स्विट्जरलैंड का पाखंड

स्विट्जरलैंड के प्रतिनिधि कालेधन के मुद्दे पर क्यों नहीं बोलते?

कालेधन का गढ़ माना जाता है स्विट्जरलैंड

स्विट्जरलैंड ने भारत में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के संबंध में जो बयान दिया है, वह हकीकत से कोसों दूर है। ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ देशों ने हर दो-चार महीने बाद कोई उपदेशनुमा बयान देकर भारत पर निशाना साधने की आदत बना ली है। न उनके पास तथ्य होते हैं और न उन्हें भारतीय समाज के बारे में पर्याप्त जानकारी होती है। फिर भी उन्हें यह दिखाने का शौक़ चर्रा जाता कि 'हम तो मानवाधिकारों के बड़े पैरोकार हैं!' स्विट्जरलैंड को चाहिए कि वह भारत में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की चिंता न करे। इसके लिए हम भारतवासी काफी हैं। उसे कालेधन के कारण होने वाले नकारात्मक प्रभावों की चिंता करनी चाहिए। स्विट्जरलैंड इसका गढ़ माना जाता है। दुनियाभर से कई लोग टैक्स की चोरी कर उसके बैंकों को मालामाल बना रहे हैं। स्विट्जरलैंड के प्रतिनिधि इस पर क्यों नहीं बोलते? अक्सर ऐसे देश जिन खबरों के आधार पर भारत के संबंध में धारणा बनाते हैं, वे आधे-अधूरे तथ्यों पर आधारित होती हैं। पश्चिमी मीडिया एक ओर तो निष्पक्षता का दावा करता है, दूसरी ओर भारत में होने वाली किसी घटना में जातिवाद और सांप्रदायिकता का तड़का लगाने की पूरी कोशिश करता है। कुछ साल पहले एक कुख्यात गैंगस्टर अन्य अपराधियों के हाथों मारा गया था। पश्चिमी मीडिया में उसे इस तरह पेश किया गया था, जैसे किसी मासूम शख्स को उसकी धार्मिक पहचान के कारण निशाना बनाया गया हो! अपराध करना गलत है, लेकिन उससे संबंधित ख़बर में काल्पनिक बातें जोड़कर उसे सांप्रदायिक रंग देना भी गलत है। जब पश्चिमी देशों के राजनेता, अधिकारी और आम लोग ऐसी ख़बर पढ़ते हैं तो उनके मन में भारत की गलत छवि बनती है। इस साजिश का सही तरीके से जवाब देने की जरूरत है।

स्विट्जरलैंड को अल्पसंख्यकों के अधिकारों की चिंता है। इसका स्वागत होना चाहिए। क्या यह चिंता सिर्फ भारत के संबंध में है? क्या उसके प्रतिनिधि ऐसी चिंता पाकिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों के लिए करेंगे? बांग्लादेश में पिछले एक साल से कैसा माहौल है? क्या स्विट्जरलैंड का कोई प्रतिनिधि बांग्लादेशी हिंदुओं और ईसाइयों के लिए आगे आया? उन्हें हर तरह की असुरक्षा भारत में ही दिखाई देती है। अगर यह बात सही है तो बांग्लादेश, म्यांमार जैसे देशों से लोग अवैध ढंग से यहां क्यों आते हैं और क्यों रहना चाहते हैं? उनका तो ख़्वाब होता है कि किसी तरह भारत में दाखिल हो जाएं, उसके बाद चैन से ज़िंदगी गुजारें। जब भारतीय एजेंसियां उन्हें पकड़ती हैं और स्वदेश रवाना करती हैं तो कुछ कथित बुद्धिजीवियों को इसमें 'असहिष्णुता' नजर आने लगती है। कई पश्चिमी थिंक टैंक और संगठन इस पर आपत्ति जताते रहते हैं। अब स्विट्जरलैंड के पास सुनहरा मौका है। उसे साबित करना चाहिए कि वह कोरे उपदेश देने वाला नहीं, बल्कि हर तरह के अधिकारों की असल में रक्षा करने वाला देश है। अगर वह भारत में अवैध रूप से रहने वाले बांग्लादेशियों, रोहिंग्याओं को अपने यहां शरण दे तो कैसा रहेगा! सिर्फ शरण न दे, नागरिकता भी दे। भोजन, आवास, वस्त्र और तमाम सुविधाएं दे। ध्यान रहे, ये सभी सुविधाएं अत्यंत उच्च कोटि की होनी चाहिएं। स्विट्जरलैंड को एक आदर्श स्थापित करना चाहिए। वह अपनी सीमाएं इराक, सीरिया, लीबिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान जैसे देशों के नागरिकों के लिए खोल दे। आलीशान होटलें उनके लिए पूरी तरह मुफ्त कर दे। 'पहले आओ, पहले पाओ' का नियम लागू करते हुए एक ऐसी मिसाल कायम कर दे कि दुनिया देखे तो सराहे। तब स्विट्जरलैंड के शब्दों में वजन आएगा, तब उसके तर्कों की स्वीकार्यता बढ़ेगी। भारत के बारे में अनर्गल बयानबाजी से कुछ नहीं होने वाला।

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