सुलगता नेपाल: संयोग या प्रयोग?

हजारों युवा क्यों भड़क गए?

क्या ओली नेपाल में थोप रहे चीनी मॉडल?

नेपाल सुलग उठा। युवाओं का आक्रोश भड़क उठा। बांग्लादेश के बाद हमारे एक और पड़ोसी देश में 'जनता' का सड़कों पर उतर कर तोड़फोड़ मचाना कोई संयोग है या प्रयोग है? नेपाल में ऐसा क्या हुआ कि हजारों युवा इतने भड़क गए और उन्होंने संसद भवन में घुसकर हुड़दंग मचाया? हाल में जब नेपाल सरकार ने फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब, वॉट्सऐप, एक्स और लिंक्डइन जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध लगाया तो यह कदम एक ओर जहां युवाओं को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला लगा, वहीं इससे कई परिवारों की आमदनी को भी चोट पहुंची। नेपाल में पर्यटन एक बड़ा उद्योग है। इसके अलावा भी कई कारोबार सोशल मीडिया के जरिए चल रहे थे। अगर अचानक सभी बड़े प्लेटफॉर्म्स पर पाबंदी लगा दी जाएगी तो लोग इसे दमनकारी फैसला समझेंगे। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने सत्ता में आने के बाद जो फैसले लिए, वे नेपाल के हालात को बेहतर बनाने में नाकाफी ही साबित हुए। वे कथित सीमा विवाद को लेकर भारत के साथ टकराव के मौके ढूंढ़ते रहे। ऐसे भी आरोप हैं कि उन्होंने शासन में चीनी घुसपैठ पर चुप्पी साध रखी है। नेपाल के लोगों का स्वाभाविक जुड़ाव भारत के साथ है। उन्हें आशंका है कि ओली उनसे चीन की तर्ज पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीनना चाहते हैं। प्रदर्शनकारी युवाओं के इस आरोप को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता कि ओली के आने के बाद नेपाल में भ्रष्टाचार, लालफीताशाही, सरकारी तंत्र की मनमानी में बढ़ोतरी हुई है। हाल में नेपाली नेताओं की संतानों के ऐसे वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे, जिनमें वे 'ऐश' करते नजर आ रहे थे। वहीं, आम नेपाली अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहा है।

नेपाल में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने का सरकार का फैसला उक्त आक्रोश के पीछे अकेली वजह नहीं है। हालांकि, सरकार चाहती तो अपने फैसले को न्यायसंगत बनाकर टकराव को टाल सकती थी। इसके बजाय उसने यह तर्क देकर इन प्लेटफॉर्म्स पर ताला लगा दिया कि इनके जरिए फर्जी खबरें फैल रही हैं और साइबर अपराधों को बढ़ावा मिल रहा है। क्या अफवाहों और अपराधों को रोकने का यह एकमात्र तरीका है कि सोशल मीडिया बंद कर दें? फिर तो सड़क हादसे रोकने के लिए वाहनों पर भी प्रतिबंध लगा देना चाहिए! नेपाल सरकार को चाहिए था कि वह झूठ का प्रसार करने वाले अकाउंट्स पर प्रतिबंध लगाती, साइबर अपराधियों को सख्त सज़ाएं देना सुनिश्चित करती। उसने इसके बजाय 'न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी' वाली कहावत को कुछ ज्यादा ही गंभीरता से ले लिया था। नेपाल में सत्तारूढ़ वर्ग को लेकर खासी निराशा है। राजनीतिक कलह, अदूरदर्शिता, महंगाई, बेरोजगारी, धर्मांतरण जैसे कई मुद्दे हैं, जिन पर सरकार न तो कोई पुख्ता कदम उठा सकी और न ही कोई ठोस आश्वासन दे पाई। बिगड़ते हालात को देखकर लोग वापस हिंदू राष्ट्र की मांग करने लगे। ओली पर आरोप है कि वे नेपाल की हिंदू संस्कृति को कमजोर कर चीनी मॉडल थोपने की कोशिश कर रहे हैं। कई संगठन इस बात पर चिंता जता चुके हैं कि नेपाल में बड़े स्तर पर धर्मांतरण का खेल चल रहा है। लोगों को रोटी, मकान, इलाज, शादी, नौकरी, शिक्षा जैसे प्रलोभन देकर उनका धर्म बदलवाया जा रहा है। इन गतिविधियों के तार विदेशी संस्थाओं से जुड़ रहे हैं। माना जाता है कि ओली ने इन चिंताओं को कभी गंभीरता से नहीं लिया और अपनी राजनीतिक विचारधारा का ही राग अलापते रहे। इसका नतीजा सबके सामने है।

About The Author: News Desk