भारत-चीन: सांस्कृतिक सेतु से नई उम्मीदें

भविष्य में संबंधों के मधुर होने की उम्मीद की जा सकती है

चीन में भारतीय मूल के डॉक्टर द्वारकानाथ कोटनिस को देवता की तरह माना जाता है

चीन के प्रसिद्ध विद्वानों की श्रीमद्भगवद्गीता के अध्ययन में बढ़ती रुचि सराहनीय है। यह कुछ आश्चर्य का विषय भी है। चीनी सरकार भारत के प्रति शत्रुता रखती है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को धर्म में लोगों की बढ़ती रुचि अखरती है। ऐसे में 88 वर्षीय प्रोफेसर झांग बाओशेंग द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता का चीनी भाषा में अनुवाद किया जाना सुखद आश्चर्य पैदा करता है। भारतीय दूतावास ने ‘संगमम - भारतीय दार्शनिक परंपराओं का संगम’ विषय पर जो संगोष्ठी आयोजित की, उसमें चीनी विद्वानों ने श्रीमद्भगवद्गीता को भारत का दार्शनिक विश्वकोश बताया है। उन्होंने भौतिक एवं आध्यात्मिक गतिविधियों के बीच सामंजस्य स्थापित करने की इसकी कालातीत अंतर्दृष्टि पर प्रकाश डाला है। इन विद्वानों के विचार जानकर पता चलता है कि इन्होंने बहुत गहराई से अध्ययन किया है। ऐसे विद्वान चीन और भारत की जनता के बीच सेतु की तरह हैं। भारत में चीनी समाज के बारे में जानकारी का थोड़ा अभाव ही रहा है। चीनी सरकार और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी भारत के बारे में चाहे जितनी अनर्गल बयानबाजी करें, लेकिन एक आम चीनी के मन में हमारे देश के लिए सम्मान और जिज्ञासा की भावना है। उसके लिए भारत बुद्ध के संदेश, योग की परंपरा, ध्यान, शांति, कला, संस्कृति, संगीत और नृत्य की धरती है। बेशक चीन और पाकिस्तान के साथ भारत के युद्ध हो चुके हैं। दोनों के साथ तनाव का स्तर घटता-बढ़ता रहता है। सरकारी स्तर पर संबंधों को मधुर नहीं कह सकते, लेकिन एक आम चीनी और एक आम पाकिस्तानी के नजरिए में बहुत फर्क है। चीनी नागरिकों में वैसा उन्माद देखने को नहीं मिलेगा, जो पाकिस्तानियों में बहुत आसानी से देखने को मिल जाता है। इससे भविष्य में सामाजिक स्तर पर भारत-चीन संबंधों के मधुर होने की उम्मीद की जा सकती है।

दोनों ही देशों के लोग एक-दूसरे के अनुभवों से बहुत कुछ सीख सकते हैं। चीन में योग, ध्यान, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा, भारतीय खानपान, पहनावे को बहुत पसंद किया जाता है। वहां भारतीय फिल्में लोकप्रिय होती जा रही हैं। चीन में भारतीय मूल के डॉक्टर द्वारकानाथ कोटनिस को देवता की तरह माना जाता है। उन्होंने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान चीनी लोगों की बहुत सेवा की थी। कहते हैं कि एक बार उन्होंने 72 घंटों तक लगातार काम किया और सैकड़ों लोगों को नया जीवन दिया था। उन प्रतिभाशाली एवं सेवाभावी डॉक्टर का लौकिक जीवन सिर्फ 32 साल का रहा, लेकिन चीनी लोग उन्हें आज भी याद करते हैं। चीन के हेबेई स्थित शिजियाझुआंग में डॉ. कोटनिस की बड़ी प्रतिमा लगी हुई है। चीनी लोग उस प्रतिमा को देखकर सलाम करते हैं। वहां रामचरितमानस को लेकर भी गहरी जिज्ञासा है। अयोध्या में श्रीराम मंदिर बनने के बाद इस संबंध में लोग इंटरनेट पर खूब सर्च कर रहे हैं। अगर उन्हें अवसर मिले तो वे अयोध्या आना चाहेंगे। चीनी लोगों को भारतीय खानपान बहुत आकर्षित करता है। यहां हजारों तरह के पकवान देखकर उनका लुत्फ उठाने का मन करता है। चीन ही नहीं, जापान और दक्षिण कोरिया में भी भारतीय पकवानों की धूम है। एक शख्स ने सोशल मीडिया पर बताया था कि वह परांठे खाना चाहता था। बस, इसी के लिए वह दिल्ली आ गया था! उसके मुताबिक, जो स्वाद भारतीय भोजन में है, वह दुनिया में कहीं नहीं है। यह खूबी भारत को अद्भुत और अद्वितीय बनाती है। अब जरूरत इस बात की है कि हम दुनिया के सामने अपनी खूबियों को सही ढंग से पेश करें। हमें स्वच्छता पर ध्यान देने की जरूरत है। चीनी नागरिकों ने इस क्षेत्र में बहुत काम किया है। अपने देश को स्वच्छ एवं सुंदर बनाना हर नागरिक का कर्तव्य है। हमें भी दृढ़ संकल्प के साथ यह काम करना चाहिए।

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