसे में न आते। इसलिए स्कूली बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, सही खबरें पहुंचाकर सबको जागरूक करने की जरूरत है।