चेन्नई/दक्षिण भारत। पुरुषवाक्कम स्थित एएमकेएम जैन मेमोरियल ट्रस्ट में विराजमान डॉ. समकित मुनिजी म.सा. के सान्निध्य में शनिवार को उवसग्गहर स्तोत्र का तीसरा दिवस मनाया गया। इस अवसर पर मुनिश्री ने प्रवचन में परदेशी राजा की कहानी को आगे बढ़ाते हुए महत्वपूर्ण संदेश दिए।
उन्होंने बताया कि परदेशी राजा ने जब श्रावक के 12 व्रत स्वीकार कर लिए, तो केसी श्रमण ने उसे शिक्षा देते हुए कहा, ध्यान रखना, अब तू धार्मिक हो गया है, आगे जाकर अधार्मिक मत हो जाना। तू अहिंसक हो गया है, वापस हिंसक मत बनना। अब तू दानी हो गया है, तो फिर से कंजूस मत बनना। तू सत्यवादी हो गया है, तो फिर झूठ की राह मत पकड़ना।
मुनिश्री ने समझाया कि यदि एक बार हमने सही राह पकड़ ली है, तो फिर गलत मार्ग की ओर नहीं जाना चाहिए। अगर हमने झूठ बोलना छोड़ दिया है, तो उसे दोबारा शुरू नहीं करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि प्रतिदिन हम जिन सच्चे संतों और भगवान का नाम लेते हैं, जिनके आगे नमन करते हैं, उनके सामने कभी झूठ नहीं बोलना चाहिए।
उन्होंने यह भी कहा कि यदि दान देना संभव नहीं है तो स्पष्ट कह दें कि भाव नहीं है - लेकिन यह न कहें कि मेरे पास है ही नहीं। अमीर होते हुए गुरु के सामने गरीब बनना बहुत बड़ी गलती है, क्योंकि यदि हम गुरु के सामने अपनी अमीरी छुपाकर कहेंगे कि हमारे पास कुछ नहीं है, तो एक दिन वास्तविक गरीबी का सामना करना पड़ेगा।
डॉ. समकित मुनि ने आगे कहा, जीवन में हमेशा ऐसी संगति करनी चाहिए जो हमें सही मार्ग दिखाए, बुरी आदतों से दूर रखे और हमारे भीतर सकारात्मक परिवर्तन लाए। अच्छे लोगों के साथ रहने का जितना हो सके प्रयास करना चाहिए।
उन्होंने बताया कि परदेशी के जीवन में इतना गहरा परिवर्तन आया कि अब उसे संसार में मन ही नहीं लगता। आने वाले प्रवचन में वह यह बताएंगे कि उसके इस परिवर्तन से परिवार में क्या बदलाव आया।
मंच संचालन मंत्री विनयचंद पावेचा ने किया।