आयुर्वेद है अपनी प्रकृति, संस्कृति और गुणकारी सिद्धविद्या: आचार्य विमलसागरसूरी

एनेस्थेसिया की चिकित्सा पद्धति विश्व को भारत की देन है

यह दिव्य ज्ञान सर्वप्रथम सुश्रुत वैद्यक ग्रंथ ने दिया है

गदग/दक्षिण भारत। स्थानीय राजस्थान जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक संघ के जीरावला पार्श्वनाथ सभागृह में आचार्य विमलसागरसूरीश्वर जी ने कहा कि आयुर्वेद अपनी प्रकृति और देश की संस्कृति है। यह प्रभावशाली चिकित्सा पद्धति सबसे सस्ती, बहु गुणकारी और सबके लिए निरापद सिद्ध विद्या है। जब इंग्लैंड में एलोपैथी का जन्म भी नहीं हुआ था, तब अखंड भारतवर्ष में आयुर्वेद अपनी सफलता के चरम पर था। आज आयुर्वेद से दूर होकर हम सभी अपना भारी नुकसान कर रहे हैं।

आयुर्वेद देश का गौरव है। अपने देश के 2600 वर्ष प्राचीन सुश्रुत नामक वैद्यक ग्रंथ को सर्जरी का पितामह कहा जा सकता है। सदियों पहले इस ग्रंथ के आधार पर आंख व किडनी स्टोन के ऑपरेशन होते थे। इतना ही नहीं, सिजेरियन और हाथ-पैर की टूटी हड्डियों को बदलने का कार्य भी इस महान ग्रंथ के आधार पर सफलतापूर्वक किया जाता था। एनेस्थेसिया की चिकित्सा पद्धति विश्व को भारत की देन है। यह दिव्य ज्ञान सर्वप्रथम सुश्रुत वैद्यक ग्रंथ ने दिया है।

बुधवार को गजेंद्रगढ़ के भगवान महावीर जैन आयुर्वेदिक कॉलेज एवं हॉस्पिटल के प्रशिक्षित डॉक्टरों, उनके प्राध्यापकों और व्यवस्थापकों को संबोधित करते हुए जैनाचार्य ने कहा कि एलोपैथी आज 100 वर्ष बाद भी प्रयोगों और अनुमानों पर आधारित है। अनेक रोगों का एलोपैथी में कोई उपचार नहीं है। आयुर्वेद सहज सुलभ सिद्ध विद्या है। वह प्रकृति का मनुष्य के लिए वरदान है। उसके कोई साइड इफेक्ट नहीं हैं।

जैनाचार्य ने बताया कि जिस प्रकार लड़ने के लिए हथियार होते हैं, उसी तरह विद्वानों के लिए व्याकरण है। आयुर्वेद के लिए निघण्टु कोष प्राणतुल्य है। उसके बिना वैद्यराज बनना असंभव है। देश का सौभाग्य है कि आज धनवंतरी, मदनपाल, राज, द्रव्यगुण संग्रह, राजवल्लभ और निघण्टु शेष जैसे ऐतिहासिक निघण्टु कोष महान साहित्यिक धरोहर के रूप में सुरक्षित हैं। 

गणि पद्मविमलसागरजी आदि संतजनों के साथ जैन संघ के अनेक गणमान्य लोग भी इस अवसर पर उपस्थित थे। शिक्षण संस्थान के स्थापक अशोक बागमर ने जैनाचार्य से आशीर्वाद ग्रहण कर उन्हें गजेंद्रगढ़ पधारने और विद्यार्थियों को मार्गदर्शन देने का निवेदन किया। राजेश श्रीश्रीमाल ने सभा का संचालन किया।

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