कांग्रेस के दिग्गज नेता एवं पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने 26/11 हमलों के बाद पाकिस्तान को सैन्य मोर्चे पर जवाब न दिए जाने के संबंध में जो बयान दिया है, उससे पता चलता है कि पहले विदेशी ताकतें किस हद तक हमारे फैसलों पर असर डालती थीं। अगर उस घटना के बाद पाकिस्तान को सख्त जवाब दिया जाता तो वह इतना दुस्साहस नहीं कर पाता। याद करें, वर्ष 1971 के युद्ध में जब पाकिस्तान की बहुत शर्मनाक हार हुई थी, तब वह कई सालों तक शांत रहा था। यह पड़ोसी देश उस आदतन अपराधी की तरह है, जिसे सीधे रास्ते पर रखने के लिए समय-समय पर सख्त कार्रवाई करनी जरूरी है। पाकिस्तान कोई आतंकी हरकत करे या न करे, उस पर दबाव बनाए रखना चाहिए। 26/11 की घटना ने हमें झकझोर दिया था। मुट्ठीभर आतंकवादियों ने जिस तरह मुंबई शहर में खून-खराबा किया था, उसके बाद तत्कालीन केंद्र सरकार को निर्णायक कार्रवाई करनी चाहिए थी। चिदंबरम के उक्त बयान से यह भी स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान के हर गुनाह को माफ करते हुए अमेरिका हमेशा उसे बचाने आ जाता है। इसने कारगिल युद्ध में भी पाकिस्तान को बचाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया था, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने डंके की चोट पर कहा था कि एक-एक घुसपैठिए को बाहर निकालेंगे। उस समय पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ रोनी सूरत बनाकर अमेरिका से गुहार लगाने गए थे और उन्हें वहां टीवी पर शिकस्त की खबर मिली थी। वर्ष 1971 में अमेरिका ने सातवां बेड़ा भेजने के नाम पर दबाव बनाना चाहा था, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने उसकी एक न चली।
आज अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तान की पीठ थपथपाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। वे भारत-पाक संघर्ष रुकवाने के झूठे दावे कर 'शांति पुरुष' बनने की कोशिश कर रहे हैं। जब केंद्र सरकार ने उनके दावों को खारिज कर दिया तो वे टैरिफ थोप रहे हैं। ट्रंप अपने अनर्गल बयानों से हंसी के पात्र बन गए हैं। अगर 'ऑपरेशन सिंदूर' जैसी बड़ी कार्रवाई 26/11 के बाद की जाती तो कई आतंकवादी हमलों को टाला जा सकता था। पाकिस्तान को लेकर हमें इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि शांति और सहिष्णुता से काम लेंगे तो उसमें कोई सुधार आ जाएगा। दरअसल पाकिस्तान अपने आतंकवादियों के मारे जाने से नहीं डरता है। वे तो पाले ही इसलिए जाते हैं, ताकि भारतीय सैनिकों की गोलियों से मारे जाएं। पाकिस्तान उस समय डरता है, जब उसकी फौज को चोट पहुंचती है। पाकिस्तानी अवाम बहुत बड़ी तादाद में अपने जवानों की लाशें देखकर हुक्मरानों से सवाल पूछ सकती हैं। याद करें, जब कारगिल युद्ध में सैकड़ों पाकिस्तानी फौजी मारे गए थे तो उनकी फौज ने लाशें लेने से ही इन्कार कर दिया था। तत्कालीन पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ को डर था कि इससे उन्हें लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ेगा। पाकिस्तान द्वारा किए जाने वाले आतंकवादी हमलों का जवाब देते समय इस तथ्य को ध्यान में रखना चाहिए। यह पड़ोसी देश एक-दो सैन्य अभियानों से सुधरने वाला नहीं है। जब उस पर लगातार प्रहार होंगे तो सुधार की उम्मीद की जा सकती है। इसके लिए केंद्र सरकार को बिना किसी दबाव के फैसले लेने होंगे। मोदी सरकार के रुख को देखकर कहा जा सकता है कि विदेशी ताकतों का कोई दबाव पाकिस्तान के खिलाफ की जाने वाली कार्रवाई में बाधा नहीं डाल सकेगा।