बेंगलूरु/दक्षिण भारत। रविवार को श्रीवासुपूज्य भवन, माधवनगर में प्रवचन के दौरान आचार्यश्री अरिहंतसागरसूरीश्वरजी म.सा. ने कहा कि जिस प्रकार हमें हमारा जीवन प्यारा है, उसी प्रकार प्रत्येक जीव को उसका जीवन प्यारा होता है। स्वार्थी व्यक्ति मात्र खुद के सुख-दुःख की चिंता करता है, जबकि धर्मी व्यक्ति औरों के सुख-दुःख के प्रति भी संवेदनशील होता है।
जगत के सभी जीवों को जीने का समान अधिकार है और किसी के जीने के अधिकार का हनन करने से हिंसा का पाप लगता है। दीक्षा जीवन एक ऐसी आचार संहिता है जहां संपूर्ण अहिंसा की अवधारणा चरितार्थ की जा सकती है।
तीर्थंकरों की यह खूबी है कि स्वयं संपूर्ण अहिंसक जीवन का पालन करके औरों को भी उसका उपदेश दिया। जगत के सभी जीवों को सुखी करना व्यक्ति के बस की बात नहीं है, लेकिन यदि वह चाहे तो यह संकल्प अवश्य कर सकता है कि वह किसी को दुःखी नहीं करेगा। जैन दीक्षा इसी संकल्प की पर्यायवाची है।
रविवार को आचार्यश्री की निश्रा में मुमुक्षुओं के बेंगलूरु आगमन के उपलक्ष्य में कल्याण मित्र परिवार द्वारा कुमारापार्क जैन मंदिर से माधवनगर तक रथयात्रा सह वर्षीदान वरघोडे का आयोजन किया गया तथा सभी मुुक्षुओं का सम्मान किया गया।
ज्ञातव्य है कि मुमुक्षु भव्य शाह की दीक्षा 23 नवंबर को आचार्यश्री अरिहंतसागरसूरीश्वरजी की निश्रा में बेंगलूरु में होगी।