उच्चतम न्यायालय ने पूरे वक्फ कानून पर रोक लगाने से किया इन्कार

कुछ प्रावधानों पर रोक लगाई

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नई दिल्ली/दक्षिण भारत। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को वक्फ कानून पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया और कहा कि इसके पक्ष में संवैधानिकता की 'पूर्वधारणा' है, लेकिन कुछ प्रावधानों के संचालन पर रोक लगा दी। इसमें वह प्रावधान भी शामिल है जिसमें कहा गया था कि वे लोग ही वक्फ बना सकते हैं, जो पिछले पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहे हैं।

अंतरिम आदेश सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा, 'हमने हर धारा को दी गई चुनौती पर प्रथम दृष्टया विचार किया है और पाया है कि पूरे कानून पर रोक लगाने का कोई मामला नहीं बनता है।'

हालांकि, शीर्ष न्यायालय ने उस प्रावधान पर रोक लगा दी, जिसमें कहा गया था कि पिछले पांच वर्षों से इस्लाम का पालन करने वाले व्यक्ति ही वक्फ बना सकते हैं।

न्यायालय ने उस प्रावधान पर भी रोक लगा दी, जो सरकार द्वारा नामित अधिकारी को यह विवाद निर्धारित करने का अधिकार देता था कि क्या वक्फ संपत्ति ने सरकारी संपत्ति पर अतिक्रमण किया है।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'हमने माना है कि पूर्वधारणा हमेशा क़ानून की संवैधानिकता पर आधारित होती है और अत्यंत दुर्लभ मामलों में ही ऐसा किया जा सकता है। हमने पाया है कि पूरे अधिनियम को चुनौती दी गई है, लेकिन मूल चुनौती धारा 3(आर), 3सी, 14 ... थी।'

न्यायालय ने निर्देश दिया कि जहां तक ​​संभव हो, वक्फ बोर्ड का मुख्य कार्यकारी अधिकारी मुस्लिम होना चाहिए, जबकि न्यायालय ने गैर-मुस्लिम को सीईओ नियुक्त करने की अनुमति देने वाले संशोधन पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया।

इसमें यह भी कहा गया है कि राज्य वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषदों में गैर-मुस्लिमों की संख्या तीन से अधिक नहीं हो सकती।

शीर्ष न्यायालय ने 22 मई को तीन प्रमुख मुद्दों पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था, जिसमें 'अदालतों द्वारा वक्फ, उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ या विलेख द्वारा वक्फ' घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने की शक्ति शामिल थी, जो वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई के दौरान सामने आई थी।

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