भोगवाद का भंवर

लिव-इन रिलेशनशिप के दुष्परिणाम यूरोप भुगत रहा है

इससे दूर रहने में ही कल्याण है

उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने लिव-इन रिलेशनशिप के बारे में जो टिप्पणी की है, उस पर युवाओं को जरूर ध्यान देना चाहिए। आजकल 'बिन फेरे, संग तेरे' को आधुनिकता से जोड़कर देखा जाने लगा है। इसे सही ठहराने के लिए कानूनी नजरिए से तर्क दिए जा रहे हैं। लिव-इन रिलेशनशिप की ओर आकर्षित होने वाले युवाओं का कहना है कि 'परंपरागत विवाह व्यवस्था में इतनी जटिलताएं आ चुकी हैं कि अब यही सहारा है... अपनी पसंद के साथी संग रहें और जब अनबन हो जाए तो अपने रास्ते अलग कर लें!' हालांकि इस 'व्यवस्था' में भी चीजें इतनी सरल नहीं होती हैं। चूंकि अभी भारत में इसका ज्यादा प्रसार नहीं हुआ है, इसलिए युवाओं को इसका एक ही पहलू दिखाई दे रहा है। कालांतर में इसका दूसरा पहलू भी नजर आएगा। इसकी शुरुआत हो चुकी है। हाल के वर्षों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जब लिव-इन पार्टनरों में मनमुटाव और झगड़े की नौबत आई तो परिणाम बहुत भयानक निकले। ऐसी स्थिति में माता-पिता और रिश्तेदार समझाइश करने नहीं आते, क्योंकि साथ रहने का फैसला महिला-पुरुष ने अपनी मर्जी से लिया था। प्राय: माता-पिता तो ऐसे संबंधों के खिलाफ होते हैं। उन्हें दांपत्य जीवन का अनुभव होता है, इसलिए वे जानते हैं कि गृहस्थी कोरे शारीरिक आकर्षण से नहीं चलती। इसके लिए बहुत त्याग करने पड़ते हैं। जब लिव-इन रिलेशनशिप में दरार आ जाती है तो दोनों में से सबल पक्ष दूसरे से बदला लेने को आमादा हो जाता है। जिन्हें कुछ महीने/साल पहले एक-दूसरे में खूबियां नजर आती थीं, उन्हें खामियां ही खामियां दिखाई देने लगती हैं।

लिव-इन रिलेशनशिप के कई मामले मुकदमेबाजी तक चले जाते हैं। उनमें शोषण, धोखा, उत्पीड़न, दुष्कर्म जैसे आरोप लगाकर दूसरे पक्ष को दंडित करने की मांग की जाती है। इस साल मार्च में एक ऐसा मामला सुर्खियों में रहा था, जिसमें महिला ने अपने लिव‑इन पार्टनर पर शादी का झूठा वादा कर दुष्कर्म का आरोप लगाया था। वह महिला लगभग 16 वर्षों से उस व्यक्ति के साथ रह रही थी। उसकी याचिका को उच्चतम न्यायालय ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि दोनों पक्ष बहुत लंबे समय तक सहमति से एक साथ रहे थे। वहीं, महिला के आरोपों से यह साबित नहीं हुआ कि शुरुआत से ही व्यक्ति ने धोखा देने का इरादा रखा था। इसी तरह, महाराष्ट्र में ठाणे के जिला न्यायालय ने एक 36 वर्षीय व्यक्ति को दुष्कर्म के मामले में बरी करते हुए कहा था कि आरोपी और शिकायतकर्ता महिला लिव-इन रिलेशनशिप में थे और उनका रिश्ता दुष्कर्म की परिभाषा में नहीं आ सकता। एक और मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि यदि दो सक्षम वयस्क कुछ वर्षों तक सहमति से लिव‑इन में रहते हैं तो मान लिया जाएगा कि उन्होंने इस तरह की सहमति पूरी तरह स्वेच्छा से दी है...। लिव-इन रिलेशनशिप के दुष्परिणाम यूरोप भुगत रहा है। उसे स्वतंत्रता और उच्छृंखलता का अंतर समझ में आ रहा है। वहां रिश्तों में घटते विश्वास के कारण परिवार टूट रहे हैं। इससे अकेलापन बढ़ रहा है। दुर्भाग्य से, भारत में कुछ लोग ऐसे जीवन को आदर्श समझ रहे हैं, जिसके मूल में भोगवाद है। वहीं, यूरोप में लोग भारतीय संस्कारों की महत्ता को स्वीकार कर रहे हैं। उन्हें यह जानकर आश्चर्य होता है कि भारत में संयुक्त परिवार होते हैं, यहां विवाह को जन्म-जन्म का पवित्र बंधन समझा जाता है! ऐसी महान व्यवस्था को छोड़कर लिव-इन रिलेशनशिप को अपनाने से जो दुष्परिणाम होंगे, वे संबंधित व्यक्ति के साथ ही समाज को भी भुगतने होंगे। इससे दूर रहने में ही कल्याण है।

About The Author: News Desk