ऑनलाइन शॉपिंग: हिल न जाए विश्वास की नींव

ऑर्डर कुछ और, सामान कुछ और!

हमेशा भरोसेमंद स्रोत / विक्रेता चुनें

ऑनलाइन शॉपिंग से लोगों को बहुत सुविधा हुई है, लेकिन अब इस माध्यम की कुछ ऐसी खामियां दिखाई पड़ रही हैं, जिनकी ओर संबंधित कंपनियों को ध्यान देना चाहिए। हाल के वर्षों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जब लोगों ने ऑर्डर कुछ और किया था, उन्हें सामान कुछ और ही मिला था। कुछ मामलों ने तो वेबसाइटों के वितरण तंत्र पर सवालिया निशान लगा दिया। बेंगलूरु में एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के इस दावे से हैरानी होती है कि उसने 1.86 लाख रुपए खर्च कर किसी कंपनी से स्मार्टफोन मंगवाया था, लेकिन उसे डिब्बे में टाइल का टुकड़ा मिला! यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले, उत्तर प्रदेश के मेरठ में ऐसा मामला सामने आया था। वहां डिब्बे से पत्थर का टुकड़ा निकला था। इसी तरह, मुंबई के एक व्यक्ति ने सोशल मीडिया पर अनुभव साझा करते हुए बताया था कि वह ऑनलाइन शॉपिंग को प्राथमिकता देता है। उसने किसी वेबसाइट के जरिए स्मार्टफोन मंगवाया था, लेकिन डिब्बा खोला तो उसमें से साबुन की टिकिया निकली थी। इससे उसे गहरा धक्का लगा। उसने कल्पना भी नहीं की थी कि ऑनलाइन शॉपिंग का यह अनुभव हो सकता है। कुछ साल पहले एक और युवक का मामला काफी चर्चा में रहा था। उसने दावा किया था कि एक चर्चित वेबसाइट से सोने का सिक्का खरीदा था। इसके लिए ऑनलाइन पेमेंट किया था। जब उसने डिब्बा खोला तो वह खाली निकला था। ऐसी घटनाओं से संबंधित कंपनी की छवि पर गलत असर पड़ता है, वहीं पीड़ित ग्राहक भविष्य में उससे खरीदारी से परहेज करता है।

प्राय: कंपनी खेद जताते हुए जांच करने की बात कहती है, लेकिन इसमें समय लगता है और ग्राहक को मानसिक व आर्थिक कष्ट का सामना करना पड़ता है। सवाल है- इन घटनाओं के पीछे असल वजह क्या है? कोई भी बड़ी और प्रतिष्ठित कंपनी नहीं चाहेगी कि ग्राहकों में उसकी छवि खराब हो। कभी-कभार गलत पैकिंग या डिलीवरी में गड़बड़ हो सकती है। वहीं, बीच रास्ते से सामान गायब / चोरी हो सकता है। इसके पीछे ऐसे लोगों का हाथ हो सकता है, जो किसी-न-किसी रूप में कंपनी से जुड़े होते हैं और मौका पाते ही सामान पर हाथ साफ कर देते हैं। कंपनियों को चाहिए कि वे ऑर्डर लेने से लेकर वितरण करने तक अपने तंत्र को मजबूत बनाएं। उसमें जहां गुंजाइश हो, सुधार करें। अगर ग्राहक की सहमति हो तो डिलीवरी एजेंट उस पैकेट को खोलकर दिखाए। अनबॉक्सिंग करते समय वीडियो रिकॉर्ड जरूर करें, ताकि बाद में कोई विवाद होने पर प्रमाण रहे। ऐसे ज्यादातर मामले मोबाइल फोन मंगवाने पर हुए हैं, इसलिए कंपनियां सुनिश्चित करें कि वे मोबाइल फोन अपने ग्राहक को सौंपते समय अनबॉक्सिंग करके दें। साथ ही, ग्राहक से हस्ताक्षर करवाएं कि उसने 'जो सामान मंगवाया था, वही मिला है, कोई गड़बड़ नहीं हुई है।' इससे ऐसे विवाद पैदा नहीं होंगे। हमेशा भरोसेमंद स्रोत / विक्रेता चुनें। पिछले कुछ वर्षों में ऐसे ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म भी खुले हैं, जिनकी विश्वसनीयता संदिग्ध है। उन्होंने सस्ता सामान बेचने के नाम पर बहुत लोगों को ठगा है। वे ग्राहकों को लुभाने के लिए बहुत आकर्षक तस्वीरें डालकर फर्जी रिव्यू लिखवाते हैं। अब एआई की मदद से यह काम बहुत आसान हो गया है। जब कोई व्यक्ति देखता है कि उस वेबसाइट पर बहुत ही सस्ता सामान मिल रहा है तो वह अवसर का लाभ उठाना चाहता है। पिछले दिनों एक वेबसाइट ने 99 रुपए में सूट बेचने के नाम पर कई लोगों को चूना लगा दिया था। ज्यादातर ग्राहकों ने यह सोचकर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की थी कि धनराशि बहुत छोटी है। ऐसी वेबसाइटों से दूर रहने में ही भलाई है।

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