अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने अपनी पत्नी उषा वेंस की आस्था के बारे में जो टिप्पणी की, उसकी आशा नहीं थी। अमेरिका के सबसे ताकतवर पदों में से एक पर बैठा शख्स ऐसी टिप्पणी करे तो उससे बहुत गलत संदेश जाता है। अब जेडी वेंस कितनी ही सफाई पेश करें, उन्होंने करोड़ों लोगों को निराश किया है। अमेरिका के लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की मिसाल दी जाती है। उसका उपराष्ट्रपति कह रहा है कि मैं चाहूंगा कि मेरी पत्नी धर्मपरिवर्तन कर ले! जेडी वेंस अमेरिकी लोकतंत्र के मूल्यों और आदर्शों को ताक पर रखकर वोटबैंक की राजनीति कर रहे हैं। वे जानते हैं कि इससे लोगों की भावनाओं में उबाल आएगा और उन्हें अगली बार राष्ट्रपति चुनाव का उम्मीदवार बनने में मदद मिलेगी। जेडी वेंस ने जो बयान दिया, उसकी आलोचना हुई, लेकिन बहुत हल्के-फुल्के शब्दों में। सोचिए, अगर ऐसा ही बयान उषा वेंस दे देतीं तो भारत से लेकर अमेरिका तक कितना हंगामा होता? अब तक कोई आधा दर्जन थिंक टैंक रिपोर्ट जारी कर चुके होते कि भारत में असहिष्णुता बहुत बढ़ गई है, जिसका असर अमेरिका की राजनीति में दिखाई दे रहा है। कुछ 'बुद्धिजीवी' तो अलग ही राग अलाप रहे होते। मीडिया का एक खास वर्ग दिन-रात उन्हें ही प्रचारित-प्रसारित करता। वे उस घटना के लिए भारतीय प्रधानमंत्री से इस्तीफा मांग रहे होते! उषा वेंस ने यह सब नहीं कहा। क्यों? क्योंकि वे जिस परिवार से आती हैं, वहां किसी ने अपनी आस्था दूसरों पर थोपने की कल्पना भी नहीं की होगी। हिंदू धर्म सबसे ज्यादा सहिष्णु है। यहां कोई व्यक्ति शिव की पूजा करे या विष्णु की, दुर्गा की साधना करे या सरस्वती की, साकार को माने या निराकार में ध्यान लगाए, चाहे तो किसी दिव्य शक्ति में विश्वास करे या सबकुछ माया समझे - उसे पूरी स्वतंत्रता है।
वास्तव में हिंदू धर्म में मान्यताओं और ग्रंथों के संबंध में जो विविधता है, वह उसकी बहुत बड़ी ताकत है। आध्यात्मिक दृष्टि से न्यूनतम जानकारी रखने वाला हिंदू भी इस बात पर सहमत होगा कि 'सत्य एक है, उसे प्राप्त करने के मार्ग अनेक हैं।' जटिल दर्शन को इतने सरल शब्दों में अभिव्यक्त करने का साहस और कौन कर सकता है? इसका नतीजा यह है कि सदियों तक विदेशी हमले झेलने के बावजूद हिंदू धर्म की पताका लहराती रही। जेडी वेंस को स्वामी विवेकानंद का वह ऐतिहासिक भाषण जरूर पढ़ना चाहिए, जो उन्होंने शिकागो में दिया था। अगर अमेरिकी उपराष्ट्रपति ने वह पढ़ा होता तो उक्त बयान नहीं देते। हिंदू समाज ने मान्यता, ग्रंथ, पंथ, रिवाज, भाषा, खानपान के मामले में विविधता एवं सहिष्णुता को इस तरह अंगीकार कर लिया है, जैसे फूल में सुगंध। हमारे पड़ोस में एक देश ऐसा है, जिसने विविधता को खत्म कर एकरूपता लाने का ऐसा अभियान चलाया था कि वह आज उसके नागरिकों के लिए गले का फंदा बन चुका है। वहां असहिष्णुता इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि आस्था के मामले में जरा-सी असहमति पर भी लोग जान लेने को उतारू हो जाते हैं। उधर एक-दूसरे पर बम फेंकने का ऐसा सिलसिला चल पड़ा है कि उसे रोकने के लिए तमाम कोशिशें नाकाम हो चुकी हैं। भारत में आस्तिक और नास्तिक एक थाली में भोजन करते मिल जाएंगे। वहां, नास्तिकता की भनक लगने भर की देर है। उसके बाद परिवार, रिश्तेदार और भीड़ - सब मिलकर उस व्यक्ति का काम तमाम कर देंगे। हिंदू समाज ऐसी विकृतियों से कोसों दूर है। जेडी वेंस कुछ अध्ययन करें।