एक और बस हादसा हो गया। फिर एक बस आग का गोला बन गई। आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में कई लोगों ने इस हादसे में जान गंवा दी। किसने सोचा था कि बस का यह सफर उनके परिवारों को दु:खद यादें दे जाएगा! देश में बार-बार हो रहे ऐसे हादसे स्पष्ट संकेत दे रहे हैं कि बसों में सुरक्षा संबंधी इंतजामों को बेहतर बनाने की जरूरत है। नेताओं के शोक प्रकट करने और मुआवजे की घोषणा कर देने से ही काम नहीं चलने वाला है। हर व्यक्ति अपने परिवार के लिए अनमोल है। सरकारों की जिम्मेदारी है कि वे नागरिकों के सफर को सुरक्षित बनाएं। हाल में राजस्थान के जैसलमेर में एक बस में आग लगने से दो दर्जन से ज्यादा लोग जिंदा जल गए थे। आखिर क्या वजह है कि ऐसे हादसों में बसें इतनी जल्दी आग पकड़ लेती हैं? प्राय: इन हादसों के पीछे शॉर्ट सर्किट एक बड़ी वजह बताई जाती है। पुराने वाहनों को एसी में तो अपग्रेड कर दिया जाता है, लेकिन वायरिंग की ओर ध्यान नहीं दिया जाता। अगर इलेक्ट्रिकल दोष को समय रहते दूर कर दिया जाए तो इतने बड़े हादसे ही न हों। इंजन और एसी यूनिट के पास कमजोर गुणवत्ता वाला या खुला तार किसी भी समय हादसे की वजह बन सकता है। भारतीय बसों के अंदर इस्तेमाल होने वाली सामग्री की ओर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। सीटों, पैनलिंग, पर्दों, मैट्रेस आदि में अग्निरोधी सामग्री का इस्तेमाल होना चाहिए। अभी जो सामग्री लगाई जा रही है, वह बहुत जल्दी आग पकड़ लेती है, जिससे ज्यादा जनहानि होती है।
इन बसों में 'आपात द्वार' तो दिख जाते हैं, लेकिन वे जरूरत पड़ने पर अवरुद्ध हो जाते हैं। ऐसे आपात द्वार किस काम के हैं? जैसलमेर बस हादसे के बाद यात्रियों ने शिकायत की थी कि वे बड़ी मुश्किल से बाहर निकल सके थे, क्योंकि बस में एक ही द्वार था। कुरनूल बस हादसे में भी कई यात्रियों को खिड़कियों से नीचे कूदना पड़ा था। अगर आसानी से खुलने वाला आपात द्वार होता तो इतने बड़े नुकसान को टाला जा सकता था। कई बसों में क्षमता से ज्यादा यात्री होते हैं। उनमें पांव रखने के लिए भी जगह नहीं होती, लेकिन चालक एवं परिचालक यह कहते हुए और ज्यादा यात्रियों को भरते रहते हैं कि 'आइए, इसमें बहुत जगह है।' ग्रामीण क्षेत्रों में चलने वाले वाहनों की स्थिति तो और ज्यादा खराब है। वहां बस अंदर से इतनी भर जाती है कि तिल रखने की भी जगह नहीं रहती। उसके बाद यात्रियों को छत के ऊपर बैठाया जाता है। जब वहां भी जगह नहीं बचती तो बाकी यात्रियों को पीछे लटकने के लिए कह दिया जाता है। कई बार तो वाहन का सिर्फ अगला हिस्सा छोड़ दिया जाता है, ताकि चालक रास्ता देख सके। अंदर, ऊपर, पीछे, दाएं, बाएं - कहीं जगह नहीं बचती। उस समय हादसा होने की कल्पना मात्र से रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ऐसे वाहनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। सभी वाहनों में अग्निशमन यंत्र जरूर होना चाहिए। इसके लिए अभियान चलाया जाए। जिन बसों, कारों, ट्रकों आदि में यह यंत्र नहीं है, उनके चालकों को इसे लगाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। वाहन हादसों की एक और बड़ी वजह है- पुलिस में भ्रष्टाचार। सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो वायरल होते रहते हैं, जिनमें कई पुलिसकर्मी वाहन चालकों से रिश्वत लेते दिखाई देते हैं। सरकार को चाहिए कि वह पुलिस व्यवस्था में भ्रष्टाचार के मामलों पर सख्ती दिखाए। जिम्मेदार कर्मी को निलंबित करना, फटकार लगा देना कोई सजा नहीं होती है। भ्रष्टाचारियों को सेवा से बर्खास्त कर जेल भेजने से ही सुधार की उम्मीद की जा सकती है।