अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत के संबंध में ऐसे तथ्य पेश कर रहे हैं, जिनका हकीकत से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है। ये अमेरिकी इतिहास में पहले ऐसे राष्ट्रपति प्रतीत होते हैं, जिनका भारत के बारे में सामान्य ज्ञान बहुत ज्यादा गलत जानकारियों से भरा हुआ है, लेकिन उसे इस तरह बयान करते हैं, गोया इनसे बड़ा कोई विशेषज्ञ नहीं है। ट्रंप की यह टिप्पणी अत्यंत हास्यास्पद है, 'हर साल आपके (भारत) पास एक नया नेता होता है। कुछ तो कुछ महीनों के लिए (सत्ता में) रहते हैं और यह साल दर साल होता रहा है...।' ट्रंप किस ज़माने की बात कर रहे हैं? नब्बे के दशक में कुछ समस्याएं जरूर आई थीं, लेकिन उसके बाद ऐसा कब हुआ? अमेरिकी राष्ट्रपति को चाहिए कि वे इंटरनेट पर कुछ सर्च ही कर लें। भारत में लोकतंत्र मजबूत है। यहां राजनीतिक स्थिरता है। देश में समय पर चुनाव होते हैं। करोड़ों मतदाता नई सरकार चुनते हैं। वर्ष 2014 से तो नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं। उनसे पहले डॉ. मनमोहन सिंह ने एक दशक तक देश का नेतृत्व किया था। हर साल नया प्रधानमंत्री हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में जरूर देखने को मिलता है। ऐसा लगता है कि ट्रंप ने पाकिस्तान का इतिहास पढ़ लिया और अब उसे भारत के साथ जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। डोनाल्ड ट्रंप ने मई में यह कहकर खुद के ज्ञान का प्रदर्शन किया था कि 'भारत और पाकिस्तान सदियों से लड़ रहे हैं!' भारत का इतिहास हजारों साल पुराना है, जबकि पाकिस्तान तो वर्ष 1947 में बना था। उससे पहले पाकिस्तान का कहीं नामो-निशान नहीं था, लेकिन ट्रंप दुनिया को यह दिखाना चाहते थे कि मैंने सदियों पुरानी लड़ाई बंद करवाकर शांति की स्थापना में अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। वे गलत जानकारी देकर नोबेल पुरस्कार के लिए अपना दावा मजबूत करना चाहते थे।
डोनाल्ड ट्रंप का यह दावा भी सच्चाई से परे है कि 'अगर भारत (रूस से) तेल नहीं खरीदता है तो रूस-यूक्रेन युद्ध बहुत आसानी से बंद हो जाएगा।' रूस के पास हथियारों का बड़ा भंडार है। लड़ाई लंबी खींचना उसके लिए असंभव नहीं होगा। यह न भूलें कि चीन भी रूस से तेल खरीदता है। अगर भारत रूसी तेल नहीं खरीदता तो कई देशों में ईंधन का संकट पैदा हो सकता था। याद करें, कभी अपने चुनावी भाषणों में ट्रंप यह युद्ध रुकवाने के लिए कितने बड़े दावे करते थे! अब दावे धराशायी हो गए तो भारत पर झूठे आरोप लगाने लगे। डोनाल्ड ट्रंप जुलाई में भारतीय अर्थव्यवस्था को 'डेड इकोनॉमी' बता चुके हैं, जबकि कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं अपनी रिपोर्टों में अनुमान लगा चुकी हैं कि भारत सबसे ज्यादा तेजी से उन्नति करने वाले देशों में से एक है। इन दिनों जब दीपावली के लिए खरीदारी हो रही है तो कई बाजारों में पांव रखने की जगह नहीं मिल रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था ने कोरोना महामारी का बहुत मजबूती से मुकाबला किया था और बहुत जल्द अपनी रफ्तार पकड़ ली थी। ट्रंप के बयान सुनकर लगता नहीं कि ये कभी अखबार पढ़ते होंगे। इनके अतिशयोक्तिपूर्ण दावे उन लोगों को जरूर भ्रमित कर सकते हैं, जो पढ़ने-लिखने से कोसों दूर हैं। जो व्यक्ति देश-दुनिया की सामान्य जानकारी भी रखता है, वह ट्रंप के झूठ को आसानी से पकड़ सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति कभी 100 बिलियन डॉलर के ट्रेड डेफिसिट की बात करते हैं, कभी भारत को टैरिफ किंग बताते हैं, तो कभी भारत-पाक संघर्ष विराम कराने का झूठा श्रेय लेने की कोशिश करते हैं। अमेरिका की जितनी किरकिरी ट्रंप ने करवाई है, उतनी शायद ही किसी (पूर्व) राष्ट्रपति ने करवाई होगी। भविष्य में भी इतने 'तेजस्वी' राष्ट्रपति दुर्लभ होंगे।